T लेटर- Tension, Turn, Try, Tolerate, Truth

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T लेटर- Tension, Turn, Try, Tolerate, Truth

हमारे जीवन में जब कभी भी कुछ उल्टा-पुल्टा होता है, मन घूमने लगता है, दिमाग में एक प्रेशर क्रिएट हो जाता है। मनोनुकूल काम भी अगर ढंग से पूरा नहीं हो पाता तो चित्त में तनाव आने लगता है। आजकल हर किसी के जीवन में टेंशन दिखाई पड़ता है। बच्चा हो या बूढ़ा, सब टेंशन में है। बच्चे के मन में पढ़ाई का टेंशन, कोर्स का टेंशन, एग्जाम का टेंशन, रैंक का टेंशन। आगे बढ़ जाए तो अच्छे कॉलेज में एडमिशन का टेंशन और आगे बढ़ जाए तो अच्छी कंपनी में जॉब का टेंशन। और आगे बढ़े तो अच्छे लाइफ पार्टनर को खोजने का टेंशन और आगे बढ़ जाए फैमिली को सेट करने का टेंशन। और आगे बढ़े बच्चों का टेंशन, बच्चों को पढ़ाने का टेंशन, उनके लालन-पालन का टेंशन, आगे बढ़ते-बढ़ते बूढ़े हो गए तो बुढ़ापे में सहारे का टेंशन। बुढ़ापे में सहारे का टेंशन, रिटायरमेंट के बाद की लाइफ का टेंशन। क्या करेंगे? अंत में मेरा कौन साथ देगा? व्यक्ति का जन्म से लेकर मरण तक टेंशन बना रहता है। आज के समय में टेंशन एक भयंकर बीमारी बन गयी है। बीमारी नहीं, इसे महामारी समझना चाहिए। आठ बरस का बच्चा हो या अस्सी बरस का वृद्ध सबके मन में टेंशन है। है ना? सवाल यह है कि इस टेंशन की जड़ क्या है? और टेंशन से फ्री होने का उपाय क्या है?

आज अल्फाबेट में किसका नंबर है? T फ़ॉर टेंशन(Tention).

टेंशन क्यों? सबसे पहला सवाल। आपके मन में तनाव आता है, कभी आपने इस बात का अहसास करने की कोशिश की, कि मेरे मन में उत्पन्न होने वाले तनाव का कारण क्या है? क्यों होता है तनाव? बोलो, क्यों होता है? आप लोगों को बोलना है? बच्चों, तुम लोगों को कभी तनाव आता है? आता है, क्यों आता है? एग्जाम्स का तनाव आता है, पढ़ाई का तनाव आता है, प्रिप्रेशन का तनाव आता है। जितने भी तनाव है सब के अलग-अलग कारण हैं लेकिन सबको हम कन्क्लूड करें तो तनाव का सीधा-सीधा रूप, इस रूप में कहा जा सकता है कि जब परिस्थिति और मन:स्थिति के बीच का संतुलन खोता है तो तनाव होता है। परिस्थिति और मन:स्थिति के बीच का संतुलन खोने पर तनाव आता है। परिस्थिति कुछ बोलती है मन:स्थिति कुछ बोलती है।

होता कुछ है, हम चाहते कुछ हैं, हम चाहते कुछ है होता कुछ है, टेंशन। यही है ना जड़? जैसा हम चाहते हैं वैसा नहीं होता तो टेंशन है, और जो नहीं चाहते हैं वो हो जाता है तो टेंशन है। है ना? यही जड़ है। परिस्थिति कुछ होती है और मन:स्थिति कुछ होती है, जो हम सोचते हैं वह नहीं होता, दिमाग में टेंशन चढ़ जाता है। तो ऐसा क्यों? चलिए हम चलते हैं। मैंने जो सोचा और परिस्थिति कुछ हुई, यह दोनों चीजें हैं जिनकी वजह से मैं टेंशन कर रहा हूँ, थोड़ा देखूँ मेरे हाथ में क्या है? जैसा मैं सोचता हूँ वो सब-कुछ करने की क्षमता मेरे पास है? मैं जैसा चाहता हूँ सब कुछ पैसा ही घटित हो यह योग्यता मेरे पास है? जो मेरे मन में हैं वही सब करें ऐसी सामर्थ्य मेरे पास है? संत कहते हैं- ‘तेरे पास क्या किसी के पास नहीं। जैसा तू चाहे वैसा हो यह तेरे पास नहीं है, पर जैसा हो वैसा तू चाहे वो तेरे पास है। जो मेरी मन:स्थिति है वैसी परिस्थिति हो यह कतई संभव नहीं लेकिन परिस्थिति के अनुरूप मैं अपनी मन:स्थिति को डेवलप करूं यह मेरे हाथ में है। अगर हम इन बातों को देखेंगे तो सारा जीवन हमें रोना-रोना पड़ेगा क्योंकि परिस्थितियाँ हमारे हाथ में नहीं है। कोई चाहे की रात ना हो उजाला ही बना रहे तो क्या यह संभव है? सूरज के रथ को हम रोक सकते हैं? रोक सकते हैं? यह प्रकृति का नियम है, दिन उगा है तो ढलेगा और रात हुई है तो प्रभात होगा। यह हमारे हाथ में नहीं है यह प्रकृति का नियम है। रात के बाद दिन, दिन के बाद रात होगा और अच्छे के बाद बुरा, बुरा के बाद अच्छा। जीवन में कभी अच्छा प्रसंग आता है कभी बुरा प्रसंग आता है। यह सारे प्रसंग और परिस्थितियाँ हमारे हाथ में नहीं है। यह सब संयोगों के आधीन है। मेरे हाथ में नहीं है। अब उनको मैं पकड़कर चलूं तो सिवाय दु:खी होने के मेरे पास कुछ भी शेष नहीं बचेगा। वह मुझे दु:खी बनाएगी और इसी कारण मनुष्य तनावग्रस्त होता है।

