Letter M

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Letter M

छोटा बच्चा जब चलना शुरू करता है, तो दुर्बलतावश वह कई कई बार गिरता है। गिरता इसलिए है क्यूँकि उसके पाँव में बल नहीं है, वो अशक्त होता है। लेकिन गिर-गिर करके ही वो चलना सीखता है, बार-बार गिरता है फिर चलता है और चलते-चलते वो संभल जाता है, चलना भी सीख जाता है। एक प्रकार का पतन है- स्खलन है, गिरना है लेकिन ये स्खलन ही व्यक्ति को मजबूत बनाता है, बल देता है और एक दूसरी प्रकार की चूक है जिसमे मनुष्य गिरता है तो केवल गिरते ही जाता है। हमारे जीवन मे कई तरह की चूक होती है। एक चूक जिससे हम सीख लेते हैं, संभलते हैं और एक चूक जिससे हम अपना सर्वनाश कर लेते हैं, जिसमे हमारा पतन होता है। एक चूक है जो हम दुर्बलतावश करते हैं, असक्ततावश करते हैं, नादानी और नासमझी में करते हैं।

छोटा बच्चा जो भी चूक करता है वो अपनी दुर्बलता से करता है असक्ततावश करता है नासमझी और नादानी के कारण करता है लेकिन उसकी वो चूक उसे संभाल लेती है पर एक चूक है जिसे हम जानबूझ करके करते हैं, होशहवास में करते हैं वो चूक होती नहीं हमारे द्वारा की जाती है। वो हमारा सीधे पतन करती है और कुछ नहीं। ये दो प्रकार की चूक है। चूक यानी मिस्टेक (Mistake).

आज बात मुझे M पर करना है। M यानी ‘म’। संस्कृत में कहा जाता है, एक अव्य है- म। म- निषेद के अर्थ में। मत करो, इसे रोको, इसे बंद करो, ऐसा मत करो।

आज मैं आपको M के माध्यम से यही कहना चाहता हूँ M का मतलब होता है- मिस्टेक। बहुत सारी मिस्टेक होती हैं, जन्म से मिस्टेक होती है। गलतियाँ हमसे होती लेकिन आज मैं आपको चार बातों से बचाना चाहता हूँ।

आम जीवन की जो भी त्रुटियाँ है वो रहे, उन मिस्टेक से मुझे कोई प्रयोजन नहीं है पर आज मैं आपको चार बातों से बचाना चाहता हूँ। चार जगह अपने आपको बचाइए।

सबसे पहली बात- मिसबिहैव (Misbehave). कभी किसी से मिसबिहैव मत करें। मिसबिहैव मतलब- दुरव्यवहार। आपको पता है कि कभी किसी का आपको कोई मिसबिहैव करता है तो आपको कैसा फील होता? आपसे अच्छा बेहवे करे आप उसके कायल होते हैं और कोई आपके साथ मिसबिहैव करे, दुरव्यवहार करे तो बुरा लगता। मिसबिहैव किसको बोलते? मिसबिहैव का मतलब- कहीं आप गये, आपको इर्रेस्पेक्ट (irrespect) मिला, अनादर मिला, चार आदमी के सामने किसी ने आपकी इंसल्ट कर दी, आपके लिए कुछ अपशब्द बोल दिया, आपको उचित सम्मान नहीं दिया, आपका तिरस्कार कर दिया, आपकी अवज्ञा कर दी, ऐसी कोई बात बोल दी जो मन को चुभ जाये, ये सब क्या है? मिसबिहैव है। और जो व्यक्ति आपके प्रति मिसबिहैव करता है आपके हृदय में उसके लिए स्थान रहता है? नहीं रहता, वो आदमी दिल से उतर जाता है। मैं आपसे केवल इतना कहना चाहता हूँ, जैसे किसी दूसरे के मिसबिहैव से वह आदमी मन से उतर जाता है, तुम किसी दूसरे के प्रति मिसबिहैव करोगे तो क्या उसके मन में तुम्हारे प्रति लाईकिंग रहेगी? कभी विचार किया? वो लाइक करेगा, तुम्हें पसंद करेगा, तुम्हें चाहेगा, उसके दिल में जगह पाओगे, कभी नहीं पाओगे ना? तो आज से तय करो कि हम किसी के साथ मिसबिहैव नहीं करेंगे और इसकी शुरुआत अपने घर से करो। अपने दफ्तर से लौट करके आये, अपनी दुकान से लौट करके आये और घरवाली पर झल्ला पड़े चार नौकरों के सामने, ये तुम्हारा मिसबिहैव नहीं है? बोलो, क्या असर होगा उस पर? बच्चा है उसने कोई गलती की, सबके सामने दस बातें सुना दी, ये मिसबिहैव है कि नहीं? पिता ने बेटे कुछ कहा चार आदमी के सामने, टका सा जवाब दे दिया, मिसबिहैव है या नहीं? किसी की अवज्ञा, तिरस्कार,भर्तस्ना, असम्मान ये सब मनुष्य के दुरव्यवहार की श्रेणी में आते हैं, और ऐसे दुरव्यवहार का परिणाम बहुत बुरा होता है। अपने व्यक्तित्व्य को ठीक तरीके से व्यवस्थित करना चाहते है, विकसित करना चाहते हैं तो अपने बिहेवियर का ख्याल रखिये, आप किसी से अच्छा व्यव्हार न कर सको तो उतना नुक्सान नहीं, पर कम से कम बुरा व्यव्हार तो मत करो। किसी को सम्मान नहीं दे दे सकते तो न सही पर कम से कम अपमान तो मत करो। किसी का सत्कार नहीं कर सकते तो न सही पर कम से कम किसी को दुत्कारो तो मत।

क्या करते है आप? अपने बिहेव की समीक्षा कीजिये और देखिये अपने भीतर अपनी कसौटी पर खुद को कसकर के देखिये कि मेरा जो बिहेव है वो सही है कि उसमे मिस लगा है। बिहेव तो है, कैसा है? मिसबिहैव कभी नहीं होना चाहिए। तो पहली बात किसी के साथ मिसबिहैव मत करो और कोई तुमसे मिसबिहैव करे तो उसे इग्नोर (ignore) करो।

