Letter ‘P’- Pass, Part, Past, Path

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Letter ‘P’- Pass, Part, Past, Path

Letter ‘P’- Pass, Part, Past, Path

गुरु शिष्य दोनों कहीं जा रहे थे। रास्ते में विश्राम के लिए वे एक नदी के किनारे पेड़ की छांव में बैठ गए। दोनों को प्यास लगी और गुरु ने कहा- वत्स! जाओ, नदी से थोड़ा पानी ले आओ। शिष्य नदी तक गया, घाट में उतरा। थोड़ी देर पहले एक बैलगाड़ी गुजरी थी। पूरा पानी मटमैला था, खाली हाथ लौट आया। उसने कहा– गुरुदेव! अब अपने को प्यासा ही रहना पड़ेगा। नदी का पानी पीने लायक नहीं है, बहुत गन्दा है। पानी की कोई व्यवस्था नहीं हुई। उन्होंने कुछ नहीं कहा, बातों में लगे रहे। 15-20 मिनट बीत गए। गुरु ने अब दुबारा कहा- जाओ बेटे, पानी ले आओ। शिष्य ने कहा- गुरुदेव! पानी पीने लायक नहीं है, पानी गन्दा है। गुरु ने कहा– मैं कहता हूँ ना, तुम जाओ, पानी तुम्हें साफ मिलेगा। शिष्य गया, देखता क्या है? नदी का पानी एकदम साफ और स्वच्छ है। नदी के साफ स्वच्छ जल को देखकर शिष्य आश्चर्य में पड गया कि गुरु ने ऐसा क्या जादू कर दिया? अभी थोड़ी देर पहले जो पानी एकदम गन्दा था, अब एकदम क्लीन, वजह क्या है? पानी भर करके तो लाया पर मन में एक प्रश्न उभर गया। उसने आकर कहा कि गुरुदेव! आखिर आपने ऐसा कौन सा जादू किया, जो पानी पल में साफ़ हो गया। गुरु ने कहा– वत्स! इसमें कोई जादू नहीं है। बात केवल इतनी सी है कि जब तुम पानी लेने के लिए गए थे, उसमें उसी समय थोड़ी देर पहले एक बैलगाड़ी गुजरी थी। उस बैलगाड़ी की रगड़ से नीचे की मिट्टी मर्दित हुई, पानी गन्दा हो गया और मैंने तुम्हें आधा घंटे बाद भेजा। इतनी देर में सारा गन्दा पानी वहाँ से बह गया और जो थोड़े बहुत रचकण थे वो नीचे बैठ गए, पानी साफ़ हो गया।

बात बहुत थोड़ी सी है पर अर्थ बहुत गहरा है। जीवन में जब भी परेशानी की बैलगाड़ी गुजरे और जीवन के पानी को मटमैला बना दे, थोड़ा देर धैर्य रखो। पानी को पास (pass) हो जाने दो। वो पानी जो मटमैला है, वह भी मजेदार बन जाएगा। पास होने दो।
आज किसका नंबर है- p, p for pass. पास का मतलब? पास वर्ड बहुत अर्थों में है पर यहाँ मैं आपको आज पहली बात कर रहा हूँ। आज की चार बातें हैं– पास (pass), पार्ट (part), पास्ट (past) और पाथ (path)। ज्यादा बड़े शब्द नहीं हैं। पास, पार्ट- हिस्सा, पास्ट– अतीत और पाथ– हमारा रास्ता, मार्ग।

सबसे पहली बात है- पास। पास का मतलब क्या है?– गुजार देना, गुजर जाने देना। हम किसी को गुजारे वो भी पास है और किसी को आगे बढ़ाएं ये भी पास है। दोनों अर्थ में आता है। किसी को गुजार देना, बिता देना, ये भी पास है। कुछ लोग टाइम पास करते हैं। हैं ना? इसको भी पास कहते हैं। आप लोग गाड़ी को भी पास देते हैं कि भैया निकल जाओ, हम ठीक हैं। किसी को आगे भी बढा देते हैं। अपनी चीज़ को आगे बढ़ाना भी पास है। आप फुटबॉल खेलते हैं? कभी फुटबॉल खेले हों तो फुटबॉल में क्या होता है? फुटबॉलर अपनी बॉल को दूसरे को पास करता है। एक दूसरे को पास करते-करते-करते गोलपोस्ट तक पास पहुँच जाते हैं। तो ये पास करना यानि आगे बढ़ाना और पास करना यानि बिता देना।

मैं आज आपको आपके जीवन का एक बहुत बड़ा सूत्र देता हूँ- ‘जीवन में जब भी कोई बुरा वक़्त आए, कहो इसको पास कर दो, इसको गुजार दो और अच्छी बात आये, उसे आगे पास ओन (pass- on) कर दो, आगे बढ़ा दो, आगे बढ़ा दो, आगे- आगे बढ़ाओ’। अच्छाइयों को आगे बढाओ और बुराई को बीत जाने दो। मन में ये सोचो की जीवन में जब भी कोई ऐसी स्थिति आए- ‘it will be past, ये बीत जाएगा, ये व्यतीत हो जाएगा, ये टिकने वाला नहीं है। जीवन में जो भी आता है, जो कुछ भी घटता है, वह सब बनता और बदलता है। ‘ये सब बीत जाएगा, बीत जाएगा, बीत जाएगा’ ऐसा करने से मन में धैर्य आएगा। मैं आपसे पूछता हूँ – जब भी कोई बुरी स्थिति आती है, आपके मन में क्या प्रतिक्रिया होती है? ये पास हो जा रहा है, पास हो रहा है, पास हो जाएगा, इसको पास करना है। या ये विपत्ति कैसे पास आ गयी? क्या प्रतिक्रिया है? हाँ? कैसी प्रतिक्रिया होगी? पास करो, तो जिंदगी में पास हो जाओगे और पास नहीं करोगे, तो जिंदगी भर परेशान रहोगे।

