नाटक में साधु का किरदार करना कहाँ तक उचित है? शंका धार्मिक आयोजनों में रात में नाटक आदि में साधु, सन्तों, माताजी का पात्र होता है जिसका अभिनय किया जाता…
क्या अर्थ से ज़्यादा परमार्थ महत्त्वपूर्ण है? शंका अर्थ से ज़्यादा परमार्थ महत्त्वपूर्ण है पर कभी कभी ऐसा होता है कि अर्थ के अभाव में पुरुषार्थ के लिए कदम आगे…
मंदिर में पहली वेदी में जितना उत्साह रहता है, उत्तरोत्तर कम क्यों होता जाता है? शंका मन्दिर में बहुत सारी वेदिया होती है परन्तु जो भाव मूल वेदी में लगते…
मुनि के पोस्टर्स छपवाना कितना उचित है? शंका चातुर्मास में आचार्य श्री एवं अन्य मुनि महाराजों के इतने पोस्टर छपते हैं, फिर चातुर्मास के बाद वे पैरों में आते हैं…