सिद्धांत बनाओ अपनी पर्सनालिटी को अच्छा बनाना चाहते हो और अपने मन को हमेशा प्रसन्न रखना चाहते हो तो किसी के साथ मिसबिहैव नहीं करो, अच्छा बिहेव करो। अगर तुम ये करोगे तो हर व्यक्ति के मन में तुम्हारे प्रति चाहत बढ़ेगी, लाईकिंग बढ़ेगी और दूसरों के मिसबिहैव से तुम प्रभावित नहीं होगे तो तुम्हारे मन की प्रसन्नता टिकी रहेगी। आप देखिये, अपने मन से पूछिये कोई तुम्हारे लिये थोड़ा सा भी दुरव्यवहार करता है, मन अशांत और उद्वलित हो उठता है, उसको बर्दाश्त नहीं कर सकते तो भाई जब तुम दुसरो के दुरव्यवहार को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो ये भी तो सोचो दूसरा भी तुम्हारे दुरव्यवहार को बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसलिए अपने जीवन के प्रति जागरूक होइये और अपने बिहेव के प्रति सावधान हो जाइये।हम हम किसी के साथ मिसबिहैव नहीं करेंगे, ये जीवन में आना चाहिए ये गुण आना चाहिए। तो पहली बात मिसबिहैव से बचें। मैं कहता हूँ ज्यादा व्याख्यान देने की जरुरत नहीं है। आपको पता है कहाँ-कहाँ मिसबिहैव होता है, किसी भी क्षेत्र में किसी के साथ भी मिसबिहैव नहीं करना ये हमारा धर्म सिखाता है और

दूसरी बात मिसगाइड (Misguide) होना, किसी को मिसगाइड मत करो और किसी से मिसगाइड मत हो।

मिसगाइड करने का मतलब किसी को गुमराह करना, भड़काना, बहकाना, उलझा देना, मिसगाइड करना। कान भरना।

आजकल ऐसे लोग बहुत है।एक हुई थी रामायण काल में मंथरा, उसने कैकई को मिसगाइड किया उसके कान भरे। रामचंद्र जी का वनवास हो गया। वो मंथरा रामायण काल में हुई, त्रेता युग में चले गई पर देखो आज भी उस मंथरा का कितने प्रकार का संस्करण सबके भीतर बैठा है। कितने प्रकार का वो मंथरा का संस्करण या वो मंथरा कितने रूपों में तुम्हारे अंदर है। ये मिसगाइड करना बहुत जघन्य कृत्य है, उथले व्यक्तित्व्य की पहचान है। जो मनुष्य गंभीरता से जुड़ा होता है न तो किसी को मिसगाइड करता है न किसी से मिसगाइड होता है पर कुछ लोग होते हैं उनकी कुछ प्रवृत्ति ही ऐसी बन जाती है उनको दूसरों को उकसाने में, भड़काने में, लड़वाने में, भिड़ाने में रस आता है, वो हर जगह आग लगाने में माहिर होते हैं, बिना मतलब इधर की उधर करते हैं, ये किस काम का। ये बहुत बड़ी क्षुद्रता और नीचता है, कभी नहीं करना। हमारे यहाँ सत्यव्रत के अतिचारों में एक अतिचार आता है- ‘मिथ्योपदेश’।

मिथ्योपदेश का मतलब- गलत सलाह, मिसगाइड करना। एक बहुत बड़ा पाप है। कोई व्यक्ति किसी कारण से परेशान हो और तुमसे मार्गदर्शन लेने के लिये आये और तुमने उसको उल्टी सलाह दे दी वो तुम्हारी सलाह पर चल दिया और नुकसान पाया, तुम्हें तो कुछ नहीं मिला, उसका कितना नुकसान हुआ, सोचो। अगला तुम पर विश्वास और भरोसा करके तुम्हारे पास आया और तुमने उसका सफाया कर दिया, कतई उचित नहीं। कुछ लोगों की प्रवृत्ति होती है। बात-बात में किसी-किसी के प्रति किसी-किसी को भड़काने की, उल्टी सलाह देने की। मान लीजिये दो भाइयों में आपस में कोई खींचा तानी हो गई, अब एक भाई आपके पास आया, क्या करेंगे आप? उसके शुभचिंतक बन करके उसके सलाहर बन करके आप उसको और भड़काएँगे- कोई कोम्प्रोमाईज़ मत करना, आज का ज़माना ऐसा नहीं है, जितना खींच सको तो खींचना, अपना उल्लू सीधा करो, तुम्हारे भाई ने तुम्हारे साथ बड़ा अन्याय किया है और तुम्हारे पिता ने तुम्हारे साथ पक्षपात किया है, बोलो यही करते हैं। कायदा क्या कहता है? कायदा कहता है कि वो व्यक्ति किसी नकारात्मकता से प्रभावित होकर आया है तो आप उसे इतनी अच्छी सलाह दो कि उसकी सोच बदल जाए।

एक पिता के दो बेटे, पिता का झुकाव छोटे बेटे के प्रति हो गया। दोनों बेटों में मतभेद हो गया। मतभेद गहरा था और बड़े बेटे को लगा कि पिताश्री छोटे बेटे के प्रति विशेष रुझान रख रहें है तो उसको बड़ी तकलीफ होने लगी। पिता के प्रति भी कुछ गांठ सी बनने लगी। बात मेरे पास आई। मैंने उसे समझाया, उसके मन को शांत किया और हमने कहा- पिता है, पिता ने तेरे को योग्य बना दिया, उनकी अब तक की कृपा है, क्या कम है? अपने पिता के एक निर्णय से प्रभावित होकर के तू अपने पिता से दूरियाँ बना रहा है, ये तेरे जैसे समझदार व्यक्ति के लिए योग्य नहीं है। मैं तुमसे कहना चाहूंगा- सब खो देना अपने पिता को मत खोना, जा अपने पिता के चरणों में शीश झुका और कह पिताजी आपकी हर आज्ञा मुझे स्वीकार है, मुझे और कुछ नहीं चाहिए मुझे केवल आपकी आवश्यकता है। आप जो निर्णय दें, जो फैसला दें मुझे स्वीकार है। उसको बात समझ में आ गई। पहले जिस पिता को पक्षपाती कह रहा था उसके मन का पक्षपात निकल गया। वो गया अपने पिता के चरणों में, वैसा ही कहा, पिता उसके वचनो से प्रभावित हो गये और आज वो बहुत खुश है और आज कहता है- महाराज! आपके एक वचन ने मुझे मेरे पिता से जोड़े रखा। आज पिताजी मेरे पास हैं और वो बहुत खुश हैं, मैं भी खुश हूँ, पिता भी खुश हैं, भाई भी खुश है।