संत कहते हैं- तनाव से अपने आप को बचाना है, टेंशन से अपने आप को बचाना है तो आज की चार बातें हैं- टेंशन, नंबर वन- टर्न।

टेंशन से बचना है, टर्न करो, किसको? चीजों को? माइंड को टर्न कर दो। बोलो, चीजों को टर्न करना इजी है कि माइंड को टर्न करना इजी है? मेरे हाथ में मेरा माइंड है कि मेरे हाथ में मेरे साथ घटने वाली चीजें हैं? तो हम माइंड को जैसे ही टर्न करेंगे फ्रेश हो जाएंगे और यदि चीजों को टर्न करने की कोशिश करेंगे, फ्रस्ट्रेट रहेंगे। क्या चाहते हो, फ्रेश रहना कि फ्रस्ट्रेट होना? तो संत कहते हैं, जब भी कोई ऐसी बातें हो अपने माइंड को टर्न करना शुरू करो। सोच को बदल दो, चिंतन की धारा बदल दो, जो दु:खकारी लग रहा है वह सुखकर लगने लगेगा, जो प्रतिकूल है वह अनुकूल लगने लगेगा, जो बुरा है वही अच्छा लगने लगेगा, जिसे हम डिसलाइक करते हैं उसके प्रति लाइकिंग होने लगेगी। केवल मन को बदलने मात्र की  देर है। हम मन को बदलते हैं तो मन बदलते ही जीवन बदल जाता है। सारा खेल मन का है। देखिए, आप से कहता हूँ अभी आप लोग यहाँ फर्श पर बैठे हो, आराम से बैठे हो? कोई तकलीफ हो रही है? हो रही है क्या? कोई तकलीफ नहीं, बड़ा इजी, कंफर्ट फील कर रहे है और बढ़िया लग रहा है, आगे बैठ करके सुन रहे हैं। है ना? और यही यदि आप किसी थिएटर में जाते हैं, जहाँ चेयर्स लगे हुए हो, हाउसफुल हो, दो-चार चेयर खाली हो और आपको कहा जाए गैलरी में बैठो नीचे, तो क्या होता है? मन एक्सेप्ट करता है? अरे यार! कहाँ हम टिकिट लेकर के आये है जमीन में कैसे बैठें? मन तैयार नहीं है दिमाग में टेंशन। लेकिन आप थिएटर में जा रहे हैं, हाउसफुल है, कह रहे हैं अंदर कोई जगह नहीं है भैया कैसी ही जगह दे दो, भैया नीचे जाओ वहाँ नीचे गैलरी में बैठना पड़ेगा, चेयर नहीं है। चलो भाई, कम से कम घुसने तो मिलेगा। आप जा कर के आराम से बैठ रहे हैं, क्या हुआ? खेल किसका है? अभी थोड़ी देर पहले ही, एक ही जगह में अगर चेयर नहीं मिली तो मन में तकलीफ थी और अब सोच रहे हैं चेयर नहीं मिली तो क्या हुआ घुसने तो मिला, हजारों लोग तो अभी बाहर ही खड़े हैं। मुझे कम से कम एंट्री मिली, नीचे बैठ कर ही सुनें पर हम अपने आप को भाग्यशाली महसूस कर रहें हैं। क्या हो गया है? अंतर किस चीज का है? खेल किसका है?

सब कुछ हमारे मन पर डिपेंड करता है। मन में तनाव आता है प्रतिकूल परिस्थितियों के सामने आने पर। संसार में ऐसा एक भी मनुष्य नहीं जिसके सामने कोई कठिनाई या प्रतिकूलता न आती हो। जो भी प्रतिकूलता आए उससे घबराओ नहीं, इसे पार्ट ऑफ लाइफ समझो, इसे चैलेंज मानो और उसे एक्सेप्ट करो। स्वीकार लो, ठीक है, यह पार्ट है मुझे एक्सेप्ट करना है, और समझदार आदमी जब प्रतिकूल स्थितियों को स्वीकार करता है तो उसे एक चुनौती के रूप में स्वीकारता है और उपलब्धि में परिवर्तित कर देता है। चैलेंज को भी अचीवमेंट बनाया जा सकता है। यही हमारी कुशलता है और इसी में हमारी सफलता है। आया है, जो स्थिति आई है उसको देखें, तनाव से मुक्त होना चाहते हो तो माइंड को टर्न करो, यानी सकारात्मक सोचो। पॉजिटिव एटीट्यूड रखो, पॉजिटिव थिंकिंग रखो, माइंड बदल जाएगा, बुरा भी अच्छा लगने लगेगा, दु:ख में भी सुख लगने लगेगा, प्रतिकूल भी अनुकूल लगने लगेगा और विपत्ति में भी संपत्ति दिखाई पड़ने लगेगी। एक ही व्यक्ति एक ही प्रसंग में थोड़ी देर पहले टेंशन में है और अगले ही पल नॉर्मल, कैसे? पल में टेंशन और पल में नॉर्मल, कैसे? किसी को कोई काम में नुकसान हुआ, टेंशन। बड़ा नुकसान हो गया, बड़ा नुकसान हो गया, बड़ा नुकसान हो गया, अपना टेंशन का रोना रो रहा है, थोड़ी देर बाद बोला, भैया!, यह तेरे ही को नुकसान नहीं हुआ है सब को नुकसान हुआ है, तेरा नुकसान तो औरों से कम है। अच्छा! सब को ही नुकसान हुआ है, चलो! ठीक है। क्या हो गया? अकेले को जब मैं सोच रहा था तब मुझे टेंशन हो रहा था और जब मुझे मालूम पड़ा कि मैं अकेला नहीं तो कोई टेंशन नहीं।

