धैर्य रखने की कला

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धैर्य रखने की कला

बच्चा भूखा था और भूख के मारे व्याकुल हो रहा था। बार-बार माँ से कहता कि कुछ खिला, कुछ खिला, कुछ खिला। माँ कहती, बेटा! थोड़ा रुक। तेरे लिए मैंने बड़ी स्वादिष्ट खीर बनाई है, खीर खिलाऊंगी। माँ, खीर परोस, परोस, परोस। माँ ने कहा- थोड़ा तो रुक और थोड़ी देर बाद खीर तैयार हुई। गरम-गरम खीर उसे परोसी और जैसे ही खीर परोसी, वो भूखा तो था ही सीधे मुँह में डाल दिया। अब गरम गरम खीर जब मुँह में डाला तो पूरा का पूरा मुँह जल उठा। कहा, माँ यह कैसी खीर है? इससे तो मुँह जल गया, तू कहती है स्वादिष्ट खीर है। माँ ने कहा बेटा! इतनी हड़बड़ी में खीर खाएगा तो मुँह जलेगा, थोड़ा धैर्य रख। खीर को थोड़ा ठंडा कर, फिर खा, देख क्या स्वाद आता है। सवाल खीर का नहीं, जिंदगी का स्वाद भी वे ही ले पाते हैं जो गर्म को ठंडा करने की कला जानते हैं। जो गर्म को ठंडा करने की कला जानते हैं वे ही जिंदगी का स्वाद ले पाते हैं और इसके लिए व्यक्ति को धैर्य धारण करने की आवश्यकता होती है।

आज बात ‘ध’ की है ध से धैर्य, धीरज। हमें धीरज रखने की आवश्यकता है। आज हर मनुष्य के मन में बड़ी अधीरता दिखाई देती है। लोगों के मन में थोड़ा भी धीर नहीं और कहते हैं कि हड़बड़ी में डूब मरे या हड़बड़ में गड़बड़। लोगों के अन्दर बड़ी हड़बड़ी है बड़ा उतावलापन है। मनुष्य के अंदर की यह हड़बड़ी उसका यह उतावलापन, उसे भीतर से कमजोर बनाता है और यदि वह थोड़ा धैर्य, संयम से काम लेने की कला सीख ले, थोड़ा सा पेशंस अपनाना शुरू कर दे तो अपनी कमजोरी को भी अपनी ताकत बना सकता है। मैं अक्सर कहता हूं, अधीरता ताकतवर की कमजोरी है और धीरज कमजोर की ताकत। यदि तुम्हारे मन में धैर्य है तो तुम अपनी कमजोरी को भी अपनी ताकत बना सकते हो और तुम्हारे मन में धैर्य का अभाव है तो तुम कितने ताकतवर क्यों ना हो कमजोर साबित हो सकते हो। आज मैं कुछ इसी तरह की बात करूंगा। सबसे पहले हम अपने अंदर की अधीरता की पड़ताल करे। हमारे मन का धीरज कब खोता है? धीरज कब खोता है? जब हमारे सामने कोई विपत्ति आ जाती है। कोई विपरीत परिस्थिति आती है। हम अपना धैर्य खो देते हैं।

  1. जब विपत्ति आती है तो हम विचलित हो जाते हैं। विपरीत परिस्थिति आती है, हम विचलित हो जाते हैं। अपना धैर्य खो बैठते हैं।
  2. जब हमारी प्रगति में बाधा होने लगती है तो हम अपना धैर्य खो देते हैं।
  3. जब हम मनचाही सफलता या मनचाहा संयोग प्राप्त नहीं कर पाते, अपने अंदर का धैर्य खो देते हैं
  4. जब हमारे संबंध हमारे अनुकूल नहीं दिखते हम अपना धैर्य खो देते हैं।

यह चार कारण ऐसे है जिनसे मनुष्य अधीर, व्यग्र और बैचैन हो जाता हैं। सबसे पहले विपरीत परिस्थितियों की बात देखें। सामान्य आदमी जब भी उसके सामने कोई ऐसी विपत्ति की स्थिति आती है उसका मन घबरा उठता है, अंदर से टूट जाता है अब क्या करूं? संत कहते हैं- ‘परिस्थिति तो परिस्थिति है’। यह प्रकृति का नियम है। अनुकूलता और प्रतिकूलता हर मनुष्य के जीवन में आती है। इसमें हमारा कोई अपना रोल नहीं हैं। हमारी अपनी कोई भूमिका नहीं कि हम इसे स्थाई रूप से अपने अनुकूल ही बना ले। जीवन