सब लोग परेशान हैं- पास कैसे करें? पास की स्पेलिंग क्या है? Pass, पास में सबसे पहली बात जीवन में जिसकी आवश्यकता है- p for patience (पेशेंस)। धैर्य रखिए। धैर्य रखना सीखिए।
जीवन में जो कुछ भी घटित हो जाए उसका धैर्य से सामना कीजिए। अगर आपके मन में पेशेंस होगा तो कैसी भी उलटी फूलटी घड़ी होगी, सब बीत जाएगी। अरे प्रतीक्षा करने से, धैर्य रखने से तो काली रात भी बीत जाती है। अमावस्या भी पूनम में परिवर्तित हो जाती है। हमारे हृदय में भी तो इतना पेशेंस होना चाहिए। आजकल लोग पेशेंस नहीं रखते, इसलिए पेशेंट बन जाते हैं। सब पेशेंट हैं। संत कहते हैं- ‘थोड़ा पेशेंस रखो, कीप पेशेंस’। मन में धैर्य रखो। तुम्हारे मन का ये धैर्य तुम्हारे लिए बहुत बड़ा संबल देगा, साहस देगा, शक्ति देगा और समर्थ बनाएगा और जिसका धैर्य खो जाता है, अधीर हो जाते हैं, वे अपने आप से ही हार जाते हैं, अंदर से टूट जाते हैं।

पेशेंस रखिये। हर समस्या का समाधान- पेशेंस है। पेशेंस कैसे रखें? बस ये सोचो- बुरी घडी आई है। It will be past, ये बीत जाएगा, ये गुजर जाएगा, चलो अभी गड़बड़ है, फिर ठीक हो जाएगा। ये मन में जगाइये। ऐसी सोच यदि आपके मन में आ जाए तो जीवन में कभी कोई कठिनाई नहीं होगी। चाहे कितनी भी मुश्किलें हों, मन नहीं उलझेगा। देखिये पेशेंस रखने का क्या फल होता है? और पेशेंस खोने का क्या परिणाम होता है? मैं दो घटना आपके सामने आप लोगों के बीच की बता रहा हूँ।

पेशेंस रखने का परिणाम और पेशेंस खोने का परिणाम। लड़की की शादी हुई, ससुराल गयी। अब नए नए वातावरण में सब कुछ नया-नया दिखता है। एक दिन में तो सब कुछ हो नहीं सकता। तो वैसी उलझनपूर्ण स्थिति में हर कोई एडजस्ट नहीं कर पाता। लड़की के साथ ऐसी स्थिति हुई। वो नए वातावरण में गई और उसको लगा कि मैं तो यहाँ नहीं रह सकुंगी। ना मेरे पति का स्वभाव अच्छा है, ना सास का स्वभाव अच्छा है, ना ससुर का अच्छा है। किसी का स्वभाव अच्छा नहीं है और वो कुछ क्रिया-प्रतिक्रियाऐं हुई, लड़के ने भी कह दिया कि तुम जाओ, हम तुमसे डाइवोर्स लेंगे। शादी हुए छः महिने हुए, पुरी ज़िन्दगी साथ रहने का वादा करके, संकल्प कर के एक साथ जुड़े और छः महीने बाद ही तलाक की बात आ गई। आजकल ये बातें बहुत जल्दी होती हैं। लड़की घर आ गयी। लड़की ने अपने माँ- बाप से कहा कि अब मैं उस घर में नहीं जाऊंगी, वो आदमी नहीं पागल है। अपने ही पति को पागल करार कर रही है। जब बेटी ने पुरे परिवार की निंदा की, पिता बड़े अनुभवी थे। उन्होंने सोचा जरूर मेरी बेटी में कुछ ना कुछ कमी होगी। एक- दो का व्यवहार ख़राब हो सकता है, पुरे परिवार का व्यवहार नहीं। उन्होंने बेटी को समझाया- ठीक है बेटी! तुम यहाँ रहो। थोड़े दिन रुको और समय हर घाव का मरहम है, हर घाव को भरता है। समय बीतने दो। आज तुम्हें जिस घर में सब कुछ उल्टा-पुल्टा सा लग रहा है, कल वही अच्छा भी लग सकता है इसलिए थोड़ा शांति रखो। धैर्य और संयम से काम लो। उसने बेटी को घर में रखा और एक दिन बेटी को अकेले में बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें एक मंत्र देता हूँ। इस मंत्र का अगर तुम प्रयोग करोगी तो पूरा परिवार तुम्हारी मुठ्ठी में होगा। सब कोई तुम्हारी उँगलियों के इशारे पर नाचेंगे। चाहती थी। बोलो क्या मंत्र है? क्या मंत्र है? बोले कुछ नहीं। ये मंत्र मैं तुम्हेंं बता रहा हूँ और छः महीने तक तुम्हें इस मंत्र का प्रयोग करना है। छः महीने में रिजल्ट आ जाएगा। बोलिये क्या मंत्र है? उन्होंने मंत्र के नाम पर एक मंत्र दे दिया और कहा कि इस अवधि में एक सावधानी रखनी होगी। क्या सावधानी रखनी है? कि इस अवधि में जितने दिन तुम इस मंत्र की साधना करोगी, तुम्हें कोई कितना भी कुछ भी बोल दे, रिएक्ट नहीं करना है, चुपचाप उसको सहन करना है, शांत रखना है, अपना धैर्य नहीं खोना है। इतना कहकर अपनी बेटी को समझाकर अपने समधी को खबर भेजा और अपनी बेटी को वापस ससुराल भेज दिया। अबकी बार जब बेटी ससुराल में आई तो सब कुछ बदला- बदला सा दिखाई पड़ा। ससुराल के लोग पहले तो सोचे- ये आफत कहाँ से आ गई? लेकिन कुछ दिनों में देखा कि नही, इस बार ये कुछ बदल के आई है। तो जरूर इसके माँ बाप ने इसे कोई सिख दी। पहले जो थोड़ी-थोड़ी बातों में उबल जाने वाली थी, अब उसके उपर उसका कोई असर नही। वो तो कुछ जवाब ही नही देती। सबस हँस कर बोलती है और जो काम करना है वो करती है। परिवार के लोगों का एटीट्यूड (attitude) उसकी तरफ बदलने लगा और उसने सोचा मंत्र काम कर रहा है। वो ओर दृढ़ता से काम करने लगी। छः महीने पुरे नहीं; पुरे परिवार के लोग उसके चहिते बन गए। पहले जिस परिवार में उससे कोई बात करना नहीं चाहता था, अब स्थिति ये बन गयी कि उससे पूछे बिना कोई काम नहीं होता। सबकी चहिती बन गई। समधी ने अपने समधी (लड़की के पिता) को फ़ोन किया कि आपने क्या सीख देकर अपनी बेटी को भेजा है? हम तो सोचते थे कि ये बहु है कि काल, लेकिन आपने तो बहु को इस तरीके से प्रशिक्षित करके भेजा कि पूरा उसने सबका दिल जीत लिया, हृदय परिवर्तन हो गया। आज हम आपके इस व्यवहार को प्रणाम करते हैं। मैं आपसे पूछता हूँ कि जब कभी जीवन में कोई ऐसा प्रसंग उठता है आप उसका धैर्य से मुकाबला क्यों नहीं करते। तुरंत रिएक्ट क्यों करते हैं? अधीर क्यों हो उठते हैं? कोई भी परिस्थिति बने, कोई भी परेशानी हो, कोई भी मुश्किल हो, धैर्य रखें।