एक सही सलाह मिल गई तो जीवन सुलझ गया और गलत सलाह दी जाती, भड़काने की बात की जाती, कहा जाता झुकना नहीं है, कोई कोम्प्रोमाईज़ नहीं करना है। ध्यान रखना ऐसे करने से व्यक्ति बाहर कि लड़ाई जीत जाये पर जीवन की जंग हार जाता है। बाहर की लड़ाई जीतना आसान है। जीवन की जंग जीतना बहुत कठिन है, हम आप सबसे कहना चाहते हैं- कभी किसी व्यक्ति के लिए मिसगाइड करने कि कोशिश मत करना क्यूँकि कुछ लोग हैं जिनका यही धंधा है, वो तुम्हें उक्सायेंगे, वो तुम्हें भड़काएंगे, तरह-तरह से कान भरेंगे, तुम्हें लड़वाएंगे और मजा लेंगे। वे लोग आग लगाकर अपनी रोटियाँ सेंकने में माहिर होते हैं। कभी ऐसे लोगों का भरोसा मत करना पर आप लोग क्या करते हैं? तुरत रियेक्ट करते हैं। मान लो आपको किसी व्यक्ति ने आकर के कहा- मैं अभी आ रहा हूँ अमुख व्यक्ति तुम्हारे बारे में ऐसा कह दिया और दो चार नमक मिर्च लागकर के सुना दिया। अब बोलो आप क्या करोगे? अच्छा! उसने मेरे बारे में ऐसा कहा आने दो अभी देखता हूँ मुझे अभी उसने पहचाना नहीं है अभी देखता हूँ; बोलो कुछ इसी तरह की प्रतिक्रियाएँ होगी कि नहीं अथवा परिस्थितियाँ अनूकूल न होने के कारण मन मसोसकर भी रह जाओ लेकिन अंदर ही अंदर आग उत्त्पन्न होगी कि नहीं? होती है। बात निराधार भी हो सकती है, सामने वाले ने कहा, आपने बिना जांच पड़ताल के उसे स्वीकार कर लिया जबकि जिस व्यक्ति ने आपको बताया है वो व्यक्ति चाटुकार है, चापलूस है, आपका सच्चा हितेक्षु नहीं है, शुभचिंतक नहीं है। यदि वो आपका शुभचिंतक होता तो आपसे आकर के यह कहता कि भइया वहाँ वो कह रहा था पर मैने उसे कह दिया जिस आदमी के बारे में कह रहे हो मैं उसे अच्छी तरह जानता हूँ वो आदमी ऐसा है ही नहीं। तुम्हारी गलत धारणा है। चलो मेरे साथ चलो मैं तुम्हें इन सब चीजों का स्पष्टिकरण देता हूँ। कायदा तो यह होना चाहिये। अगले ने क्या किया बात को पास ऑन कर दिया और पास ऑन भी ज्यों का त्यों नहीं किया, अच्छे तरीके से प्रसंस्कृत करके, प्रोसेस करके यानि जायकेदार बनाकर परस दिया। आपने क्या किया? आग सुलगा दी। कहते हैं न कि ‘कुछ लोग कान के कच्चे होते हैं’, कान के कच्चे होने का मतलब क्या होता है? ‘किसी की बातों में आ जाना’ यह तो मुहावरा है। इसका मतलब बताऊँ- एक बच्चे से किसी ने बोला भैया! देख कौआ तेरा कान ले गया। वो कौआ की तरफ भागने लगा, अरे भैया कान देखो ना। कान यहाँ है तो कौआ ले कहाँ जाएगा। जिससे कहा जाये कौंआ तेरा कान ले गया वो व्यक्ति कान की तरफ देखने के बजाये कौंआ की तरफ भागे तो समझ लेना वो व्यक्ति कान का कच्चा है। आप लोग अपने आप से पूछिए कोई बात आप तक आती है तो आप उसके विषय में जांच पड़ताल करते हो कि सीधे फायर हो जाते हो सामने वाले पर? क्या होते हो? महाराज! यहाँ इतनी सबर नहीं है, ऐसी बात बर्दाश्त करें संभव ही नहीं। उसी का परिणाम रोज भोगते हो, वहाँ आपने आपको संभालिये, वहाँ सजग होइए तब हमारा जीवन सफल होगा।

दो भाई दोनों में बड़ा प्रेम था, दोनों का अलग अलग कारोबार था। एक भाई के यहाँ सेल टैक्स के कुछ अधिकारी आये, बातचीत के क्रम में छोटे भाई की बात आई तो बड़े भाई ने कहा- भैया उसकी माली हालत बहुत ख़राब है, बहुत ज्यादा पूरा धंधा चौपट हो गया है और बाजार की भी देनदारी है अभी तो उसकी हालत ही ख़राब है। एक आदमी वहाँ बैठा था उसने सुन लिया, आकर के वही की वही बात बढ़ा चढ़ाकर करके छोटे भाई से कह दी। बोले- भैया अभी मै तुम्हारे भैया की दुकान से आ रहा हूँ, तुम्हारे बारे में बहुत गलत भ्रांतियाँ फैला रहे हैं। अभी वो सेल टैक्स के ऑफिसर आये थे उनके सामने ऐसाा ऐसा कह दिया कि उसका तो पूरा धंधा चौपट है, बहुत कर्जदार है, उसके पास कुछ भी नहीं बचा है, वो किसी के लायक नहीं है और क्या bataun उस समय कई व्यापारी भी बैठे थे अब तो तुम्हारा पूरी रेपुटेशन ख़त्म हो गई। बाजार में कोई माल भी नहीं देगा, अब तुम धंधा कैसे करोगे। बोल दो अगर ऐसी घटना आपके साथ हो तो आप क्या करेंगे? ताव में आ जायेंगे बचाव में नहीं है ना? अच्छा, मेरा भैया मेरे लिए ऐसा कहता, लेकिन उस भाई ने जो जवाब दिया बहुत ध्यान देने लायक है- उसने कहा- नही, मेरे भैया ऐसा नहीं कह सकते। मैं अपने भैया को जानता हूँ, शुभचिंतक है, मेरे प्रेमी है। भैया मेरे बारे में ऐसा नही कह सकते और यदि कहा भी हो तो उसके पीछे उनकी भावना कुछ और होगी। मैं भैया से बात करूँगा। आप चिंता मत करो। उसको तो वहाँ से विदा किया, गया भैया के पास- भैया आपने मेरे बारे में किसी से ऐसा कहा क्या? बोले- हाँ कहा, ऐसा ऐसा कहा? बोले- क्यों कहा? बोले- वो सेल टैक्स वाला था, पैसा खोजता था, मेरे पैसे तो लग गये, मैंने सोचा तेरे न लग जाये तो एक रास्ता निकाल दिया। अपन बनिया आदमी, मैंने रास्ता निकाल दिया। देखिये अगर मनुष्य के अंदर समझदारी हो तो हर अच्छाई देखेगा और जो मनुष्य नासमझ होते हैं वो अच्छे में भी बुरा देखेगा।