में सुख-दुःख आते हैं, संयोग-वियोग आते हैं, जीवन-मरण आता है, लाभ-हानि होते हैं। यह तो संयोंग है, हमारे अधीन नहीं है। हम जब भी अपनी परिस्थिति को देखकर के घबराते हैं कि ऐसा हो रहा है इसलिए मैं ऐसा हो गया। ऐसा हो रहा है इसलिए ऐसा हो गया। ऐसा हो रहा है इसलिए ऐसा हो गया। तो इससे तो हम अपनी क्षमताओं को और कमजोर कर लेते हैं। हमें तो इनसे कुछ सीखना चाहिए और विषमता में भी समता का अभ्यास करना चाहिए। विसंगति में भी संगति बिठाने की कला सीखनी चाहिए कि जीवन में विपत्ति आई है, हमारी नीति कहती है विपत्ति में धैर्य की परीक्षा होती है। मनुष्य के धैर्य की परीक्षा विपत्ति की घड़ी में आती है, जब तुम्हारे सामने की सिचुएशन तुम्हारे अनुकूल है, उस समय तुम धीरज रखो तो कोई महानता नहीं। महानता तो तब है जब प्रतिकूल पोजीशन हो, प्रतिकूल स्थितियां हो और उस समय तुम अपना धैर्य न खोओ। आप अपने मन को टटोल कर देखिए जीवन में कई जगह ऐसे होते हैं जब प्रतिकूल प्रसंग बनते हैं, परिस्थितियां  प्रतिकूल होती है और आप उस घड़ी बड़ा धैर्य रखते हैं और बहुत संयम से अपना व्यवहार करते हैं, अपने मनो-मस्तिष्क को संतुलित रखते हैं। धैर्य का मतलब यही है अपने मन और मस्तिष्क में संतुलन रखते हुए सधा हुआ व्यवहार का नाम। मन मस्तिष्क को संतुलित, कई बार आपके साथ ऐसा होता है। कुछ उदाहरण मैं आपको दे रहा हूं फिर मैं आपको विपरीत परिस्थितियों में धीरज धारने की कला बताऊंगा। आपके पास वह कला है, ऐसा नहीं है कि नहीं है लेकिन आप उसका इस्तेमाल हर जगह नहीं करते। कहाँ करते हैं, वहां मैं आपको बता रहा हूं। आप दुकान पर बैठे हैं, आपका कोई ग्राहक आया है और ग्राहक आपसे कोई कटु शब्द कह रहा है, उस घड़ी में आप क्या करते हैं। मुँह-तोड़ जवाब देते हैं, प्रतिक्रिया करते हैं। क्या करते हैं? मुस्कुराते हैं। इतनी सहनशक्ति आपके पास कहां से आ गई? कहां ट्रेनिंग लिया, कितने धैर्य-संयम के साथ आप उसकी उस कटुक्ति को भी सह लेते हैं। यह पेशेंस किसने सिखाया? बोलो, यह पेशेंस आपके भीतर कहां से आया? महाराज! इतनी भी बात आप नहीं जानते, ग्राहक के सामने अगर हम पेशेंस खो देंगे तो फिर हम आगे करेंगे क्या। वहां आप अपने इमोशन पर कंट्रोल रखते हो कि नहीं। रखते हो ना इसका मतलब यह आर्ट तो आपके पास है। आपके सामने प्रतिकूल प्रसंग आया और आपने अपने अंदर स्थिरता रखी तो मैं आपसे केवल इतना ही कहता हूं जो काम आप अपने दुकान और दफ्तर में कर सकते हो, वही काम जीवन-व्यवहार के अन्य क्षेत्रों में क्यों नहीं कर सकते। किसी के प्रतिकूल बात को आप सह सकते हो, कोई प्रतिकूल प्रसंग आप सह सकते हो तो बाकी बातों को क्यों नहीं सह  सकते। एक आदमी हिमालय की चढ़ाई चढ़ता है, एक-एक कदम पर खतरा है, कोई साधारण चढ़ाई तो नहीं है लेकिन सधे हुए पांवो से व्यक्ति कदम दर कदम, कदम दर कदम, कदम दर कदम चढ़ता है। क्या कोई वो आनंददायी यात्रा है? सम है या विषम पर उस विषम यात्रा को भी व्यक्ति सहज भाव से स्वीकार करता है कि नहीं। अभी डॉक्टर K.M.Gangwal के बेटे को आयरन मैन की उपाधि मिली। वह ऑस्ट्रेलिया में एक competition हुआ, उस competition में समुद्र में लगातार करीब कुछ घंटे तैरना पड़ा, समुद्र में