एक आदमी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ स्कूटर से जा रहा था। चार बैठे थे एक स्कूटर पर। खुद था उसकी धर्मपत्नी थी। खुद था, धर्म पत्नी थी और दो बच्चे थे, एक को आगे और एक को पीछे बिठाया। उसकी स्कूटर से छींटे उछठे, बरसात का समय था। पानी के छींटे उछठे और एक पहलवान के कुर्ते पर पड़ गए। तो फिर क्या था पहलवान गुर्राया, एक घूंसा दे बैठा। बोला- भैया! मुझे मारा तो ठीक पर मेरी पत्नी को मत मारना, उसने पत्नी को भी दे दिया। बोले- भाई! पत्नी को दे दिया तो ठीक, पर बच्चों को मत छेड़ना। उसने एक-एक करके बच्चों को भी एक-एक तमाचा दे दिया। जब चारों को मारा तो उसने स्कूटर की किक मारी, बिठाया और गाड़ी लेकर चलता बना। घर आया, बच्चों ने कहा, पापा हद हो गई आप तो पिटे सो पिटे पर हम लोगों को भी पिटवा दिये। पापा बोले- देख! अब कोई नहीं कहेगा कि अकेले पापा पिटे, सब पिटे। अकेले पापा पिटे ऐसा कोई नहीं कहेगा, सब पिटे। मैं आप से कहता हूँ जब भी तुम्हारे जीवन में दुःख आए, यह यह मत सोचो कि मेरी जीवन में दुःख है, यह सोचो कि सब दुःखी हैं। सब पिटे-पिटाये हैं, कोई सुखी नहीं है, मामला बराबर। सब दुःखी हैं इतना ही तो सोचना है और हकीकत में बोलो कौन सुखी है। है कोई सुखी? सब दुःखी है। अरे! दुःख तो संसार का स्वभाव है, उसको कोई टाल ही नहीं सकता। हाँ, उसको स्वीकार करते ही हमारा दुःख सहनीय हो जाता है। हम उसको एक्सेप्ट करें, सब दुःखी हैं। थोड़े-थोड़े सबको दुःख हैं और अगर पॉजिटिवली देखोगे, दूसरों के दुःख से अपने दुःख को कंपेयर करोगे, दूसरों की प्रॉब्लम से अपनी प्रॉब्लम्स को कंपेयर करोगे तो लगेगा नहीं मैं उससे फार बेटर। उससे बहुत बेहतर हूँ, मेरी स्थिति उससे बहुत अच्छी है, टेंशन खत्म। तो क्या करिए, टर्न द माइंड। माइंड को टर्न कीजिए। मोड़िये, पॉजिटिव दिशा में जाइए, व्याख्या बदल जाएगी, मन परिवर्तित हो जाएगा, जीवन कभी दुःखी नहीं होगा, तनाव कभी हावी नहीं होगा और यदि आप मन को उसी अनुरूप रखोगे तो कभी सुखी नहीं होओगे।

तो पहली बात टर्न (turn). अब क्या करना है? कुछ भी हो, तो टर्न लेना है, किसमें? माइंड में। किस दिशा में टर्न लेना है? यह भी ध्यान रखना है, पॉजिटिव। नेगेटिव नहीं। समझ गए? कुछ लोग यू टर्न लेते हैं। कहते है न? उल्टा टर्न हो गया, हाँ, ऐसा नहीं, पोजिटिव डायरेक्शन में टर्न लोगे तो फिर हमेशा टेंशन फ्री रहोगे। समझ गए? धर्म से जुड़ो, भगवान से जुड़ो, अपने चिंतन की दिशा को मोड़ो। उन महापुरुषों के जीवन को सामने लाकर रखो जिनने अपने जीवन में आने वाली बड़ी से बड़ी विपत्तियों को समता से सहन किया और विचलित नहीं हुए। मेरे सामने तो बहुत थोड़ा सा है। किसके बल पर? अपनी आध्यात्मिक चेतना के बल पर, अपने भीतरी ज्ञान और वैराग्य के बल पर, बड़ी-बड़ी विपदाओं का सामना, लेकिन रंचमात्र तनाव नहीं, दुःखी नहीं।

देखो! अंजना का जीवन बाईस वर्षों तक अपने पति का वियोग सही, बाद में पति का संयोग मिला भी तो विपत्ति का कारण बन गया। पेट में तद्भव मोक्षगामी हनुमान है, पति के घर से निकाल दी गई और पिता के घर में भी उसे प्रवेश नहीं मिला। कितनी भयंकर स्थिति हो गई? एक गर्भवती अंजना, अबला, एकाकी साथ में केवल उसके एक सखी है, निकल गई घर से, किधर चली गई? जंगलों में। चलो, कर्म जहाँ ले जा रहा है, चलते हैं, मेरे भाग्य में यही लिखा है। जो होगा सब सही होगा, मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता। कर्म का खेल खिला रहा है, खेलेंगे। चल दी, निकल गई, कहीं गुहार नहीं लगाई, किसी के पास शिकायत नहीं की, कोर्ट-कचहरी के चक्कर में नहीं गई, किसी वकील से मिलने नहीं गई। आज की अंजना होती तो क्या करती? सबसे पहले महिला आयोग के दरवाजे खटखटाती और समझदार होती तो किसी वकील के पास जाती। वह निकल गई। ठीक है! मेरे नसीब में जो है वही होगा और देखो कैसी विचित्रता है। पेट में तद्भव मोक्षगामी, कामदेव, हनुमान है और विपत्ति जब से हनुमान आए तभी  से। उनका जन्म भी किस पर हुआ? पत्तों की सेज पर। काँसे की थाली बजाने की भी व्यवस्था वहाँ नहीं थी लेकिन उन्होंने एक्सेप्ट किया? वह रोई? गुहार लगाई? चीखी? किसी से पुकार लगाई? क्या की? ना रोना रोई, न चीखी, न गुहार लगाई, जो था उसे सहज रुप से स्वीकार कर लिया, यह मेरे कर्म का उदय है। स्वीकार करो, समझ गए? मुड़ो, अपने आपको मोड़ो।