मैं आप सबसे कहना चाहता हूँ अगर कोई व्यक्ति आपके विषय में कोई बात आकर के कहता है तो उसकी बात पर जल्दी से भरोसा मत करो। सबसे पहले सामने वाले से जाकर के बात करो और उसके आशय को समझो, उसके अभिप्राय को समझो, उसे सत्यापित करो, उसके बाद अपनी कोई धारणा बनाओ। अन्यथा अगर आप मिसगाइड होंगे तो जीवन कभी सुखी नहीं बन सकेगा। समझ गये,तो क्या करना है आज से मिसगाइड किसी को नहीं करना और किसी से मिसगाइड नहीं होना। सावधान रहना, कदम-कदम पर लोग मिसगाइड करने वाले बैठे हैं। ऐसे लोग तो फिर भी मिल जायेंगे जो किसी को मिसगाइड न करें पर किसी से मिसगाइड न हों ऐसे लोग विरल हैं। अच्छे-अच्छे लोग सुनी सुनाई बातों पर धारणा बना लेते हैं बदल लेते हैं, ठीक तरीके से सोचिये, ठोस तरीके से सोचिये। जीवन को सही दृष्टि से देखने की कोशिश कीजिये। तो पहली बात- मिसबिहैव मत करें, दूसरी बात- मिसगाइड न करे।

तीसरी बात- मिसकंडक्ट (Misconduct) से बचें।

मिसकंडक्ट मतलब कदाचार, दुराचार। जीवन में किसी प्रकार का कदाचार मत आने दीजिये। कदाचार शब्द बहुत व्यापक है हर क्षेत्र में कदाचार है। आप उन तमाम प्रकार के कदाचारों से तो बचे ही जो हमारे नैतिक और सामाजिक मर्यादाओं से बाहर है लेकिन कुछ ऐसे भी कदाचार कदाचार मतलब कुत्सित आचार, खोटा आचार दूसरे शब्दों में दुराचार भी बोल सकते हैं उनसे अपने आपको बचायें।

कहाँ-कहाँ कदाचार से बचना है- पारिवारिक कदाचार से बचें, सामाजिक कदाचार से बचें, व्यापारिक कदाचार से बचें और धार्मिक कदाचार से बचें।

पारिवारिक कदाचार का मतलब क्या है? अपने परिवार से बेवफाई करना अपने परिवार के प्रति बेवफा बन जाना, वफादार न रहना ये पारिवारिक कदाचार का एक रूप है। अपने माँ-बाप को वृद्धआश्रम में भेज देना, उनकी ठीक तरह से परवरिश नहीं करना, उनकी सेवा-सुश्रुषा नहीं करना, उनका मान-सम्मान नहीं रखना ये पारिवारिक कदाचार का ही रूप है। पति का पत्नी को सम्मान नहीं देना, उसके साथ दुरव्यवहार करना, उसे तरह-तरह से प्रताड़ीत करना, डोमेस्टिक वोइलेंस करना, घरेलू हिंसा करना या पत्नी का अपने पति का योग्य सम्मान नहीं करना, उसको दुत्कारना, उसकी अवज्ञा करना, उसका तिरस्कार करना या शील सयंम सदाचार की मर्यादा का उल्लंघन कर देना ये पारिवारिक कदाचार का एक दूसरा रूप है। इस प्रकार के अनाचार करना, जिससे परिवार की प्रतिष्ठा लुंठित होती हो, परिवार की मर्यादा छिन्न-भिन्न होती हो, जिससे परिवार में संकट खड़े होते हों वो पारिवारिक कदाचार है । यह भी परिवार के कदाचार का एक रूप है और अपने भाई बंधुओं की संपत्ति को हथियाने की कोशिश करना, सर्वादिक लाभ खुद लेने की कोशिश करना ये भी पारिवारिक कदाचार का रूप है। अपने भीतर झाँक के देखो कहीं तुम अपने परिवार के प्रति मिसकंडक्ट से तो नहीं जुड़े । यदि जुड़े हो तो आज से दूर करो ।  कहीं कोई मिसकंडक्ट हो, परिवार के प्रति, फैमिली के प्रति वफादार बनो । उनके प्रति कदाचारी बनो। ये आपको सुनिश्चित करना है अपने भीतर झांक करके देखें और यदि ऐसा करेंगे तभी हमारा जीवन सुधरेगा।

दूसरा है- सामाजिक कदाचार।  हम समाज में रहते है और सामाजिक मर्यादाओं की उपेक्षा करना सामाजिक कदाचार है । समाज की रीतियों और नीतियों के विरुद्ध जाना सामाजिक कदाचार है ।  ऐषणा आचरण करना जिससे समाज की प्रतिष्ठा खंडित हो सामाजिक कदाचार है । व्यक्तिक लाभ की चाह में समाज का नुक्सान पहुँचाना सामाजिक कदाचार है। किसी के अहसान को भुला देना, किसी के प्रति अकृतज्ञ बन जाना सब सामाजिक कदाचार की श्रेणी में आता है। किसी ने आपका उपकार किया, आपने भुला दिया दूसरा देख के सोचेगा जमाना ख़राब है, किसी को कुछ देने से कोई फायदा नहीं । देने वालों कि दशा ये होती है नही देने में ही अच्छा है ।  एक व्यक्ति के उस कदाचार से सैकड़ों वे लोग प्रभावित होते हैं जो लाभ कि आकांक्षा से खड़े हैं। आप जिस समाज में रह रहे हो उस समाज का तुम्हारे जीवन निर्माण में बहुत बड़ा योगदान है, जिस परिवार में तुमने जन्म लिया उस परिवार का तुम्हारे जीवन के निर्माण योगदान है, तो तुम्हारी ये जवाबदारी बनती है कि तुम परिवार के प्रति वफादार बनो, समाज के प्रति जिम्मेदार बनो । ऐसा कोई कृत्य या काम न करो जिससे समाज को नुकसान होता हो। आप सुनिश्चित कीजिये समाज के कोई भी अंश को नुक्सान पहुँचने वाला मैं कोई कार्य नहीं करूँगा क्यूँकि ऐसा सब काम मिसकंडक्ट कहलाता है । वो व्यक्ति अपनी उन्नति नहीं कर सकेगा । मैं आपसे कहुँगा- आप कितना भी पूजा पाठ करो, दान धर्म करो, व्रत उपवास करो,सेवा- सुश्रुषा करो, साधु समागम करो वो एक तरफ और तुम्हारे द्वारा किया जाने वाला ये मिसकंडक्ट एक तरफ। अगर अपने कंडक्ट को सुधार लिया तो तुम्हें लाभ ही लाभ है और सबकुछ करने के बाद तुमने मिसकंडक्ट को अपनाया तो समझो तुमने बहुत कुछ मिस कर दिया, खो दिया, समाप्त कर दिया, जीवन ही खो दिया। ऐसे मिसकंडक्ट से अपने आप को बचाइये।