तैरने के बाद उसे साइकिल चलानी पड़ी लगातार और साइकिल चलाने के बाद लगातार दौड़ना पड़ा। यह तीन टेस्ट और इसमें उसने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया और आयरन मैन की उपाधि मिली। यह हमारे समाज के लिए गौरव की बात है। यह कितना कष्टप्रद दौर था, आप कल्पना कर सकते हैं लेकिन उसने उसे भी आराम से अपना लिया। क्यों? स्वीकार कर लिया। वस्तुतः विपत्ति या प्रतिकूलतायें हमें परेशान नहीं करती, हम परेशान होते हैं उन्हें अस्वीकार करने के कारण।

रात है, काली रात, अंधेरा है, अंधेरा है, अंधेरा है, चीख पुकार मचाओगे, कब तक? जब तक तुम रात को स्वीकार नहीं करोगे। जिस दिन तुम ने यह बात स्वीकार कर ली कि भाई प्रभात के बाद रात होना है और रात के बाद प्रभात होगा, यह तो प्रकृति का विधान है इसे हम रोक नहीं सकते। हमे स्वीकार करना होगा और आप रात को स्वीकार कर लोगे तो आपके मन में कभी कोई बेचैनी नहीं होगी, अधीरता नहीं होगी, उतावलापन नहीं होगा। मैं आप लोगों से कहता हूं, अपने जीवन में थोड़ा सा भी दु:ख आता है, अधीर हो जाते हो, थोड़ी सी विपत्ति आती है टूट जाते हो, कई लोग तो बड़े अवसादग्रस्त हो जाते हैं। भाई अधीरता से क्या कोई solution निकलेगा,अधीरता से क्या कोई solution निकलता है। अधीर होकर क्या होगा? सामना करो जो front में आये, उसको पेश करो, एक्सेप्ट करो और यह ठीक है, हमें इसे स्वीकार करना होगा। अगर अंधेरा छा रहा है तो अंधेरे को देखकर घबराने की जगह, अंधेरे से लड़ने की ताकत जुटाने वाला ही जीवन में सफल होता है। अंधेरे को देखकर घबराते क्यों हो? इस अँधेरे से निपटे कैसे यह सोचो। ठीक है, हम सूरज को नहीं लौटा सकते, उसके लिए 12 घंटे की प्रतीक्षा करनी होगी लेकिन सूरज के विकल्प के रूप में हमारे पास दीपक तो है, हम उस के सहारे रात बिता सकते हैं, अंधेरे को भगा सकते हैं। सारी दुनिया का अँधेरा हम भगा ना सके पर अपने कमरे में तो उजाला हम कर ही सकते हैं। यह ताकत तो हमारे भीतर है, यह अपने भीतर घटित कीजिए, मन में धैर्य आएगा और आपके अंदर की अधीरता मिटेगी। यदि आपकी दृष्टि हो तो आप अपनी कमजोरी को भी अपनी ताकत बना सकते हैं।

मैंने एक घटना पढ़ी, जुडो का जो मास्टर है, मकायु। उसका एक हाथ कटा हुआ था और उसके मन में जुडो सीखने की प्रबल धुन थी, ललक थी। उसने अपने परिवार के लोगों से कहा, लोगों ने कहा तेरा एक हाथ कटा है, तू जुडो कैसे खेलेगा लेकिन जब उसकी उम्र 10 वर्ष की हो गई तो उसके अंदर यह उमंग और बढ़ गई और उसकी इच्छा प्रबल हो गई कि नहीं मुझे जुडो में मास्टर बनना है, मास्टर बनना है, न केवल मुझे जुडो सीखना है अपितु लोगों को भी जुडो सिखाना है। उसके प्रबल भाव को देखकर घर के लोगों ने उस समय जुडो के जो मास्टर थे, उनके पास मकायु को लेकर गये। उसने उसे देखा और कहा ठीक है, मैं तुम्हें जुड़ो सिखाऊंगा, पर तुम सीखोगे कैसे, तुम्हारा तो एक ही हाथ है। उसने कहा, मुझे यह नहीं मालूम कि मेरे पास क्या है पर मुझे यह पता है मुझे जुडो सीखना है और मैं सीख लूंगा। एक हाथ है तो क्या हुआ मुझे सीखना है, सीखूंगा। उसकी दृढ़ता को देखकर गुरु के मन में भी उसे सिखाने का भाव आया। गुरु ने कहा कि तुम्हें मैं सिखाऊंगा पर एक