एक जगह, एक व्यक्ति ने बहुत अच्छी बात लिखी-

यू टर्न टू गॉड बिफोर यू टर्न टू गॉड। You turn to god before you turn to God।

जब तक तुम भगवान के प्यारे होओ, भगवान की तरफ मुड़ जाओ, जिंदगी भर सुखी रहोगे, नहीं तो भगवान के प्यारे तो हो ही जाओगे। टर्न करिए, अपने चिंतन को टर्न करिए। नंबर वन, क्या करना है? क्या करना है? टर्न करना है। कुछ भी हो, टर्न करेंगे।

नंबर टू- ट्राई(try)। ट्राई करो। ट्राई करने का मतलब? जब भी कोई ऐसी स्थितियाँ बने जो मेरे मनोनुकूल न हो, जिससे हमारे लिए तकलीफ हो, मेरे सामने समस्या बन कर के कोई बात आये तो उससे घबराएं नहीं उसको पार करने की पूरी कोशिश करो। निष्क्रिय मत बनो, निश्चेष्ट न बनो, अंतिम क्षण तक प्रयास करो, मेरे प्रयासों में कोई कमी ना हो। प्रयास मेरे हाथ में है और मुझे तब तक प्रयास करना है जब तक प्रयास की अंतिम संभावना शेष हो। ट्राई करते जाओ, ट्राई करते जाओ, ट्राई करते जाओ। ट्राई करेंगे तो परिणाम अच्छा आएगा और ट्राई नहीं करेंगे तो हम कभी कोई भी रिजल्ट पा ही नहीं सकते। अरे! अब क्या करें? विपरीत स्थिति आ गई है। विपरीत स्थिति आ गई है, ऐसी स्थिति में मैं क्या करूं? कोई रास्ता नहीं दिखता, अब क्या करूं? नहीं, ट्राई करो, हारो मत। हारो मत, स्वीकार करो और आगे बढ़ते चलो, बढ़ाते जाओ। कोई दिक्कत नहीं होगी।

एक बार एक युवक मेरे पास आया, चेहरा एकदम मुरझाया जैसा था। उम्र होगी सत्ताईस-अठ्ठाईस वर्ष की और मेरे पास आकर के कहा, महाराज! चारों और घोर अंधेरा है, कहीं कुछ भी दिखता नहीं। महाराज जी! मैं अपने जीवन से हार चुका हूँ, आप कुछ रास्ता बताइये। मैंने पूछा, क्या बात है? बोले, मेरे पिताजी नहीं है, मां ने मुझे पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया। महाराज! मैंने UPSC को कंटेस्ट किया, तीन बार मैं इंटरव्यू दे चुका, मेरा आज तक सिलेक्शन नहीं हुआ। महाराज! मैंने और भी कॉम्पिटिटिव एग्जामस दिए पर अभी तक सक्सेस नहीं हुआ। मुझे लगता है कि मेरे भाग्य में सफलता है ही नहीं। महाराज! अब मेरे मन में बढ़ा तनाव है। अब मैं इतना बड़ा हो गया, आखिर कब तक अपने परिवार पर भार बनूंगा। कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि इससे अच्छा तो मर जाना अच्छा है। उसने मुझसे जब ऐसा कहा तो मैंने उससे संबोधित करते हुए कहा- तुम जैसे तेजस्वी युवक के मुख से ऐसे दीन-हीन वचन सुनकर मुझे आश्चर्य हो रहा है। तुम इतने तेजस्वी हो और फिर इस तरह के दीन वचन कह रहे हो तुम कहते हो कि मैंने तीन बार UPSC का इंटरव्यू दिया, मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ, मैं अभागा हूँ। मैंने कहा- तुम्हें अपने आप को भाग्यशाली समझना चाहिए। जिसने तीन बार इंटरव्यू तक पहुँचा दिया अपने आपको। तीन ही अटेम्पट किये और तीनों बार इंटरव्यू में गए। उन युवकों को देखो, लाखों बैठते हैं इसमें। हजारों रिटर्न में निकलते हैं, इंटरव्यू में कितने पहुँचते  हैं? बोले, जितनी सीट होती है उसके तीन टाइम्स। मैंने कहा- तुम उन भाग्यशाली लोगों में हो। तुम इंटरव्यू तक पहुँचे हो, हार क्यों रहे हो? हिम्मत मत हारो, अपना प्रयास करो। अपनी जिंदगी तो एक रिक्शा चलाने वाला भी चला लेता है, एक न्यूज़पेपर बेचने वाला भी अपना जीवन चला लेता है, तुम अपने कैरियर को ले करके इतना हताश क्यों हो? तुम भले ही UPSC में सलेक्ट नहीं हो सके पर तुम में इतनी काबिलियत है कि लोगों को पढ़ा कर उनको UPSC में सलेक्ट करवा सकते हो और अभी भी तुम्हारे पास अंतिम संभावना बाकी है। मैंने उससे पूछा, कितने अटेम्पट? उस समय चार अटेम्पट होते थे। यह घटना 2002 की है, आजकल शायद कुछ बदल गया है। बोले, अभी एक अटेम्पट बाकी है। अभी हारो मत, अभी हारो मत, प्रयास करो, मेहनत करो। मैंने उसको एनकरेज किया, उसको उत्साहित किया और मेरे कहने के बाद उसने 2003 में आखिरी अटेम्पट किया और सेलेक्ट हो गया। वह देहरादून का युवक था, सलेक्ट हो गया। ट्राई करोगे, तभी सक्सेस होओगे।