व्यापारिक कदाचार क्या कहलाता है? बहुत सारे कानून भी हैं इसमें- सोशल के लिए भी बहुत सारे कानून हैं, फैमिली के लिए भी बहुत सारे कानून है। पर कानून मनुष्य को सदाचारी नहीं बनाता, धर्म ही मनुष्य को सदाचारी बना सकता है। सरकार लाख कानून बना दे वो व्यवस्था को सुधारने की चेस्टा कर सकती है व्यक्ति को सुधारने की बस की बात सरकार के पास नहीं है। व्यक्ति to केवल धर्म और अध्यात्म की सोच से ही सुधर सकता है और व्यक्ति सुधरेगा तभी समाज तरेगा।

बहुत सारे कानून है- फैमिली के साथ कदाचार करते हो उसके भी कानून है। समाज के साथ कदाचार करते हो उसके भी कानून है। आई पी सी(IPC) के सारे जितने भी नॉर्म्स (Norms) हैं रुलिंग्स (Rulings) है वे सब इन्ही के लिए हैं। व्यापार में आपने कदाचार किया तो बहुत सारी सजा का प्रावधान है लेकिन उसके बाद भी लोग उन कदाचारों से नहीं बचते।

व्यापारिक कदाचार क्या है? जो स्थूल कदाचार है जिसे कानून में कदाचार कहा जाता है वो तो मैं समझता ही हूँ आप भी समझते हैं मिलावट करना, नापतोल में कमती बढ़ती करना, विश्वासघात करना, धोखाधड़ी करना। ये सब कदाचार की श्रेणी में आता है लेकिन इसके अलावा भी कदाचार है। कमिटमेंट फुलफिल (commitment fulfill) न करना व्यापारिक कदाचार है। अपनी प्रमाणिकता को ताक पर रख देना व्यापारिक कदाचार है, सार संछेप में कहूँ तो अपने बिज़नेस के जो एथिक्स (Ethics) हैं उनको भुला देना ये सब व्यापारिक कदाचार के अंतर्गत आता है। व्यापार करते समय नैतिकता और प्रमाणिकता को तिलांजलि दे देना, हिंसा और शोषण के रास्ते को अंगीकार कर लेना ये सब व्यापारिक कदाचार की श्रेणी में आते है। ऐसा कदाचार जीवन में कभी नहीं होना चाहिए। व्यापार करो पर ठीक ढंग से करो। जीवन के निर्वाह के लिए जीविका का विधान भगवान् ने सबके लिए दिया पर कहा जीविका करो पर सम्यक आजीविका हो अनीति के साथ व्यापार मत करो, बेईमानी के साथ व्यापार मत करो, धोखादड़ी और विश्ववसघात के साथ व्यापार मत करो तब कहीं जाकर तुम अपने जीवन में कुछ उपलब्धि हासिल करोगे अन्यथा जीवन में कुछ भी उपार्जित होने वाला नहीं है। और धार्मिक कदाचार का मतलब? बाहर तो तुम अच्छा रूप बनाये हुए हो और भीतर पापाचार पल रहा है। ये आत्मवंचना धार्मिक कदाचार है। स्वयं के प्रति कदाचार।

(41:09) विषयेभ्यो परवर्तेः योआस्ते मन्षःस्मरन उवेशाम् इन्द्रियनाम् सः मिथ्याचारः निगद्ध्थेः।

बहार से तो सब छोड़ दिया मन में सब पल रहा है। लोक की दृष्टि में सदाचारी है, परमार्थ की दृष्टि में कदाचारी है, मिसकंडक्ट है। बगुला भक्त मत बनो। ये धार्मिक कदाचार है और ऐसे कदाचारिओं के कारण धर्म बदनाम होता है। रोज इस तरह के बगुला भक्तों का पर्दा फाश हो रहा है ये कतई नहीं होना चाहिए। ये सब मिसकंडक्ट है और लोगों की आस्था से खेलना है। धार्मिक कदाचार हमारी धर्म सम्बन्धी जो भी प्रतिबद्धतायें हैं उसका उलंग्घन कर देना- धार्मिक कदाचार। धार्मिक नियमों और कायदों से विमुख हो जाना धार्मिक कदाचार है। ऐसे कदाचारों से बचिये, व्यसन और बुराईयों से दूर रहें ही साथ ही साथ अन्य जो वर्जनाएँ हैं जिनका निषेध किया गया है। उनसे भी अपने आप को बचाइये। धर्म संबंधी ऐसा कोई कार्य नहीं करूँगा, धर्म क्षेत्र में आकर जिस से मेरी धार्मिक मर्यादायें विनष्ट होती हों तब आप सच्चे अर्थों में धर्मी कहला सकोगे। अन्यथा धर्मी होकर भी आप मिसकंडक्ट से जुड़े रहोगे तो मिसबिहैव, मिसगाइड, मिसकंडक्ट और चौथा है- मिसयूज़ (Misuse)। मिसयूज़ मतलब दुरूपयोग, किसी का मिसयूज़ मत करो। अपने जीवन का मिसयूज़ मत करो।