शर्त है जैसा मैं तुम्हें कहूंगा, तुम्हें वही करना होगा। उसने कहा, स्वीकार है। उसने ले लिया और उसके साथ बहुत सारे साथी सिख रहे थे। उसके गुरु ने केवल एक ही kick सिखाई, सिंगल किक। साल भर हो गया, उसके साथ के दूसरे साथी को अनेक प्रकार के तरीके से जुडो सिखाया, इसको केवल सिंगल kick, केवल सिंगल kick। एक पैर के चलाने की बात सिखाई। उसके मन में एक बार तो आया की औरों को तो बहुत कुछ सिखा दिया गया और मैंने इतने दिनों में तो केवल एक kick लगाना ही सीखा है लेकिन मन में विश्वास था कि गुरु ने अगर मुझे कुछ कहा है तो उसके पीछे कोई वजह होगी। वो धैर्यपूर्वक उनकी पूरी बात सीखता रहा। 1 साल हो गया, 2 साल हो गया, 3 साल हो गया। एक-दो बार उसके मन में ऐसा भी आया कि सब छोड़ कर के जाऊं, दूसरे लोग क्या से क्या सीख गए लेकिन फिर गुरु की बात याद आई कि मैं तुम्हें जो कहूंगा, वह तुम्हें करना होगा। उसने अपने मन में धैर्य रखा और सीखता गया। 4 वर्ष पूरे होने के बाद गुरु ने अपने सब शिष्यों को बुलाया और कहा तुम लोगों को मुझे जो शिक्षा देनी थी दे दी। आज तुम लोगों की परीक्षा का दौर है, आज तुम लोगों की परीक्षा का दौर है और तुम में से जो परीक्षा में पास होगा, उसे मैं अपने तरह प्रशिक्षक बनाऊंगा। मेरी जगह वह औरों को प्रशिक्षण देगा। परीक्षा के दौर में प्रारंभिक दो मैचों में मकायु आराम से जीत गया। वो एक kick लगाने में इतना निपुण हो गया था कि उसको ऐसी art आ गई थी कि मैं कुछ भी कर सकता हूं लेकिन तीसरे मैच में जो सामने वाला प्रतिभागी था, उससे बड़ा भारी- भरकम था और उसके आगे मकायु ने अपने आपको थोड़ा कमजोर समझा, एक पल को घबराया और वो उस पर भारी पड़ा तो वहां लोगों ने कहा कि मैच डिक्लेयर कर दिया जाए और अगले को विजेता कह दिया जाए। मकायु के गुरु ने कहा, नहीं पूरा मैच होने दो, उसके बाद डिक्लेरेशन होगा। मैच हुआ, उसने देखा, यह एक हाथ का आदमी मेरे आगे लगेगा क्या। उसने अपने गार्ड हटा दिया और जब गार्ड हटाया और मकायु ने उसी समय एक संधि का प्रयोग किया और उसे एक ज़ोर का kick मारा और वह वहां पस्त हो गया और वह विजेता हो गया। और उसे बाद में प्रशिक्षक नियुक्त किया गया, जुडो का मास्टरमाइंड बन गया। उसके गुरु ने कहा- यह उपलब्धि इसके पेशेंस के कारण हुई है। 4 वर्ष तक इतना धैर्य रखा तो आज इतना मजबूत बन सका। यह जो इसकी हाथ, बाएं हाथ का भाव इसकी कमजोरी थी, यही इसकी ताकत बन गई। उसे एक ही डायरेक्शन में kick मारने की कला बताई और वह क्या था? वह सामने वाले के हाथ को पकड़कर के कुछ भी कर सकता था। जो उसका हाथ ही नहीं था, वह उसकी ताकत बन गई और वह उस में सफल हो गया। मैं आपसे केवल इतना कहना चाहता हूं, जब भी जीवन में कोई ऐसे प्रतिकूल प्रसंग आये तो आप धीरज रखिए, धीरज रखें और धीरज रखने के लिए क्या करना है, आप यह सोचिए कि ये थोड़ी देर की बात है।