हरिवंश राय बच्चन की इन पंक्तियों को सदैव याद रखना-

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,

चढ़ती दीवारों पर, सौ सौ बार फिसलती है।

मन का उत्साह रगों में साहस भरता है,

चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।

आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है,

जा जा कर पानी में खाली हाथ लौट कर आता है।

मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,

बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है इसे स्वीकार करो,

क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।

जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,

संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।

कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

यह प्रेरणा है ट्राई करते चलिए। आखिरी क्षण तक कोशिश कीजिए, कामयाबी मिलेगी और जब तक कामयाबी ना मिले ट्राई करने के बाद भी, बार-बार ट्राई कर रहे हैं, बार-बार ट्राई कर रहे हैं फिर भी रिजल्ट नहीं आ रहा है तो क्या करें? टॉलरेट करो।

तीसरी बात- टॉलरेट (tolrate) करो, सहन करो, बर्दाश्त करो, धैर्य रखो, पेशेंस रख कर चलो। आज लोग टॉलरेट करना नहीं जानते, थोड़ी-थोड़ी बातों में असहज हो जाते हैं, हिम्मत हार जाते हैं, पस्त पड़ जाते हैं। जीवन में कैसे सक्सेस करेंगे? टेंशन तो अपने आप होगा। सहन करने की शक्ति जितनी विकसित होगी, उतने अधिक समर्थ बनोगे। अपनी सहनशक्ति को विकसित कीजिए। अंदर की सामर्थ्य बढ़ेगी, जितना बन सके हम सहन करना सीखें। आजकल लोगों की सहनशीलता कम हो गई है, क्यों? लाइफ स्टाइल बिगड़ गई। लाइफ स्टाइल बिगड़ गई। लोग लग्जिरियस हो गए। पुराने जमाने में लोग अतिसंपन्न होने के बाद भी कष्टपूर्ण जीवन जीने के अभ्यासी होते थे। उसका यह परिणाम होता था कि जीवन में कुछ उलटे-पुलटे प्रसंग भी आ जाए तो वह उतने घबराते नहीं थे। अब इतना ज्यादा आरामतलबी जीवन हो गया है कि थोड़ी-थोड़ी बातों में आदमी कमजोर सा पड़ जाता है। स्ट्रांग बनना है तो टॉलरेट करना सीखो। छोटी-मोटी बातों को इग्नोर करो, सहन करो, पेशेंस रखकर के सहन करो। घर-परिवार की बात हो, व्यापार की बात हो, दफ्तर की बात हो, समाज की बात हो, जीवन के किसी भी क्षेत्र की बात हो एक सूत्र बनाओ, मुझे टॉलरेट करना है। मुझे टॉलरेट करना है, मुझे टॉलरेट करना है। बस टॉलरेट करने की पावर तुमने अपने भीतर जगा ली तो फिर तुमको कोई टेंशन नहीं। बोलो?

अगर तुम्हारे लिए किसी ने कुछ कह दिया और तुमने सुन करके उसको सहज भाव से ले लिया, कोई टेंशन होगा? कोई तकलीफ होगी? नहीं ना, और तुमने उस बात को पकड़ लिया, रिएक्ट करना शुरू कर दिया, तो क्या होगा? क्या होगा? तकलीफ होगी। टॉलरेट करोगे तो टेंशन नहीं होगा। यह ठीक है, यह ठीक है, यह तो होगा। आप लोग यहाँ घूमने के लिए जाते हो। धूप में घूमना पड़ता है। तीन-तीन, चार-चार घंटे धूप में रहते हो, कोई तकलीफ होती है? क्यों? टॉलरेट कर रहे हैं। हाँ अरे! घूमना है तो धूप में तो घूमना ही पड़ेगा। थोड़ी देर धूप तो इसको टॉलरेट करना होगा। टॉलरेट करेंगे तभी ठीक होगा, तो आप टॉलरेट करने के कारण धूप में भी एंजॉय करते हो? करते हो कि नहीं करते हो? और अभी ऐसा कह दिया जाए कि नहीं अभी तुम लोगों को पंडाल में नहीं बैठकर के, पीछे धूप में बैठकर के प्रवचन सुनना है। क्या करोगे? अरे! यह तो हमको टारगेट बना दिया गया है। इसमें तो हम को तकलीफ होगी, हम दुःखी हो जाएंगे, हमारा मन उसको स्वीकार नहीं कर पाएगा।

एक क्रिकेटर फोर्टीफाइव (45) टेंपरेचर में क्रिकेट के मैदान में खेलता है। खेलता है कि नहीं खेलता? कितनी कड़क धूप और स्टेडियम में जितने लोग बैठे रहते हैं उनके लिए छाया रहती है क्या? उनको भी धूप में बैठना पड़ता है लेकिन धूप में रहकर भी एंजॉय करते हैं। करते हैं कि नहीं करते हैं? किसकी बदौलत क्योंकि उसको एक्सेप्ट किया है, टॉलरेट करते हैं। एक सूत्र जीवन का बना लो, जीवन में चाहे कितनी कड़ी धूप की तकलीफें भी क्यों ना हो, यदि हमने उसे टॉलरेट कर लिया कोई टेंशन नहीं होगा। जीवन में आनंद बना रहेगा। टॉलरेट करने की क्षमता अपने भीतर डेवलप कीजिए, कोई तकलीफ नहीं।