नंबर वन- जीवन का मिसयूज़। बोलो, आप जीवन का यूज़ कर रहे या मिसयूज़? आप बताइये और आखरी तक वही करने का तय कर रखा है? बड़े शान से बोल रहे हैं जीवन का मिसयूज़ कर रहे हैं। क्या करें, इतना हम लोग बोलते हैं पर तुम लोगों का बल्ब फ्यूज है। ये कह रहे कि इतने ईमानदार तो हैं की सच बोल रहे। ये लोग ईमानदार नहीं ये बड़े चालाक लोग हैं इन्हें पता है कि ये सब पूँछ पकड़ के स्वर्ग जाएँगे इसलिए चलने दो जो चल रहा है। महाराज का काम है, महाराज तो बोलते है। कहाँ जा रहे हैं? हम जीवन का मिसयूज़ कर रहें हैं, ये पता है और जीवन का सही उसे क्या है ये भी पता है तो डायरेक्शन चेंज क्यों नहीं करते? बोलो करना चाहते हो कि नहीं, करोगे, कब करोगे? एक बार ऐसे ही मैंने सवाल किया कि अपना डायरेक्शन कब चेंज करोगे? बोलै- मरने के बाद, जिन्दा रह कर के नहीं। ऐसे आदमी क्या कर सकेंगे? हमारे गुरुदेव कहते हैं-

मरना है तो मर जा पर जीते जी कुछ कर जा अन्यथा कर्जा तो मत कर जा

कर्जदार बनकर के जिओगे, फ़र्ज़ निभाकर के जाओ जन्मान्तरों का क़र्ज़ मिट जायेगा और फर्ज से विमुख होगे हमेशा कर्जदार बने रहोगे।

मिसयूज़ ऑफ़ लाइफ (Misuse of Life) कभी नहीं होना चाहिए। जीवन का सही यूज़ (use) क्या है? आप ही लोगों से पूछता हूँ। बोलो, बोलती बंद हो जाती है तुम लोगों की। क्या है सही यूज़? सही मार्ग पर चलना। एक बोल रहे है- रत्नत्रय को धारण करना, एक बोल रहे है- जियो और जीने दो। बोल रहे हो जियो और जीने दो और कर  रहे हो- पियो और पिने दो। मामला गड़बड़ है। कहाँ जा रहें हैं हम? पता तुम लोगों को सब है पर करना कोई नहीं चाहता। मौज, मजा और मस्ती में जीवन को बिताना जीवन का मिसयूज़ है और जीवन को पाकर जीवन का सच्चा रस प्रकटाना जीवन का सही यूज़ है। ये जीवन मौज में बिताने के लिए नहीं मिला, ये जीवन जीवन का रस लेने के लिए मिला।

रावण के पास धन वैभव था, उसने मौज-शौक किया, जीवन बर्बाद कर दिया। आज रावण का कोई नाम नहीं लेता है। भरत चक्रवर्ती को जीवन मिला, संसाधन मिला, धन-वैभव मिला। आज भरत के नाम से भारत बन गया। क्यों क्या अंतर आया? एक ने उसे यूज़ किया, एक ने मिसयूज़ किया। ये जीवन कड़वी तुम्बी की तरह है, इसका उपयोग करोगे तो तर जाओगे और उपभोग करोगे तो मर जाओगे। कड़वी तुम्बी जानते हो क्या होती है? कड़वी तुम्बी को पेट में बांध लो तो नदी नाले पार कर सकते हो, डूबोगे नहीं लेकिन उसी तुम्बी को खाओगे तो फ़ूड पॉइज़न (food poison) हो जायेगा। यह जीवन ऐसा ही है इसको भोगों में लगाओगे बर्बाद हो जाओगे और इस जीवन को पाकर के त्याग-तपस्या के रास्ते में लगाओगे, सयंम साधना के पथ पर चलोगे, सात्विक्ता से जुड़ोगे तो तर जाओगे। भाव सागर से पार उतारने के लिए नौका है। उपयोग करो, उपभोग नहीं। use करो, मिसयूज़ नहीं। तुम भोगों में रमोगे एक दिन शरीर थक जायेगा बिस्तर में पड़ोगे हस्पताल में मरोगे और जीवन को सयंम-साधना और सात्विक्ता के साथ जियोगे पुरे जीवन जीवन का रस लोगो और भगवान का नाम लेते मरोगे। क्या चाहते हो? हस्पताल में सड़- सड़ करके मरना या पल-पल अपने जीवन का लुत्फ़ उठाना। क्या कहते हो? बोलो तो क्या चाहते हो? अगर अपने जीवन का रस लेना चाहते हो, अपने जीवन का आनंद लेना चाहते हो तो अपने जीवन के डायरेक्शन को ठीक करो, मिसयूज़ मत करो। तो जीवन का मिसयूज़ न करें।

दूसरा- अपने धन का, अपने अर्थ का मिसयूज़ न करें। संपत्ति का मिसयूज़ न करें, तुम्हारे पास धन है, संशाधन है, संपत्ति है। क्या कर रहे हो? उनका उसे कर रहे हो या मिसयूज़, क्या कर रहे हो? यूज़ क्या है और मिसयूज़ क्या? धन के माध्यम से अपनी जरूरतों को पूरा करना और बचे पैसों का अच्छे कार्यों में यूज़ करना धन का सही यूज़ है। जो धन उपार्जित किया है उस धन का जितना बने उपभोग करो जो आवश्यक है और बचे का उपयोग करो ये तो यूज़ है। मिसयूज़ क्या है? मौज-मस्ती में पैसा खपाना, भोग-विलास्ता में पैसा खपाना, पाप और पाखंड में पैसा लगाना, सुरा-सुंदरी में पैसा लुटाना पैसे का मिसयूज़ है। आप देखो आपका पैसा कहा लगता है? पुण्य में ज्यादा लगता है कि पाप में ज्यादा लगता है? हिसाब लगाना पुण्य में लगता है कि पाप में लगता है? बोलो, यूज़ कर रहे हो कि मिसयूज़?