पहली बात क्या सोचे, थोड़ी देर की बात है। कोई भी कितनी बड़ी विपत्ति क्यों ना आये, स्थायी नहीं है, चल जाएगा, कुछ पल में बदल जाएगा। रात काली हो, कितनी भी काली हो लंबी हो सकती है, रात के बाद तो प्रभात होना है। थोड़ी देर की बात है, चलो ठीक है, it will be passed। सब पार हो जाएगा, सब पार हो जाएगा, थोड़ी देर की बात है। जब आपको कहीं थोड़ी देर के लिए कोई बात कही जाए तो आप easily कर लेते हैं। यहां से इंदौर जाना हो, 1-2 घंटे का सफर है ट्रेन से और आपको रिजर्वेशन नहीं हो तो आप जाने को राजी हो जाओगे। चलो कोई बात नहीं है, घंटे भर का रास्ता है, खड़े-खड़े चले जाएंगे लेकिन यहां से दिल्ली जाना हो रात भर का सफर हो, बिना बर्थ के जाना चाहेंगे क्या। नहीं, हमें कुछ चाहिए, 1 लंबी यात्रा है, इतना कष्ट हम नहीं सह सकते लेकिन जब थोड़ी देर की बात आती है, कोई बात नहीं घंटे भर में पहुंच जाएंगे, चले जाएंगे। बस मैं आपसे यही कहता हूं, तुम्हारे जीवन के सफ़र में जो भी मुश्किलें हैं, सब थोड़ी देर की है। यह अपने दिमाग में बैठा लो, पार हो जाओगे और तुम उस समय धैर्य रखने में समर्थ हो जाओगे।  

दूसरी बात, जब भी आपके पास कोई विपत्ति आये, धैर्य रखने के लिए थोड़ा सकारात्मक सोचे। अपने जीवन में कोई भी विपत्ति आये, यह सोचिए, विपत्ति नहीं आई है ,यह मेरे लिए एक सीख देने का आधार बनी है, नुकसान में भी नसीहत बनी है, हमें ये मजबूती देगी जैसे लोहे को तपाने के बाद जब उस पर घन का प्रहार होता है तो उसके बाद लोहे की उपयोगिता बढ़ती है। देखने में लगता है कि घन का प्रहार है लेकिन वो लोहे को एक शेप देता है, एक आकार देता है और उसी में उस लोहे की उपयोगिता है। तुम पर समय के घन का जब भी प्रहार पड़े, यह मत सोचो कि मुझ पर प्रहार पड़ रहा है पर यह सोचे कि मुझे नया आकार मिल रहा है, मैं मजबूत हो रहा हूँ। विपत्ति के प्रहार को भी सहजता से सहने की ताकत तुम्हारे भीतर आ सकती है, ध्यान रखना, हथौड़ी का प्रहार कांच पर पड़ता है तो कांच चकनाचूर हो जाता है और उसी हथौड़ी का प्रहार यदि सोने पर पड़ता है तो सोना दमक उठता है। संत कहते हैं– ‘जब भी विपत्ति की हथौड़ी का प्रहार पड़े तो सोने की तरह दमकने की कला सीखो, कांच की तरह टूटने का काम मत करो’। तुम कांच नहीं सोना बनो। अपने आप को मजबूत बनाओ, अपने इरादों को मजबूत बनाओ, भीतर से सकारात्मक होकर के चलो देखो तुम्हारे जीवन में क्या रास प्रकट होता है, जीवन का आनंद ही कुछ और होगा। विपत्ति में धैर्य, सकारात्मक सोच के बल पर आदमी बहुत अच्छे से कर सकता है। मेरे संपर्क में एक व्यक्ति है जिसे व्यापार में बड़ा नुकसान हुआ, स्वभाविक है नुकसान में अमूमन आदमी विचलित हो जाता है। फायदा तो सब को अच्छा लगता है लेकिन जब नुकसान होता है तो आदमी बड़ा घबरा जाता है, अंदर से टूट जाता है। उस व्यक्ति को बड़ा नुकसान हुआ और उस नुकसान की घड़ी में और उसके व्यापार में उनके दो बेटे involve थे। दोनों बेटे घबरा उठे, नुकसान हो गया, क्या करेंगे? पिता ने दोनों बेटों को समझाया, बेटे, नुकसान हुआ है पर हम इसे नुकसान नहीं नसीहत समझेंगे। नुकसान हुआ है तो हम इसे नुकसान नहीं नसीहत समझेंगे। व्यापार है, हमेशा एक सा रूप नहीं होता, कभी फायदा होता है, कभी नुकसान होता है और हमने आज तक जो अपना इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया हैं, यह भी तो जीरो से स्टार्ट होकर के किया है। हमारे पास था क्या? आज बहुत कुछ हैं, हमें इस बात की गनीमत है कि नुकसान तो हुआ पर हम कर्जदार नहीं हुए, इतना हमारे