परिस्थितियाँ मनुष्य को दुःखी नहीं बनाती, दुःखी बनाता है मनुष्य को उसका अपना मन।

मन जिन बातों से एडजस्ट हो जाता है वह कठिन होने पर भी अपने हमारे अपने लिए अच्छी लगने लगती है और जिन बातों को मन एडजस्ट नहीं करता वह सरल होने पर भी हमारे लिए कठिन बन जाती है। टॉलरेट करने की प्रवृत्ति बनाईये, अपनी सहनशक्ति को बढ़ाईये। और मैं देखता हूँ लोग कदाचित शारीरिक पीड़ा को तो सहन कर लेते हैं, मानसिक प्रतिकूलताओं को सहन नहीं कर पाते। जबकि उसे हमें प्रमुखता से करना चाहिए। सोच बदलिए, अगर सोच बदल गई तो आप सब कुछ सहने में समर्थ हो जाओगे। ठीक है उसको इजी लोगे, लाइटली लोगे और उसके कारण आप पूरे जीवन इजी बने रहोगे। रंचमात्र स्ट्रेस नहीं होगा। थोड़ा सा भी तनाव और खिंचाव मन में नहीं आएगा और यदि ऐसा नहीं है तो तुरंत ही बात दिमाग में बातें हावी हो जाएगी। तो क्या कीजिए?

सबसे पहले- टर्न लीजिए, नंबर टू- ट्राई कीजिए, नंबर थ्री- टॉलरेट कीजिए और इन सब को करने के लिए ट्रुथ (truth) को समझिए।

क्या करिए? ट्रुथ को समझिए। ट्रस्ट हो। ट्रस्ट ओन ट्रुथ। सत्य पर विश्वास कीजिये। जीवन की सच्चाई पर विश्वास कीजिए। जिस दिन तुम्हें जीवन की सच्चाई पर विश्वास हो जाएगा सारा तनाव सारी जिंदगी को दूर भाग जायेगा। जीवन की सच्चाई क्या है? पता है? उस सत्य पर तुम्हारा श्रद्धान है, विश्वास है, पता है? जीवन की सच्चाई, एक सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि चीजें मेरे हाथ में नहीं है। वो कर्मों के हाथ में है। संसार के सारे संयोग मेरे अधीन नहीं है। किसके अधीन है? कर्म के आधीन है। कर्मों के आधीन है जैसा कर्म होता है उसके अनुरूप शुभ-अशुभ फलाफल होता है। मैं रोऊँ तो, चिल्लाऊँ तो, स्वीकारूँ तो, अस्वीकार करूँ तो, वह सब मेरे हाथ में नहीं है। तो फिर भाई! जो चीज मेरे हाथ में नहीं है उसके पीछे उलझने में कोई समझदारी है क्या? क्या करो? सूत्र लो। जब लगे कि चीजें तुम्हारे कंट्रोल से बाहर हो तो उससे झूझने की जगह सरेंडर हो जाओ। जब चीजें तुम्हारे कंट्रोल से बाहर दिखने लगे तो तुम उससे झूझने की जगह सरेंडर हो जाओ। उसे एक्सेप्ट कर लो, सारा दुःख दूर। और तुम उससे झूझोगे तो टूट जाओगे। जीवन के सत्य को समझो।

एक नदी तेज धार के साथ बही जा रही थी। उस नदी में दो तिनके थे। पहला तिनका नदी की धार से झूझ रहा था और दूसरे तिनके ने सोचा यह नदी सागर की यात्रा में निकली है, चलो, मैं भी कुछ दूर इसके साथ चलूँ। वह नदी के साथ बहा जा रहा था और पहला तिनका नदी से झूझ रहा था। फिर क्या था? नदी की धार का प्रवाह उछला और उसने तिनके को उचठा के एक तरफ फेंक दिया, और दूसरा तिनका नदी के साथ अहोभाव से बहता-बहता सागर तक पहुँच गया। हमारी स्थिति भी तिनके की तरह है। एक तिनका वह है जो जीवन की धार के साथ बहता है। अहोभाव के साथ बहता है, सुख-दुःख, संयोग-वियोग, हानि-लाभ को सहज भाव से स्वीकार लेता है। शांति के सागर में समा जाता है और जो समय की धार से झूझता है समय उसे उठाकर एक तरफ फेंक देता है। वह कहीं का नहीं रहता। देखो, तुम्हारी स्थिति कैसे तिनके की तरह है? सत्य को पहचानो। जीवन की सच्चाई यह है कि जीवन-मरण मेरे हाथ में नहीं, संयोग-वियोग मेरे हाथ में नहीं, हानि-लाभ मेरे हाथ में नहीं, यश-अपयश मेरे हाथ में नहीं, अनुकूलता-प्रतिकूलता मेरे हाथ में नहीं, संपत्ति-विपत्ति मेरे हाथ में नहीं। बोलो, यह सच है कि नहीं है? है तुम्हारे हाथ में? एक भी व्यक्ति कहे कि महाराज! सब मेरे हाथ में हैं? तुम्हारे हाथ में क्या है? कुछ है? सब खाली हाथ हो। तुम्हारे हाथ खाली है। अगले पल क्या होने वाला है यह भी तुम्हारे हाथ में नहीं है। है कुछ? तो भैया, जब हमारे हाथ में नहीं है तो हाथ पाँव क्यों ज्यादा मारे हम? क्यों हाथ पाँव मारे? ठीक, जितना मेरे हाथ में है वह मैं करूं और एक बात ध्यान रखना- प्रयत्न मेरे हाथ में है, परिणाम नहीं।

