छोड़ दो गलत ट्रेन को

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छोड़ दो गलत ट्रेन को
(मुनि श्री प्रमाणसागर जी के प्रवचनांश)

एक बार एक युवक ट्रेन में सफर कर रहा था और अपने दोनों पैर के घुटनो पर सिर रखकर रोये जा रहा था। ट्रेन में भीड़भाड़ नहीं थी। सामने एक वृद्धा बैठी थी। उस बूढ़ी अम्मा से युवक का रोना नही देखा गया, उसने युवक से पूछा कि – बेटे, तू मुझे अपनी माँ समझ। तेरे ऊपर क्या आपत्ति आ पड़ी है? तू मुझे बता। मैं तुझे हरसंभव मदद दूँगी। बुढ़िया के इस आत्मीय आग्रह को देखकर युवक ने अपनी गर्दन उठाई। एक बार बुढ़िया को देखा और रोने लगा। अब तो बुढ़िया भी उसके साथ रोने लगी। बोली-तू क्यों रो रहा है? तेरे रोने का क्या कारण है, बता। अबकी बार बहुत झकझोर कर उसने उठाया तो युवक ने कुल इतना ही बताया – क्या बताऊँ अम्मा, मैं गलत गाड़ी में बैठ गया हूँ। उस अम्मा ने कहा – बेटे गलत गाड़ी में बैठ गए हो तो रोने से क्या होगा। अगले स्टेशन पर उतर जाने और गाड़ी बदल लेना। मालूम है, उस युवक ने क्या कहा? बोला – अम्मा, ऐसे तो मैं बहुत देर से सोच रहा हूँ पर आजकल बिना रिजर्वेशन के गाड़ी में बैठा नहीं जा सकता। अब मैं दूसरी गाड़ी में बैठूँगा, यदि भीड़ होगी तो पता नही जगह मिले या ना मिले। यह डिब्बा एकदम खाली है। इस डिब्बे को छोड़कर मैं दूसरी गाड़ी में कैसे बैठूं?

संत कहते हैं कि – अगर आपको पता लग गया है कि आप गलत गाड़ी में हो तो गाड़ी से उतरो और सही गाड़ी में बैठ जाओ। थोड़ी परेशानी तो होगी लेकिन जब गंतव्य पर ध्यान रहेगा तो परेशानी महसूस नहीं होगी। इस समय अपने देश का गंतव्य भी एक ही है – कोरोना से मुक्ति। इसके लिए हमें बस कुछ देर के लिए रुकना है और सही गाड़ी के आने का इंतज़ार करना है। इसलिए घर पर रहिए, सुरक्षित रहिए

Edited by: Pramanik Samooh

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