और जो अधीर होते हैं- एक ने व्यापार किया। बड़े उत्साह के साथ व्यापार किया। अनुभव था नहीं, उत्साह पूरा था। पहली बार जिसको माल दिया, माल ख़राब निकल गया। ऐसा फस गया, लाखों रुपयों का नुकसान हो गया। वो आदमी अपने मन से हार गया कि अब हम कुछ कर ही नहीं सकते। डिप्रेशन में आ गया। एकदम अंदर से टूट गया। सुसाइड (suicide) करने की मानसिकता बना लिया। ये किसका परिणाम है? कई लोग तो सुसाइड कर ही लेते हैं। ये अधीरता का परिणाम है। उसके पिता उसको बार- बार समझाएं कि बेटा! देख व्यापार है, व्यापार में इस तरह की स्थितियां बनती हैं बदलती हैं। कभी मनुष्य चढ़ता है उतरता है। अधीर मत हो, फिर देखेंगे, फिर देखेंगे, फिर देखेंगे। आज नहीं तो कल हम सफल होंगे। मन में इतना धैर्य हो तो कभी दिक्कत नहीं होगी। अधीर मनुष्य पल में हार जाता है और धीरज रखने वाला मनुष्य बड़ी से बड़ी विपत्तियों में भी स्थिरता बनाए रखता है।

पेशेंस रखिये और पेशेंस रखकर के क्या कीजिये?- एक्टिव रहिये। जीवन में जब भी कोई ऐसी परिस्थिति आए, एक्टिव बने रहो। ध्यानपूर्वक एक्टिव रहो। आप लोग एक्टिव तो होते हो पर नैगेटिव डायरेक्शन में। पॉजिटिव डायरेक्शन में यदि एक्टिवनैस हमारे अंदर बनी रहे तो हम ऊर्जावान बने रहेंगे। इसमें सक्रीयता ही हमें ऊर्जावान बनाती है। निष्क्रिय न बनें। हमारी निष्क्रियता हमारे जीवन को निश्तेज बना देती है। एकदम एक्टिव, ‘be active’। अपने काम में पुरुषार्थ जारी रखो, प्रयास जारी रखो और परिणाम धैर्य से जो आये उसका सामना करो। जो भी परिणाम आए, पेशेंसफुली (patiencefully) उसको ऐक्सेप्ट करो। एक्टिव बने रहो। आप जितने एक्टिव रहेंगे, जीवन का उतना उत्कर्ष होगा। आपने जुगनू को देखा है? जुगनू में चमक कब होती है?- जब तक वो एक्टिव रहता है। जैसे ही वो स्थिर होता है, उसकी सारी चमक फीकी पड़ जाती है। मनुष्य के अंदर जब तक एक्टिवनैस है, उसके अंदर तेज़ है, काँती है, प्रकाश है और जब वो इनएक्टिव हो जाता है, अपने आप से हार जाता है। कुछ भी नहीं कर पाता। तो पास होने के लिए एक्टिव रहिये।

S- सेटिस्फेक्शन (satisfaction). जीवन में जो भी परिणाम आए, उसके प्रति संतोष रखो। मन में संतोष का भाव हमेशा बने रहना चाहिए। संतोष कभी खंडित नहीं होना चाहिये। एक्टिव बनिये, संतोष रखिये। जो भी परिणाम है आखिर भोगना तो पड़ता ही है, आकुल हो करके करोगे तो, असंतुष्ट हो करके करोगे तो और संतोष रख करके करोगे तो। तुम जितने संतोषी बनोगे उतना सुखी होओगे।
और दूसरे S का मतलब “स्ट्रॉन्ग”। तुम स्ट्रॉन्ग बन जाओगे, मजबूत बन जाओगे, अपने आप में दृढ हो जाओगे तो, अपने इस जीवन में अपने आप को पास करना चाहते हो तो; पेशेंस रखो, एक्टिव बनो, सेटिस्फेक्शन रखो और स्ट्रॉन्ग बनो। कभी फेल नहीं होओगे। जिस मनुष्य ने इन चारों को अपना लिया वो हमेशा पास है।