टेंशन फ्री रहने का एक सूत्र है, प्रयत्न मेरे हाथ में हैं, एफर्ट मेरे हाथ में हैं, रिजल्ट नहीं।

एफर्ट करें, अंतिम समय तक करें। निष्क्रिय और निश्चेष्ट होकर के नहीं बैठे और जो भी रिजल्ट आए उसे एक्सेप्ट करें। अरे! हमने इतनी मेहनत की, इतनी मेहनत की, इतनी मेहनत की उसके बाद भी रिजल्ट? यह गड़बड़ है। आजकल बच्चे, क्या करते हैं? प्रेशर रहता है बच्चों पर। पेरेंट्स का बहुत ज्यादा प्रेशर रहता है रिजल्ट को लेकर। सब चाहते हैं रैंक में आए, रैंक में आए, रैंक में आए। अच्छे मार्क्स आए। बच्चे अच्छे से पास हो तो पढ़ाई का बोझ ऊपर से पेरेंट्स की जो अपेक्षाएं हैं वह बच्चों के दिमाग को बोझिल कर देती है और फिर अच्छा प्रयास करने के बाद भी जब रिजल्ट नहीं आता, तो क्या होता है? सुसाइड की घटना घटने लगती है। होता है कि नहीं होता? आजकल बच्चों में सुसाइड की प्रवृत्ति क्यों बढ़ी? इसी वजह से। ठीक है, सब बच्चे टॉपर तो नहीं बनते। टॉपर तो कोई एक होगा मेरिट में तो दो-पाँच-दस ही आएंगे। ठीक है, मैं मेहनत करूं, पूरी ईमानदारी से करूं, कोर्स को कंप्लीट करूं पर रैंक जो आए उसे एक्सेप्ट करो। रिजल्ट खुला, हाईएस्ट परसेंटेज 99% था और एक बच्चा 35% पर आया। सबसे लोएस्ट था। जब 99 वाले खुशी मना रहे थे, मेरिट वाले खुशी मना रहे थे तो उससे ज्यादा खुशी वह 35% वाले को थी। 35% वाला खुश, बड़ा खुश था। लोगों ने कहा कि भैया, वह हाईएस्ट 99% लाया और तुम 35% लाये हो। इतने खुश क्यों हो? बोला, मैं इसलिए तो खुश हूँ कि वह 99% के बाद भी उसी क्लास में जाएगा जिसमें मैं जाऊंगा। क्लास तो एक ही है। मेहनत पूरी कीजिए, परिणाम को लेकर कभी मत उलझिये, क्योंकि परिणाम तुम्हारे हाथ में नहीं है। यह जीवन की एक सच्चाई है।

कर्म सिद्धांत पर विश्वास, पक्का विश्वास, गाढ़ विश्वास होना चाहिए। जिस व्यक्ति के हृदय में कर्म सिद्धांत पर सच्चा विश्वास होता है वह कभी नहीं विचलित होता है।

मेरे संपर्क में एक व्यक्ति है, जिनको अपने कारोबार में बड़ा भयानक नुकसान हो गया। लोगों ने तो सोचा कि यह अब गया। इतना बड़ा नुकसान, इतनी अधिक लाइबिलिटी, उलझनें, लोगों की दृष्टि में तो वह पूरी तरह से फेलियोर हो चुका था। लेकिन वह व्यक्ति तत्वज्ञानी था, समझदार था। वह रंचमात्र विचलित नहीं हुआ। मुझे मालूम पड़ा, वह मेरे पास आया भी, मैंने ऐसे ही पूछा, भैया! क्या हाल है? बोला, महाराज! जो आप लोग बोलते हैं, वही है यह तो, कर्मों का खेल है, खेल खिला रहा है, खेल रहे हैं। मैं यह मानता हूँ जो पहले था वह भी मेरा नहीं है और जो गया वह भी मेरा नहीं है। जो मेरे पास था वह भी मेरा नहीं था और जो गया वह भी मेरा नहीं है। आप तो बोलते हैं कर्म का खेल है चलेगा। जो उसको स्वीकार, वह मुझे शिरोधार्य। मैं स्वीकार करता हूँ। महाराज जी! यह चक्र है, चक्र तो चक्र है। अब मैंने यह सोचा है मेरे ऊपर जो लाइबिलिटीज है, मुझे चुकानी है। मैंने अपनी नियत ख़राब नहीं की। मैं इस दुनिया से नहीं चाहता कि लोगों का पैसा खा करके जाऊं। इस कर्ज को उतारना चाहता हूँ। निश्चित किसी जन्म का कर्ज होगा इसलिए आज ऐसी स्थिती हुई। महाराज जी! मैंने तय कर लिया है अब व्यापार करने की स्थिति तो है नहीं, पर रोने-गाने से कुछ नहीं चलेगा। मैंने अपना अधिकतम समय अब धर्म-ध्यान लगाने के लिए निश्चित कर लिया है। समय बदलेगा, ठीक होना होगा हो जाएगा, नहीं होना होगा तो महाराज! कौन किसका है। उस आदमी ने प्रतिदिन बावन माला फेरने का नियम लिया, णमोकार मंत्र की। बावन माला रोज फेरूंगा। आप सोचो, माला फेरने लगा। काम तो सब ठप, इधर-उधर की बातें करने में, टेंशन लेने में क्या फायदा और वो आदमी धर्म की शरण में गया और एक बात पर उसका श्रद्धान था कि अशुभ का निवारण शुभ से ही होगा। णमोकार मंत्र का वह पक्का श्रद्धानी था। बावन माला प्रतिदिन गिनना शुरू किया उसने और आप सब को सुनकर आश्चर्य होगा, कोई छह-सात महीने बीते, उसे एक ऐसे व्यक्ति का ऑफर आया जिसका कारोबार बहुत बड़ा था पर किसी दक्ष और अनुभवी आदमी की आवश्यकता थी। वह आदमी इसकी योग्यता को पहचानता था। उसने कहा, भैया! तुम मेरा काम संभाल लो। काफी लंबा-चौड़ा काम था, एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का। उनने उसको अपने साथ जोड़ा और इसके अंदर प्रतिभा तो थी ही, इसने अपना शत-प्रतिशत दिया, ईमानदारी के साथ दिया। सामने वाले का कारोबार चमक गया और साल भर के अंदर उसने अपने व्यापार में पच्चीस प्रतिशत का हिस्सेदार बना दिया। आज वह आदमी पहले से सुदृढ़ स्थिति में है। वह कहता है, महाराज! ना मैं उन दिनों टेंशन में था, ना आज टेंशन में हूँ और टेंशन करता तो शायद जहाँ हूँ वहाँ नहीं पहुंच पाता। तनाव में डिप्रेशन का भी शिकार हो सकता था लेकिन मैंने उसे सहन किया।