पास है कि आज हम आगे बढ़ सकते हैं। हो गया नुकसान हो जाने दो, इसे नसीहत मानो और जीरो से फिर से गिनती शुरू करो। हम फिर आगे बढ़ेंगे और यही सोचेंगे कि आज से हमने अपनी नई शुरुआत की है और जिन कारणों से नुकसान हुआ उनसे हम अपने आप को बचा लेंगे फिर आगे खड़े हो जाएंगे। उनने कुछ दिन के लिए अपने कारोबार को बंद किया, सिस्टम को मजबूत किया और पूरा सिस्टम ठीक करने के बाद नए सिरे से जो अपना कारोबार किया। नतीजा यह निकला कि 2 साल में 300% की ग्रोथ अपने बिजनेस को दे दी, यह सकारात्मकता का परिणाम है। यह धैर्य का प्रताप है। मुझे उस व्यक्ति के वाक्य आज भी लगते हैं, उनने कहा, महाराज! इनसे कहिये ये नुकसान नहीं नसीहत है। है तुम्हारे अंदर यह क्षमता, यह कला? विकसित करो, यह सब लगा हुआ है, थोड़ी-थोड़ी बातों में बावले हो जाओगे तो कुछ नहीं कर पाओगे। धीरज होना चाहिए, कोई भी पोजीशन, स्थिति बने तो पहली बात, थोड़ी देर की बात है। दूसरी बात आप सोचिए, यह सकारात्मक दृष्टि से सोचना शुरू करें।

तीसरी बात, आशावादी बनिये। अपने मन में हताशा हावी मत होने दें, यह सोचे नहीं ठीक है, आज नहीं कल होगा, आज नहीं कल होगा, सब ठीक हो जाएगा, सब ठीक हो जाएगा, सब ठीक हो जाएगा। यह आपके अंदर की आशा की किरण हमेशा जलती रहनी चाहिए, यह बुझनी नहीं चाहिए। हर पल इस बात का विचार करिए, ठीक होगा, ठीक होगा। अगर आप ऐसा मनो भाव अपने मन में जगाए रखेंगे तो  आपका मन कभी टूट नहीं सकता। सब ठीक हो जायेगा। अरे, क्या हो गया, क्या हो गया, क्या हो गया तो रोना रोने से क्या होगा। आशा का दीप जलना चाहिए, मन में अगर यह आशा का भाव बना रहेगा, हताशा नहीं होगी तो जीवन कहीं से कहीं बढ़ जाएगा, व्यक्ति जीवन में कभी विफल नहीं होगा।

एक किसान, उसको मित्र ने एक विशेष प्रकार का बीज दिया और कहा इन बीजों को बौओं, इससे 90 फीट ऊंचे बांस होंगे। यह चाइनीज बांस है। किसान था, बीज को बो दिया, खेत में लगा दिया। अमूमन बीज बोने के 5-7-10 दिन बाद बीज अंकुरित हो जाते हैं लेकिन इसका तो बीज अंकुरित ही नहीं हुआ। 5-10 दिन की बात तो जाने दीजिए, रोज वह खाद पानी दे और बीज है कि अंकुरित होने का नाम ही ना ले। एक साल निकल गया, लोगों ने उलाहना करना शुरू कर दिया, उसकी हंसी उड़ाना शुरू कर दिया और कहा यह कहाँ पागल हो उठा है, यहां यह बीज कैसे विकसित होगा, यह तो अपना पूरा समय और शक्ति बर्बाद कर रहा है। लेकिन उसने कहा मैं अपने मित्र को जानता हूं, मेरा मित्र मुझसे धोखा नहीं कर सकता, मुझे विश्वास है अंकुर फूटेगा, अंकुर फूटेगा। और वह उसी लगन और निष्ठा के साथ उस बीज की सेवा में तत्पर रहा। लोगों ने उसे बहुत डगमगाने की कोशिश की लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। उसके हृदय में यह विश्वास था कि नहीं बीज अंकुरित होगा और अवश्य अंकुरित होगा।