फिर दूसरी बात है- पार्ट (part). जीवन में जो कुछ भी घटता है, उसे ‘part of life’ मानो। कुछ भी घटा, दुख है, सुख है, संयोग है, वियोग है, हानि है, लाभ है, जय है, पराजय है, अच्छा है, बुरा है, पाना है, खोना है, स्वागत है, तिरस्कार है; सब क्या है? क्या है? ये हमारे जीवन का एक हिस्सा है। ‘These are the part of life’ और इनमें स्थिरता बनाये रखना ‘art of life’। एक्सेप्ट करो, इसमें स्थिरता बना के रखो। जीवन का मजा आएगा। ये तो हिस्सा है। जीवन में ये सब चीजें तो होंगी। ऐसा कौन है जिसके जीवन में ऐसा नहीं होता? हर किसी के जीवन में ये चीजें होंगी। ये हिस्सा है। क्या है? हमारे जीवन का हिस्सा।

जीवन में पैन, पार्ट की स्पेलिंग क्या है? Part: P– पैन (pain), A– ऐडवर्सिटी (adversity), R- रेस्टलेसनेस (restlessness) और T– ट्रबल (trouble)
हर मनुष्य के अंदर है। है ऐसा कोई मनुष्य जिसके जीवन में कोई पार्ट, कोई पैन न आया हो, कोई ऐडवेर्सिटी, किसी मुश्किल, विपत्ति या मुसीबत का सामना न करना पड़ा हो। रेस्टलेसनेस न हो, हमेशा इजी (easy) बन करके जिया हो और कोई ट्रबल, बाधा, रूकावट न आयी हो? है? संत कहते हैं– ‘जीवन में जितनी भी पीड़ा आए, जीवन में जितनी भी मुश्किलें आए, जीवन में जितने भी कष्ट आएं और जीवन में जितनी भी रुकावटें आएं; ये सोचो सब पास हो जाएगा, पास हो जाएगा। सबको पास करना सीखो, बिताना सीखो। ये सब पास होगा, ये सब पास होगा, ये सब पास होगा, ये सब पास होगा, ये बीत जाएगा, जीवन धन्य हो जाएगा।’

एक राजा था। एक बार उसके यहाँ किसी संत का आगमन हुआ। श्रद्धा से भरकर राजा संत के चरणों में गया। राजा ने उनका आत्मीय स्वागत किया और संत राजा की सेवा से प्रभावित भी हुए। अंत में राजा ने संत से कहा कि गुरुदेव! मुझे कुछ ऐसा मंत्र दो जो मेरे काम में आए। संत की बाह में एक ताबीज थी। उन्होंने उस ताबीज़ को खोला और कहा कि मेरे गुरु ने ये ताबीज़ मुझे दिया था। यह कह कर दिया था कि इसमें एक मंत्र है और वो एक अचूक मंत्र है। उस मंत्र का प्रयोग तुम तब करना जब अपने आप को घोर विपत्ति और मुश्किलों में फंसा महसूस करो। मेरे जीवन का बहुभाग बीत गया। मेरे सामने आजतक ऐसी कोई स्थिति निर्मित नहीं हुई और मुझे लगता भी नहीं है कि आगे आने वाले जीवन में ऐसी कोई स्थिति आएगी। तुम मेरे बचपन के मित्र भी रहे हो। मेरा तुमसे स्नेह भाव है। लो ये ताबीज़ मैं तुम्हें देता हूँ। अपनी बाह में बांधकर रखना और जिस दिन अपने आप को घोर मुश्किलों में घिरा महसूस करो, तब उसका उपयोग करना क्योंकि राजचक्र हमेशा एक सा नहीं रहता। बस क्या था? राजा ने ले लिया और जैसा की अभी मैंने कहा राजचक्र एक सी गति से नहीं घूमता, समय का फेर आया और अचानक राजा पर परचक्र ने हमला बोल दिया। परचक्र के इस अप्रत्याशित हमले के कारण राजा अपने आप को संभाल नहीं पाया। उसे अपने किले को छोड़कर भागना पड़ा। अपनी सेना की एक छोटी- सी टुकड़ी के साथ वह घोड़े पर भाग रहा था और पीछे- पीछे विरोधी राजा के सैनिक उसका पीछा कर रहे थे। भागते- भागते एक जंगल में गया। आगे एक पहाड़ आ गया। रास्ता अवरुद्ध है। क्या करें? आगे रास्ता नही है और पीछे लौटते हैं तो विरोधी सेना है। बचने की कोई सम्भावना नहीं है। क्या करें? इधर- उधर देखा, भगवान का नाम लिया। तभी एक गुफा दिखाई दी। गुफा का मुंह बड़ा था। वो घोड़ों समेत गुफा के अंदर घुस गया, अंदर चला गया। गुफा के अंदर तो चला गया लेकिन मन में अभी भी संकल्प विकल्प, कहीं विपक्षी सैनिक आ ना जाएं। जैसे- जैसे विपक्षी सैनिकों के घोड़ों की आहट पट टापों की आवाज नजदीक आने लगी, अंदर की धड़कन बढ़ने लगी और लगा अब तो मैं मरा। यहाँ से तो भागने की भी कोई गुंजाईश नहीं है। तभी ख्याल आया:- गुरु ने कहा था- ‘जब घोर विपत्ति हो, तब मेरे मंत्र को स्मरण करना’। उसने ताबीज़ खोला, उसमें लिखा था- ‘ it will be past, यह भी बीत जाएगा, यह भी बीत जायेगा’। उसने इस वाक्य को पढ़ा। मन में धैर्य आ गया। चलो भाई, गुरु ने कहा है- ये बीत जाएगा। चुपचाप शांति से बैठो। सबको बोल दिया- मौन रहो, भगवान का नाम लो। सब कुछ बीत जाएगा, फिर देखेंगे। तब तक विरोधी सेना आयी, नज़दीक आयी, इधर- उधर देखा, कहीं कुछ नहीं है, आगे रास्ता नहीं है, पीछे तक घोड़े के पांव के निशान हैं पर वो गए तो कहाँ गए? आपस में चर्चा करने लगे तभी किसी ने कहा इस गुफा में तो नहीं घुस गए। इसी गुफा को देखा तो देखतें क्या हैं? इस बीच मकड़ी ने एक जाल बना लिया था और पुरी गुफा के द्वार को अवरुद्ध कर दिया था और लोगों ने कहा- अरे भाई! गुफा में गया होता तो जाल नहीं टूटता। ये जाल बना है, गुफा के अंदर नहीं गए हैं। यहाँ पर अपना समय बर्बाद ना करें। दूसरी डायरेक्शन में गया होगा। चलो उधर चलें और वो सब अपना डायरेक्शन चेंज किये, निकल गए। थोड़ी देर बाद जब सारी आवाज़ें शांत हुईं, इनकी जान में जान वापस आ गयी। फिर वो बाहर निकला। राजा बाहर निकला अपने सैनिकों के साथ। थोड़े दिनों में वापस अपना सैन्य- संगठन मजबूत किया और अपने विरोधी राजा पर, शत्रु राजा पर हमला करके वापस अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त कर लिया और जिस दिन गद्दी पर बैठा, तब उसे याद आया- ‘यह भी बीत जाएगा, it will be past’। ‘बुरे दिन भी बीतते हैं, तो अच्छे दिन भी बीतते हैं’, ये हमेशा अपने मन में ध्यान रखना। पैन हो, मन में पैन उत्पन्न मत होने देना। मन को पीड़ित मत होने दो। पेशेंस रखो। ये सोचो- ये हमारे जीवन का हिस्सा है। ऐसा कोई व्यक्ति है इस संसार में जिसके सामने कभी कोई दुःख नहीं हुआ हो? ऐसा कोई व्यक्ति है जिस व्यक्ति के जीवन में कोई पीड़ा ना हो? ऐसा कोई व्यक्ति है जिसके सामने जीवन में कभी मुश्किलें खडी ना हुई हों? ऐसा व्यक्ति है जिसके सामने कोई रूकावट ना हो? एक बीज भी जब धरती में अंकुरित होता है, तब उसे धरती को फोड़ कर बाहर निकलना पड़ता है।