पैसा कमाया कैसे? पुण्य से। पुण्य के योग से अनुकूल संयोग मिले तब तुमने पैसा कमाया। बिना पुण्य की बैकिंग के पैसा नहीं कमाते। अनुकूल संयोग मिला, पुण्य ने अनुकूल संयोग दिया, अच्छी बुद्धि दी, अच्छी लिंक मिली, अच्छी लाइन मिली आपने पैसा कमा लिया ठीक है तो अब पारम्परिक रूप से कहें तो पुण्य से आपको पैसा मिला। पुण्य के रूप से पैसा मिला पुण्य ने पैसा लाया और आपने लगाया किस में? पापा में। अब एक सवाल करता हूँ आपसे- रामलाल ने आपको पैसा दिया और आपने रामलाल का पैसा श्यामलाल को दे दिया तो रामलाल आप पर प्रसन्न रहेगा की नाराज? बोलो, एक बार रामलाल से रकम ली और रकम श्यामलाल को दे दी और दुबारा रामलाल के पास जाओगे तो रामलाल देगा या धक्का मार कर बाहर निकाल देगा? बोलो- धक्का मार के बाहर निकाल देगा। आ रही समझ में बात? आगे बोलूँ कि इत्ते ही में समझ गए? बहुत होशियार हो, मतलब की बातें समझ में आ जाती है। कहते है- महाराज! नहीं बोलो, नहीं तो फसना पड़ेगा। जिस पुण्य की योग से तुमने पैसा कमाया उस पैसे को तुमने पाप में लगाया, उस पुण्य से पुण्य क्षीण होगा या नहीं होगा? ये बताओ और तुम्हारा पुण्य को क्षीण करने के बाद दुबारा दरिद्रता के पात्र बनोगे या नहीं? ये बताओ तो ऐसा करना पैसे का use है या मिसयूज़ ये बताओ। अब आज से क्या करोगे? रामलाल का पैसा रामलाल को दोगे कि श्यामलाल को?

मिसयूज़ करना बंद कीजिए, यूज़ करेंगे, मिसयूज़ नहीं। व्यर्थ के कार्यों में पैसा नहीं लगाएंगे। मेरे संपर्क में ऐसे अनेक लोग हैं जो अपने कार्यों में पांच-पांच पैसे का ख्याल रखते है, खुद पर कुछ खर्च नहीं करते और धर्म के कार्य हों तो लाखों रुपया दे देते।

एक जगह एक गौशाला खुलनी थी, एक श्रेष्ठी के पास कुछ लोग गए दान के लिए तो श्रेष्ठी ने कहा इनको चाय पिलाओ, चाय पिलाने के लिए धर्मपत्नी से कहा और धर्मपत्नी गैस सुल्गा रही थी। बरसात का समय था, माचिस में सीलन थी। ढंग से कोशिश की, 10-12 काड़ियाँ ख़राब हो गई, गैस नहीं जल पाई। सबके सामने अपनी धर्मपत्नी से कहा- कितना फिजूल खर्ची करती हो, एक काड़ी का काम दस काड़ी में नहीं कर पाई।

लोगों ने सोचा- अपन गलत जगह आ गए जो माचिस की दस तीली के लिए सबके सामने अपनी पत्नी को फटकार सकता है तो यहाँ कुछ मिलने वाला नहीं है। ये तो कंजूस है, रॉन्ग नंबर डाइल हो गया लेकिन उसके बाद जब चाय पिलाया, पूछा- आप लोग क्यों आये, कैसे आये। बोले- गौशाला खोलने के लिए आये हैं। हम लोग गौशाला खोलना चाहते हैं। हम लोगों को इनिशियल (initial) 20 लाख रूपए की जरुरत है, आपके नाम पर क्या लिक्खूँ? उसने कहा 5 लाख रूपए मेरे लिख लो। सब आश्चर्य चकित और 5 लाख लिखो नहीं तुरंत चेक निकाला और चेकबुक निकाल करके 5 लाख का चेक काट दिया। बोले- तुम लोग अच्छा काम करते हो, मुझे तुम्हारे कार्यों पर भरोसा है। ये काम करो- ये पहली क़िस्त है, आगे जाओ, जरुरत पड़े तो मेरे पास फिर आ जाना। सब लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ और एक ने तो पूछ ही लिया कि हम क्या देख रहे है, अभी तो आपने एक माचिस की तीली जिसका 25-50 पैसा भी मूल्य नहीं और आपने अपनी पत्नी को झिड़क दिया। अरे! उदारता है कि 5 लाख रूपए दे दिया। उन्होंने कहा- देखो भाई! हम पैसा कमाते हैं, पुण्य के उदय में। पाप करके कमाये हुए पैसे से हम पाप नहीं करना चाहते। पुण्य करना चाहते हैं। अच्छे कार्य में लाखों लग जाये हमें परवाह नहीं, बुरे कार्यों में हम 5 पैसा भी खर्च करना नहीं चाहते। एक सोच और एक दूसरी सोच आपको बताता हूँ मिसयूज़ करने वाला।

सब तरह के उदहारण आते है। एक बड़ा धनपति जो किसी 5 स्टार होटल में एक महानगर के बढियाँ होटल में जिसका टैरिफ लाख रूपए पर डे का था। उसमे रुका अपना जन्मदिन मनाने आया, मित्रों और परिजनों के साथ आया। चार दिन में 28 लाख रूपए खर्च कर दिया। रहना, खाना-पीना, सब एक-एक लाख रूपए वाले सूट (suit) में रहा। उस व्यक्ति को लोगों ne एक जीव दया के कार्य के लिए जुड़ने को कहा और कहा आप 1 लाख रूपए दे दें तो बहुत अच्छा होगा। उसने कहा- 11 हजार रूपए दूंगा। वह 28 लाख फूँक दिया, कोई चिंता नहीं पर जीव दया के कार्य के लिए 11 हजार भी भारी पड़ रहे हैं।

विचार करो, ये यूज़ है या मिसयूज़? तुम क्या हो? देखो, तुम लोगों की मानसिक्ता अच्छे कार्य में पैसा खर्च करने में कोताही करते हो और बुरे कार्य में दिलेरी दिखाते हो। थोड़ा विचार करो- मंदिर के गुल्लक में जब 100 का नोट डालते हो वो तुम्हे बड़ा दिखाई पड़ता है और मॉल में जाते हो तो 2000 का नोट भी छोटा नजर आता है। बोलो, सही बोल रहा हूँ कि नहीं? किधर रूचि है? चेंज द डायरेक्शन (change the direction), अपने आप को बदलिए, अपने भीतर बदलाव घटित कीजिये। तभी जीवन का हित होगा। यूज़ कीजिये, मिसयूज़ नहीं।

पैसे का दूसरा मिसयूज़ क्या है? पैसे को जोड़ करके रखना, तिजोरी में रखना, गाढ़ करके रखना, संग्रहित करके रखना ये भी पैसे का मिसयूज़ है।