समय का चक्र है यह तो घूमता है। कभी चढता है कभी उतरता है। यह विश्वास अपने भीतर जगाइए, कभी टेंशन नहीं होगा। सबके दिन बदलते हैं एक दिन घूरे का भी दिन बदल जाता है। तो भैया! तनाव रखने से कोई फायदा नहीं। ज्ञान रखो अपने भीतर तो यही, जिन स्थितियों में तुम तनाव में रहते हो, वही तुम्हें संकटों से पार उतरने के लिए नाव का काम कर जाएगी। नाव बनकर के तुम्हें उस पार लगा देगी। धैर्य रखना चाहिए।

आज T के संदर्भ में चार बातें मैंने आप सबसे की। टेंशन से बचना है, चार T को अपनाइए। टर्न कीजिए, ट्राई कीजिए, टॉलरेट कीजिए और ट्रस्ट कीजिए।

किस पर? ट्रुथ पर ट्रस्ट कीजिए। यदि यह चारों बातें जीवन में आत्मसात हो गई तो निश्चयत: वह हमारे जीवन की बड़ी उपलब्धि होगी।

आज प्रतिभास्थली की बच्चियाँ जो, मुझे मालूम पड़ा कि प्रतिवर्ष नाइंथ क्लास की बच्चियों भारत के किसी भी एक इलाके में घुमाने के लिए ले जाते हैं ताकि बच्चियों को कुछ अच्छा अनुभव मिल सके। इस वर्ष राजस्थान का ट्रिप है कल शाम को यह बच्चियाँ आई। प्रतिभास्थली, आचार्य गुरुदेव की समाज के लिए बहुत बड़ी देन है। हमारे समाज की बेटियाँ आगे चलकर के समाज की तारणहार बने, कर्णधार बने। इस मनोभाव के साथ जबकि आज पीढियां भटक रही है माँ-बाप के सामने अपनी बच्चियों के भविष्य को लेकर बड़ी चिंता है। गुरुदेव ने एक बहुत अच्छा काम किया है और आज उस प्रतिभास्थाली में पढने वाली बच्चियों ने अपना जो उत्थान किया है वो अपने आप में बहुत अच्छी बात है। गुरुदेव की दूरदर्शिता को देखो, ऐसी सेकड़ो बहिने है लगभग अढाईसो बहिने है जो अलग-अलग शाखाओं में है। जिन्हें आर्यिका बनना चाहिए था उन सबको दीक्षा न देकर के अणुवर्ती बनाकर, प्रतिमाधारी बनाकर, इन बच्चियों को पढ़ाने-लिखाने के लिए लगाया है। इन बहनों में सारी पढ़ी-लिखी है। सब MEd है, BEd है और कई बहिने तो UPSC की परीक्षा तक को देकर के आई है। Mains तक निकला है उन बच्चियों को इधर लगाया है और आज बहुत अच्छा रिजल्ट प्रतिभास्थली का है। संस्कार युक्त शिक्षा, अभी इन बच्चियों आपसे बात करोगे तो मालूम पड़ेगा कि वहाँ क्या है? शिक्षा के संस्थान तो पूरे देश में खूब खुल रहे है पर उनने एक उद्योग का रूप ले लिया है। वहाँ शिक्षा मिल रही है संस्कारों के बारह बज रहे है। यह प्रतिभास्थली ऐसा विद्यालय है जहाँ बच्चियों को शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार दिए जा रहे है, संस्कार गढ़े जा रहे है और वो संस्कार इन सबके जीवन में बोलते है। इनके जीवन में बदलाव आएगा। आप इन बच्चियों को अगर प्रतिभास्थली जैसी संस्था में भेजेंगे तो आप उनके भविष्य के प्रति निश्चिन्त हो सकते है। ऐसा मेरा मानना है, विश्वास है। थोडा सा समय में चाहूँगा कि प्रतिभास्थली की बच्चियों को और बहनों को दिया जाये। आप लोग धैर्य पूर्वक इनकी बात को समझे और अपनी बच्चियों को, यद्यपि वहाँ का एडमिशन बहुत टफ है इनके पास लिमिटेड सीट रहते है लेकिन फिर भी प्रयास आपको करना चाहिए। ताकि आपकी बच्चियाँ वहाँ दाखिल होकर के उनका जीवन उत्कर्ष कर सके, इसी शुभ के साथ मैं यहाँ पर विराम लूँगा, आप सब इनकी बातों गंभीरता से सुनेंगे। बोलिए आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज की जय!!!

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