हमारा जीवन तभी आगे बढ़ता है जब हम इस प्रकार की परिस्थितियों का सामना करते हैं। तब अपने आप को आगे बढ़ा सकते हैं। महापुरुषों के जीवन को भी पलट कर के देखो। तीर्थंकर भी इसमें नहीं बचें। उनको भी इस प्रकार की मुश्किलों और परेशानियों का सामना करना पड़ा। भगवन श्री ऋषभदेव के जीवन को पलट कर देखो, छः- छः महीने का अंतराय हुआ। पारसनाथ भगवन के जीवन को पलट कर देखो, उन जैसा दुःख तो किसी को हुआ ही नहीं। 60 दिन तक कितना भयंकर उपसर्ग हुआ और उन्होंने सहा कि नहीं सहा। तुम तो कुछ होता है, भगवान के चरणों में चले जाते हो- ‘तुमसे लागि लगन, लेलो अपनी शरण, पारस प्यारा, मेटो- मेटो जी संकट हमारा।’

बोलो पारसनाथ भगवान पर जब संकट आए तो वो किसके पास गए? बोलो किसके पास गए वो? गए किसी के पास कि ‘मेटो मेटो जी संकट हमारा’। नहीं गए। उन्होंने क्या किया? उसको सहा। कैसे सहा? आंसू बहाते हुए? रोते-धोते हुए? समतापूर्वक। क्यों? क्योंकि उनको पता था- ‘It is the part of life’ और इसमें स्थिरता बनाये रखना ‘आर्ट ऑफ लाइफ’। बस ये सूत्र अपने अंदर बना लो। जीवन में जो कुछ भी ऐसा घटेगा वो ‘पार्ट ऑफ़ लाइफ’ है। ये होगा, होकर रहेगा, इसके बिना हम आगे बढ़ ही नहीं सकते। हाँ, उससे हम प्रभावित ना हों। इनके कारण हम अपनी गति ना रोकें, अपनी मति स्थिर रखें, यही मेरे जीवन की उपलब्धि है। धर्म और कुछ नहीं सिखाता, धर्म ये ही सिखाता है। कितना भी तुम धर्म करो, तुम ये सोचो कि मेरे जीवन में कोई कठिनाई नहीं आएगी। सो ये सोच कर धर्म करोगे, कोई मतलब नहीं है क्योंकि धर्मी के ऊपर सबसे ज्यादा कठिनाईयां आती हैं। तुम ये सोचकर अगर धर्म करते हो कि धर्म करूँगा, मेरे जीवन में कोई कठिनाई और मुश्किल नहीं आएगी, तो ये व्यर्थ की बातें हैं क्योंकि धर्मी पर ज्यादा कठिनाईयां होती हैं। धर्मी के सामने ज्यादा मुश्किलें होती हैं। धर्म करोगे तो सारी मुश्किलों में भी मुस्कुराना सिख जाओगे। ये ही धर्म की सबसे बड़ी उपलब्धि है। कैसी भी मुश्किल भरी घडी हो, मैं मुस्कुराउंगा, मैं मुस्कुराउंगा। मुस्कुराते हुए आगे बढिए। ये हमारे जीवन की स्थिति है, तो ये हम पार्ट मानें। जो भी घटे उसको पार्ट मानें। भैया है! है और आये उसको क्या करो? पास करो, आगे बढ़ाओ, बिता दो, गुजर जाने दो। समय बदलेगा, रात के बाद तो दिन ही होता है। अधीर क्यों होते हो?
यह पतझड़ की शाम, अकेला फूल अधीर बहुत है।
शूलों की महफ़िल में अली का कटु उपहास बहुत है।
रो मत मृदुल समीर दुबारा कोई और खिलेगा।
यह जीवन तो नीर किनारा कोई और मिलेगा।