पैसे को लिक्विड (liquid) कहा जाता है। तरल, तरलता तो बहने के लिए है, रोक कर रखने के लिए नहीं। पैसा का उपार्जन करो, उसको संग्रहित करके मत रखो। उसका उपयोग करो पर के अनुग्रह के लिए, धन की आसक्ति में पैसा जोड़-जोड़ करके एक दिन मरोगे और सब छोड़ करके चले जाओगे। जोड़े हुए पैसे का उपयोग करो, तुम्हारा पैसा बैंक बैलेंस बढ़ाने में न लगे तुम्हारा पैसा अपने जीवन को बैलेंस करने में लगे। सदुपयोग वो है कुछ लोग हैं जो लाखों करोड़ों रुपया इखट्टा करेंगे और एक दिन छोड़ के चले जाएंगे। काम में किसके आयेगा, ये बताओ- 25-50 करोड़ के बाद रूपए का कोई मूल्य है, वो ही बी.एम.डब्लू (BMW) में घूमेगा, वो ही मर्सेडीस (Mercedes) में घूमेगा और वो ही फरारी (Ferrari) में घूमेगा, वो ही आपके जा करके एग्जीक्यूटिव क्लास (executive class) में जाएगा, वैसी सूट में रुकेगा, वो ही मौज-मस्ती करेगा जो 5000 करोड़ वाला करता है वही 50 करोड़ वाला करेगा। उस से ज्यादा भोगेगा क्या? बस उसके अंदर है क्या? आसक्ति। मेरा इतना धन है, अंत निधन और क्या। व्यक्ति के निधन के बाद उसके धन की क्या दशा है? ये मिसयूज़ है, यूज़ करो।

बिल गेट्स ने बहुत ने बहुत अच्छा सन्देश दिया पुरे समाज को कि मैं अपनी सम्पति संतान को नहीं दूँगा क्युकी इससे न उसका भला होगा न समाज का और उनने अपनी संपत्ति को पारमार्थिक कार्यों में घोषित कर दिया, नियोजित भी कर दिया। सीख लीजिये- पैसा कमाया है तो मानवता की सेवा में लगाओ, पैसा कमाया है तो राष्ट्र की रक्षा में लगाओ, पैसा कमाया है तो दीन-दुखी के कल्याण में लगाओ, पैसा कमाया है तो धर्म और संस्कृति के उत्थान में लगाओ। ये उसका सही यूज़ है बाकि मिसयूज़ है।

तो किसका मिसयूज़? शरीर का मिसयूज़ मत करो। संपत्ति का मिसयूज़ मत करो।

तीसरा- समय का मिसयूज़ मत करो। टाइम मैनेजमेंट (Time Management) बहुत जरूरी है। आजकल लोग अपना समय ही गंवाते हैं, सब टाइम पास करते हैं।

एक रेलवे फाटक था, रेलवे फाटक पर एक आदमी आया और वहां के केबिन मेन से पूछा कि भैया अभी इधर से कौन सी गाड़ी पास करती है? बोले- ये गाड़ी पास करती है। इधर से कौन सी आयेगी? बोले- ये पास करती है। उस रुट पे जाने वाली करीब 25 गाड़ियां थी। 25 अप में और 25 डाउन में। सबका नाम पूछ लिया कि ये गाड़ी कित्ते बजे जाएगी ये गाड़ी कित्ते बजे जाएगी। वो बातचीत करने की क्रम में लाइन में इनने पूछा कि भैया आपको जाना कहाँ है? बोला- जाना वाना कहीं नहीं, mai तो टाइम पास कर रहा हूँ।

कई लोग बोलते हम, एक सज्जन थे व्हाट्सअप से जुड़े हैं, 65 साल के और व्हाट्सप्प और फेसबुक पे चैटिंग करते बच्चों से भी बड़ों से भी, हमने एक बार पूछा- भैया! क्या करते हो? बोला- टाइम पास कर रहे। बताओ समय कितना कीमती है और अपने समय को व्यर्थ के कार्यों में क्यों खो रे हो उनके साथ समय बिता रहे हो जिनसे कोई लेना नहीं देना नहीं। उपयोग करो उतना समय है अपने लिए सोचो अपने लिए समाज के लिए राष्ट्र के लिए कुछ करने का सोचो अपने कीमती समय का सदुपयोग करो दुरूपयोग नहीं करो।  फिजूल बातों में समय बर्बाद करना बहुत बड़ी नादानी है, बेवकूफी है। इनसे अपने आप को बचाइये। इसलिये टाइम वेस्ट करना बंद कीजिये, वो मिसयूज़ है और बिना मतलब किसी का टाइम मत लीजिये। जो आता है हम लोगों के पास वो कहता है- महाराज! टाइम दो। काहे के लिए टाइम दो? तुमको कोई व्रत लेना, कोई उपवास लेना, कोई मार्गदर्शन लेना, कोई आगे बढ़ना, बस बतियाने आये हैं। तो तुम्हारे पास फालतू समय है, मेरे पास थोड़ी है। हम तो एक साथ आप सबसे बतिया लेते हैं। अभी बतिया ही तो रहे और क्या कर रहे है। बोलो, बस आप लोग हो केवल सुनते हो, जवाब नहीं देते हो। जी भर करके बतियाओ न दिन में दो दफे तो फिक्स है। टाइम वेस्ट मत कीजिये और

नंबर चार- अपने सम्बन्ध और शक्ति का मिसयूज़ मत करो। तुम्हारा किसी के साथ रिलेशन है या पावर है तो इसका मिसयूज़ मत करो। लोग अपने सम्बन्ध, संपर्क और पावर का मिसयूज़ करते है। छोटी-छोटी बातों में उन व्यक्तियों को घुड़ाने की कोशिश करते है। अगर तुम्हारा कोई किसी से सम्बन्ध तीन है, कोई संपर्क है या तुम्हारे पास पावर है तो उसका प्रयोग समाज के hit में करो, व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति में मत करो। तो ये उसका सही यूज़ होगा और बाकी सब मिसयूज़ होगा और मिसयूज़ करोगे तो सब मिस करोगे, ये जीवन की मिस्टेक (Mistake) है। जो सब केवल मिस मिस मिस करती है तो M कहता है- ‘म’ अब मत करो। क्या नहीं करेंगे आज से?

मिसबिहैव, मिसगाइड, मिसकंडक्ट और मिसयूज़ बस ये चारों बातें याद रखेंगे।

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