और ऐसा करते-करते लोग तो कहे यह पागल हो गया, और 5 साल बीत गए बीज अंकुरित नहीं हुआ। लोगों ने तो कहा, बीज तो सड़ गया। तब भी वो यही बोलता रहा, बीज अंकुरित होगा। और 5 साल के बाद एक अंकुर फूटा, उसकी खुशी का कोई पारावार नहीं रहा और देखते ही देखते एक सप्ताह में वह  5 फीट का हो गया, 15 दिन में वह 10 फीट का हो गया और 2 महीने में वह 90 फीट का हो गया। सब आश्चर्यचकित रह गए कि यह क्या हुआ। जिस बीज के लिए 5 साल की प्रतीक्षा की वह विकसित होकर के 2 महीने में 90 फीट का हो गया। यह किस के बदौलत हुआ? 5 साल का धैर्य, 5 साल का यह धैर्य किस के बदौलत है। मन में आशावादी दृष्टि, तुम्हारे मन में आशा है, धैर्य है। देखो, कैसे-कैसे लोग होते हैं, एक के विवाह के बाद संतान नहीं। लोग बहुत परेशान होते हैं, सारे खटकर्म करते रहे, लोग पता नहीं कहां-कहां जाते हैं। मेरे पास आया, मैंने उससे पूछा, क्या कोई डॉक्टर ने क्लीनिकली कोई डिफेक्ट बताया। बोले, नहीं, महाराज! हम लोग दोनों फिट हैं। हमने कहा फिर क्यों इतना अधीर होते हो, अपनी संतान नहीं है या तो किसी और की संतान को अपनी संतान बना लो। नहीं, महाराज! हम तो अपनी संतान चाहते हैं, कोई चमत्कार बता दीजिए। हमने कहा, चमत्कार से कुछ नहीं होता। एक चमत्कार मैं जानता हूं, अगर तू उसे अपना ले तो जरूर अपने भीतर घटित करेगा, बोले क्या। इसे समय पर छोड़ दो, समय पर छोड़ दो, अपने जेहन में एक बात डाल दो कि मेरे लिए संतान का सुख होना होगा तो होगा और मैंने उसे उन दिनों में Secret पढ़ रहा था तो मैंने उससे कहा एक काम कर तू हर पल अपने मन में विश्वास जगा, मुझे संतान होगी, मुझे संतान होगी, मुझे संतान होगी, संतान होगी, मैं माँ  बनूंगी, मैं माँ बनूंगी, मैं माँ बनूंगी। उसकी पत्नी को ही ज्यादा आकुलता थी और हमने कहा अपने अंदर का विश्वास बढ़ाओ। और कहते है- Thoughts become things। आप सब ताज्जुब करोगे कि विवाह के 19 वर्ष बाद उन्हें twins हो गये। Twins, दो लड़के, 19 बरस के बाद, कोई टोना- टोटका नहीं, कोई तंत्र-मंत्र नहीं, कोई एक्स्ट्रा मेडिकल नहीं। किस के बल पर? आत्म-विश्वास के बल पर, आशा के बल पर, धैर्य के बल पर। आप भी अपनाइए, धीरज तुम्हारे जीवन में बहुत बड़ा चमत्कार घटित करेगा। तो मन के विश्वास को कतई मत खोने दीजिए, आशावादी बनने से मन का धैर्य हमेशा कायम रहता है।

चौथी बात यथार्थ को स्वीकार कीजिए। यथार्थ पर विश्वास कीजिये। कर्म के सिद्धांत पर भरोसा, यथार्थ का विश्वास है। जीवन-मरण, संयोग-वियोग, हानि-लाभ, सुख-दु:ख जो कुछ भी है, विधि के विधान के आश्रित है। इनको अनुकूल हो तो भी स्वीकारना है, प्रतिकूल है तो भी मुझे स्वीकारना है। कर्म कि मार को अगर मैं व्याकुल होकर भोगूँगा तो भी भोगना है और समता से भोगूँगा तो भी भोगना है। जब दोनों स्थितियों में भोगना ही है तो धैर्य क्यों ना रखूं। यह चार बातें आप आत्मसात कर लो सारी अधीरता खत्म, खल्लास। बोलो, आप क्या चाहते हो? अधीरता मिटाना या अधीर बने रहना। अधीरता मिटाना है तो इसे अपनाइए, एक फार्मूला है तो विपत्ति में व्यक्ति अधीर होता है, वहां अपने आप को बचाइए। जब हमारी प्रगति में बाधा होने लगती हैं, तब भी मन अधीर हो जाता है, समय पर छोड़ दो। कहते है-

कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर और समय पाय तरुवर फले, केतो सींचो नीर।  