मन में धैर्य रखो, पतझड़ के बाद बसंत आना ही है, अमावस के बाद पूर्णमासी आनी ही है, रात के बाद प्रभात का होना ही है, तो दुःख के बाद सुख आना ही है, ऐसा क्यों नहीं सोचते? समझिये! तो क्या करें? पार्ट, संसार में पैन है।
(ट्रैन गुजरती है) देखिये ये ट्रेनें रोज़ पास होती है। हम लोग ईजीली (easily) पास होने देते हैं। मज़ा आता है? आई, चली जाएगी। थोड़ी देर के लिए ऑब्स्टेक्ल (obstacle) है लेकिन वो पास हो गई। सब शांत हो गया। जैसे हम इस ट्रेन को रोज़ पास कर देते हैं, जीवन में आने वाली ऐसी रुकावटों को पास करने का अभ्यास कर लें तो सारी जिंदगी आनंद आएगा। पैन हो, अडवेर्सिटी हो, रेस्टलेसनेस हो या ट्रबल हो; सबको क्या करना है? पास करना है। ‘These are the part of life’, इसको हम चेंज नहीं कर सकते। इसे हम चेंज नहीं कर सकते। ‘It can’t be changed’, हमारे हाथ में ही नहीं है। बोलो! है तुम्हारे हाथ में? तुम्हारे क्या किसी के हाथ में नहीं है। तो क्या करना? इसको बिता देना हमारे हाथ में है, इसे गुज़ार देना हमारे हाथ में है। उसके लिए क्या करना होगा? पेशेंस रखना होगा। जहाँ पेशेंस है, वहां पैन नहीं और जहाँ इमपेशेंस (impatience) है, वहां पैन के सिवा और कुछ नही। सिख लीजिये, जीवन के लिए एक बहुत काम का सूत्र है। इतना सा अपना लो, जीवन धन्य हो जाएगा।

तो पहली बात क्या कही मैंने?- पास, दूसरी बात- पार्ट और तीसरी बात- पास्ट। पास्ट यानि अतीत। अगर इस पार्ट को पास करना है ना तो दो काम करो। दो काम करो, सबको पास करने की ताकत आ जाएगी। अपने पास्ट को देखो, अपने पास्ट को देखो, देखो थोड़ा। तुम्हारे पास्ट में क्या है? पास्ट में देखोगे, झांकोगे तो तुम्हें दिखाई पड़ेगा:- P for प्रॉब्लम (Problem), A for अटैक (attack), S for स्लिप (slip) और T for टोलरेबल (tolerable)। तुम अपने अतीत में देखो। तुम्हारे सामने प्रॉब्लम आयी, तुम पर तरह- तरह के अटैक्स आए, आघात पहुंचा, कई तरीके के आघात- प्रोब्लम हुए, अटैक आये, स्लिप हुए और कई बार तुम फिसले, गिरे। हैं ना? हुआ है ना? प्रॉब्लमस, अटैक और स्लिप, ये जीवन में हुआ है। एक बार नहीं अनेक बार हुआ है लेकिन संत कहते हैं जितनी भी तुम्हारी अतीत की प्रॉब्लम हैं, जितने भी अटैक हैं, जितने भी स्लिप हैं यानि तुम्हारे जीवन की जो भी समस्याएं हैं, आघात हैं और विचलन है, सब टोलरेबल है। सबको तुमने सहन किया और सब टेम्परेरी (temporary) हैं। बोलो! अतीत में तुमने कष्टों को सहा कि नहीं सहा? तुम्हारे सामने प्रॉब्लम आयी कि नहीं आयी? तुम्हारे सामने मुश्किलें खड़ी हुईं की नहीं हुईं? तुम पर आघात हुआ कि नहीं हुआ? तुम कहीं फिसले कि नहीं फिसले? बोलो हुआ? उसके बाद भी तुम्हारा क्या हुआ? तुम जहाँ के तहाँ हो के नहीं? बोलो! इतनी मुश्किलें और मुश्किलों को, कठिनाईयों को पार करके भी आज तुम खड़े हो। तो जब अतीत की प्रॉब्लम, अतीत के आघात और अतीत का फिसलन तुम पार कर गए। वो टोलरेबल हुआ तो पेशेंस रखो, भविष्य में भी जो प्रॉब्लम होगी वो भी पास हो जाएगी। कुछ सोचने की बात नहीं है। अपने अतीत से यदि अतीत के अनुभवों को सामने रख कर के चलो तो भविष्य की जितनी भी परेशानियां हैं, उसको सहने का सामर्थ्य स्वतः प्रकट हो जाएगा। भविष्य की परेशानियों को सहने का? जब हमने अतीत का सहा है तो भविष्य का क्यों नहीं सह सकेंगे? सह सकते हैं के नहीं? और ऐसा कोई व्यक्ति नही है जिसके जीवन में परेशानी ना आई हो। अरे! हमारा जन्म ही प्रसव की वेदना के बाद होता है। जीवन की शुरुआत ही कठिनाईयों से होती है। तो हमने अतीत में जब इतनी कठिनाइयां भोग ली और जीवन का एक लंबा समय बिता दिया तो आगे का भी बीत जाएगा। लेकिन होता ये है- मनुष्य जैसे- जैसे समृद्ध होता है, वैसे- वैसे सहनशीलता घटती जाती है, वो अंदर से कमजोर होता जाता है। जबकि होना ये चाहिए कि समृद्धि के बढ़ते- बढ़ते सामर्थ्य भी बढ़नी चाहिये, सहनशीलता भी बढ़नी चाहिये। और इसका ये कुपरिणाम होता है कि जब लोग आगे बढ़ जाते हैं और अपने अतीत को भुला देते हैं तो जीवन में आने वाले हलके से आघात से भी टूट जाते हैं। शीर्ष पर बैठे हुए लोगों के साथ ये स्थितियां अक्सर देखने को मिलती हैं। उन्होंने अपनी लाइफस्टाइल ही ऐसी बना ली कि अब कुछ भी बरदाश्त नहीं होता है। आपको पता है कि ये डिप्रेशन के शिकार में ज्यादातर कैसे लोग हैं? ज्यादातर सब पढ़े- लिखे, ऊंचे तबके के और पैसा वाले लोग हैं। क्यों? ऊपर जाने के बाद हल्का सा भी झटका बरदाश्त नहीं होता। संत कहते हैं- ‘हमेशा अपने पास्ट को सामने रख करके चलो और ये सोचो मैंने अपनी जीवन की शुरुआत कहाँ से की, उसको कभी मत भूलो तो कभी दिक्कत नही होगी’।

