परिग्रह को पाप क्यों कहा है?

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परिग्रह को पाप क्यों कहा है?
Why is accumulation considered a sin?

“आजतक जिन लोगों ने अपनी आत्मा को पवित्र-पावन बनाया है ये सभी सिद्ध भगवान अपरिग्रह महाव्रत का आधार लेकर आगे बढे हैं। उन्होंने मन-वचन-काय से इस महाव्रत की सेवा की है। अपरिग्रह- यह शब्द विधायक नहीं है, निषेधात्मक शब्द है। उपलब्धि दो प्रकार से हुआ करती है और प्ररूपणा भी दो प्रकार से हुआ करती है- एक निषेधामुखी और दूसरी विधिमुखी। परिग्रह के आभाव का नाम है अपरिग्रह। परिग्रह को अधर्म माना गया है। इसलिये अपरिग्रह स्वतः ही धर्म की कोटि में आता है। इस अपरिग्रह धर्म का परिचय, इसकी अनुभूति, इसकी उपलब्धि आज तक पूर्णतः हमने की नहीं क्योंकि जब तक बाधक कारण विद्यमान हैं तबतक साध्य की प्राप्ति संभव नहीं है। जैसे धर्म और अधर्म साथ नहीं रह सकते। अन्धकार और प्रकाश एक साथ नही रह सकते। इसी प्रकार परिग्रह के रहते जीवन में अपरिग्रह की अनुभूति नहीं हो सकती। परिग्रह को भगवान महावीर ने पाँच पापों का मूल कारण माना है। संसार के सारे पाप इसी परिग्रह से उत्पन्न होते हैं। हमारा आत्मतत्त्व स्वतंत्र होते हुए भी एकमात्र इसी परिग्रह की डोर से बंधा है। परिग्रह शब्द की व्युत्पत्ति इस ओर इशारा करती है जो विचारणीय है। परि आसमंतात ग्रहणाति आत्मानं इति परिग्रहः- जो आत्मा को सब ओर से घेर लेता है, जकड देता है वह परिग्रह है। आत्मा जिससे बन्ध जाता है उसका नाम परिग्रह है।

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