अभी एक सज्जन जिनको व्यापार में काफी नुकसान हुआ और उनके उस नुकसान से उनकी पत्नी और बच्चे बेहद टूट गए। लेकिन उस व्यक्ति ने कहा कि महाराज! इन लोगों से कहो- ये लोग खामखा परेशान हैं। व्यापार में नुकसान है पर मेरा क्या है जो मेरा नुकसान होगा। आप तो रोज़ बताते हैं- मेरा कुछ है नही, एक धेला मेरा नहीं है। और महाराज मैं राजस्थान से गया था (राजस्थान के थे और नार्थ ईस्ट में अपना कारोबार करते थे)। बोले- महाराज! जब मैं राजस्थान से गया था तो किराया भी दूसरे ने दिया था। मेरे पास तो कुछ नहीं था। किसी की मदद से गया था और आज यहाँ आ करके बहुत कुछ कमाया। नुकसान हुआ है लेकिन नुकसान होने के बाद भी आज हमारे पास इतने एसेट्स हैं कि यदि उनको मैं अच्छी तरह से सुलटा दूँ तो आज भी मेरे पास औरों से बहुत अधिक है। और मैं क्या सोचूं? मैंने इतने दिन जो मौज किया, सब प्रकार का सुख भोगा, वो क्या मेरे लिए कम है? ना मैं कुछ लेकर आया था ना कुछ लेकर जाऊंगा। इन बच्चों को दिखती है मेरी समृद्धि और मुझे तो वही फटे कपडे दिखते हैं और दूसरों के वे पैसे दिखते हैं जिनके बल पर मैं यहाँ आया था और आज आगे बढ़ा। मुझे क्या तकलीफ?

अपने पास्ट को याद करो, उससे अनुभव लो, नसीहत लो, आगे बढ़ने की प्रेरणा लो। हाँ, पास्ट को अपने सर पर हावी मत करना। कई लोग हैं जो पास्ट की बातें पकड़ लेते हैं और उलझ जाते हैं। आगे बढ़ने की प्रेरणा, अगर पास्ट को सामने रखोगे, सबको पास कर दोगे। और हम अपने पास्ट, इतिहास में झांक कर देखें। सारे महापुरुषों के जीवन चरित्र को पलट करके देखें। उनके जीवन में ना जाने कैसी- कैसी प्रकार की परेशानियां आई। उन्होंने क्या किया? सबको पास किया। हमें भी क्या करना है? क्या करना है? पास करना है। केवल प्रवचन की सभा में कि बाहर भी? यहाँ तो आप वही बोलते हो जो हम बोलते हैं। कोई अंतर नहीं है। यहाँ हमारी- तुम्हारी भाषा एक और बाहर जाते ही परिभाषा बदल जाती है। जीवन का मज़ा लेना है, जीवन का लुत्फ़ उठाना है तो ये मार्ग है- ‘पास करो’। पास्ट में देखो, महापुरुषों के जीवन में भी मुश्किलें आईं, चाहे तीर्थंकर हों, नारायण हों, चक्रवर्ती हों, बलभद्र हो, कामदेव हो। सबके ऊपर विपत्तियां, मुश्किलें आयीं। हम लोगों के यहाँ संलेखना का जब समय आता है तो उस समय मुनियों के संबोधन में पास्ट की बातें बताई जाती हैं। अतीत- इतिहास में घटित घटनाएं, महापुरुषों के जीवन में आयी हुई विपत्तियों का स्मरण दिला करके, उन विपत्ति भरी स्थिति में उन्होंने कैसे स्थिरता रखी। देखो उनके जीवन में ऐसा कष्ट आया, फिर भी वो विचलित नहीं हुए। देखो उनके सामने इतना उपसर्ग हुआ, फिर भी वो विचलित नहीं हुए। उनको ऐसी परेशानी झेलनी पड़ी तो भी उनको रंच मात्र विचलित नहीं हुए। तो जब वो सब विचलित नहीं हुए तो तुमरे जी कौन दुःख है? मुक्ति महोत्सवारी।

फिर तुम तो उनके सामने कुछ नहीं। उन्होंने बड़ी- बड़ी पीडा को पी लिया तो तुम्हारे पास तो कुछ भी नहीं है। ‘कुछ भी नही है, सब ठीक है’, ये जीवन में दृष्टि होनी चाहिए। पास्ट को याद करोगे- प्रेरणा मिलेगी, पास्ट को भुला दोगे तो कभी आगे नहीं बढ़ पाओगे। समझ गए आप? आप फ़ास्ट बनना चाहते हैं। सब चीजें क्या करना चाहते हैं? फ़ास्ट। अरे भैया! फ़ास्ट हैं, करो लेकिन पास्ट को कभी मत भूलो। तुम सुपरफास्ट होओ, हमें उससे कोई दिक्कत नहीं लेकिन पास्ट को तो सामने रखो, प्रेरणा लो। अपने जीवन से ही हम बहुत सारी प्रेरणा ले सकते हैं। अतीत की भूलों और गलतियों से यदि हम सीख लें तो भविष्य को उज्जवल बनाया जा सकता है। वर्तमान को सुधारने के जरिए वर्तमान को सुधारें और भविष्य को आगे बढ़ाएं। तो पास, पार्ट, पास्ट। पास्ट क्या बताता है? सब ये पार्ट है, इसको पास करो। जैसे औरों ने पास किया है वैसे हम भी पास करेंगे।

श्री कृष्ण के जीवन को देखो। जन्म कैसा हुआ? माँ का दूध भी नहीं पी पाए। नंदगांव में उनका लालन- पालन हुआ। नारायण होकर ग्वालबाल की तरह रहना पड़ा और उसके बाद आगे जीवन भर कंस और जरासन्ध ने उनके विरुद्ध कितने प्रकार के कुचक्र रचे। कितनी प्रकार से उनको मारने की कोशिश की। लेकिन उनका कुछ बिगड़ा? सब जगह निकलते गए, निकलते गए, निकलते गए। इतना ही नहीं बाद में बेटा हुआ कामदेव तद्भव मोक्षगामी प्रद्युम्न। छठे दिन अपहरण हो गया। श्री कृष्णा जैसे नारायण के बेटे का अपहरण। सोच लो! कितनी हाई सेक्युरिटी होती है, उनका सारा खुफिया विभाग धरा रह गया। पता नहीं चला किसका अपहरण? नारायण के बेटे का अपहरण। उसका अपहरण जिसका चाचा तीर्थंकर हो- नेमिनाथ, एक चाचा बलदेव और जिसका दादा कामदेव (श्री कृष्णा के पिता वासुदेव भी कामदेव थे)। देखो इतने पुण्यशाली महान आत्मा के जीवन में ऐसा दुःख। पिता नारायण, दादा कामदेव, चाचा तीर्थंकर और बलभद्र, एक घर में कितने महापुरुष और खुद भी कामदेव (प्रद्युम्न खुद कामदेव)। कितने हो गए? पांच। उसका भी किडनैप हो गया। हांलाकि कुछ बिगड़ा नहीं। छः दिन के बच्चे के ऊपर शिला रख दी, पर पुण्य का चमत्कार था, शिला हिलती रही श्वासों से, उनका कुछ नहीं हुआ और बाद में प्रद्युम्न मिला तो जवान होने के बाद मिला, सोलह बरस के बाद। वो कहीं रोए- धोए, विचलित हुए, कोई मड़िया और मंदिर में पूजने के लिए गए, माथा टेका, किसी से नारियल माँगा, किसी से मंत्र माँगा, किसी से तंत्र माँगा। क्या किया? विचार करो। पास्ट में जीने वाले महान आत्माओं के जीवन से कुछ प्रेरणा लो। तुम लोग थोड़ी- थोड़ी बातों से टूट जाते हो। इसीलिए सारी ज़िन्दगी रोने के लिए मजबूर होते हो। तो क्या हुआ? ये पास्ट है कितनी बातें हो गई? थोड़ा सा चेक भी करना चाहिए। कितनी हुई? तीन ना! दोहराना है? आपको पास, पार्ट और पास्ट। बस पार्ट मानो, पास्ट को सामने रखो, सब पास हो जाएगा।

और आखिरी है पाथ। पाथ का मतलब- रास्ता। यही एक पाथ है, दूसरा कोई पाथ नहीं है। जीवन में सुखी होना चाहते हो तो उसका एक ही पाथ है- जो कुछ भी घाटे उसको पास करो। कैसे पास करो? इसे लाइफ का पार्ट मानो और पास्ट से अनुभव लेकर पास कर दो। पाथ! पाथ क्या है? पाथ की स्पेलिंग क्या है? Path.
P- पॉजिटिव (positive) बनो हमेशा। पॉजिटिव बनो। हर दिशा में पॉजिटिव बनो। ज़िन्दगी में कभी दुःख नहीं आएगा। A- अवेयर (aware), जागरूक रहो। सतर्क रहो। सावधान रहो। आँखें खोल कर रखो।

P- पॉजिटिव, A– अवेयरनेस रखो और T से थेंकफुलनेस (thankfulness) रखो और H– ‘be happy, it is the part of life’
इस पाथ को अंगीकार कर लो तो तुम्हारे जीवन में P फ़ॉर प्लेजर (pleasure) बना रहेगा। सारी ज़िन्दगी आनंद में मग्न रहोगे। समझ गए तो अपने आपको प्लेजर से भरो। इस पाथ को अंगीकार करो, एक सीधा सा रास्ता है। अगर हमने इसे स्वीकार कर लिया, अंगीकार कर लिया तो निश्चित तौर पर वह हमारे जीवन की एक बड़ी उपलब्धि होगी और हम अपने जीवन को आगे बढाने में समर्थ हो सकेंगे। तो ‘आप सब अपने जीवन में घटित घटनाओं को पास कर सकें, इसे अपने जीवन का पार्ट मानें, पास्ट से कुछ नसीहत लें और ज़िन्दगी में हमेशा प्लेजर मिले, ऐसे पाथ को अंगीकार कर सकें’ इस भाव के साथ, समय आप सब का हो गया है। यहीं पर विराम दे रहा हूँ।

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