दिन में दस बार पानी डालोगे तो क्या जल्दी फल आ जाएगा। अरे फल तो तभी मिलेगा, जब उसका समय आएगा। धीरज रखने का मतलब यह नहीं है कि तुम अकलमंद हो करके बैठ जाओ, प्रयत्न शून्य हो जाओ, पुरुषार्थ ही ना करो। धीरज धारने का मतलब यह है कि सतत प्रयत्न तो करो, परेशान मत हो, मेरे हाथ में पुरुषार्थ है परिणाम नहीं। प्रगति होगी, मैं पूरी ताकत से और तरह से लगूंगा लेकिन रिजल्ट एकदम नहीं आएगा। खाना खाते ही खून नहीं बनता, कोई लोग कैलोरी की दवाइयां खाई या कैलोरी से युक्त भोजन करें और बॉडी बिल्डर नाचने लगे, बाँहों कि मसल्स देखना शुरु कर दे। तो भैया टाइम तो लगेगा, उतनी प्रतीक्षा तो हमें करनी होगी। अगर आपके मन में धैर्य आ गया और आपने इस सिद्धांत को स्वीकार लिया कि सब काम अपनी गति से होता है, अधीरता नहीं होगी। कुछ हमने चाहा और वह नहीं हुआ तो बड़ी मुश्किल होती है। देखो, आप लोगों के साथ चौका लगाते हो और 2 दिन, 3 दिन चौका खाली हो जाए तो अधीर हो जाते हो और कई लोग तो एक जगह हम गए और बोले, महाराज जी! 8 दिन से चौका खाली जा रहा है। बड़ा अधीर हुआ, रोने लगे कि 8 दिन से चौका खाली जा रहा है। संयोग से उस गांव में पहुंचे मुझे 5 दिन ही हुआ था, हम बोले कि क्या हमारे आने के 3 दिन पहले से लगा रहे थे। क्या? पांचवा दिन था और कह रहे हो कि 8 दिन से खाली जा रहा है। कितना अधीर होता है तुम्हारा मन और उससे कितने आकुल-व्याकुल हो जाते हो तुम? वहां अपने आप को संयत रखो, नहीं, कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। इस उक्ति को चरितार्थ करो, मेरा अधिकार मेरे कर्म पर है, मेरे हाथ में मेरा कर्म है, कर्म मेरा पुरुषार्थ है, परिणाम नहीं। मैंने यह सब पुरुषार्थ किया, जो परिणाम आए सहज रुप से स्वीकार हैं। मैंने अगर चौका लगाया तो उतने में मेरा काम हो गया, लाभ मिले तो अहोभाग्य और न मिले तो भी मेरा सौभाग्य। क्योंकि मैंने करने का सुप्रयत्न तो किया, कुछ मैंने चाहा और वह नहीं हो रहा तो अधीर मत हो। कैसे मिले? उसके लिए प्रयास करो, ठीक है, नहीं मिल रहा है तो शांति रखो। अधीर होने से तो जो हैं वह भी चला जाएगा, उसे हम बदलने की कोशिश करें तो मन की अधीरता स्थाई रूप से दूर होगी। तो विपत्ति आने पर मन अधीर होता है, प्रगति अवरुद्ध होने पर मन अधीर होता है। हमने कुछ चाहा और उसकी पूर्ति ना हो तो मन अधीर होता है। और चौथी बात हमारे संबंध हमारे अनुकूल नहीं हो तो मन अधीर हो जाता है। एक व्यक्ति बहुत अधीर हुआ, घर में बहु आई और बहू का नेचर नहीं जम रहा है। शादी हुए एक सप्ताह नहीं हुआ है और कह रहा है, बहु बड़ी तेज है, अब पता नहीं कैसे एडजस्ट होगी। टेंशन में आ गए। हम बोले, भैया, 25 वर्ष तक दूसरे घर में रही है, अलग संस्कारों में पली-बढ़ी है और 25 बरस बाद आज यहां आई हैं तो एक दिन में सब कुछ बदल जाए, ऐसा कैसे संभव है। तुम अभी से निर्णय ले लिए, अभी आई नहीं है, हफ्ता भर पूरा नहीं हुआ और बहू का स्वभाव बड़ा तेज है, बहू का स्वभाव बड़ा तेज है, धारणा बना रहे हो और तेज है, तेज है, तेज है, कह कर के वह तेज नहीं हो तो तेज कर दोगे। ऐसा आप लोग करते हो कि नहीं करते हो। एक ही दिन में चमत्कार। तुमसे पूछो कि तुम्हें कहे कि एकदम हमने आज तुम्हें इधर से उधर बैठा दिया, अपना नेचर बदल लोगे क्या। लेकिन इस तरह की प्रतिक्रिया बहुत होती हैं और कई लोग तो विवाह संबंध आदि होते हैं, इधर संबंध हुए नहीं और थोड़े दिन बाद संबंध विच्छेद की बात करना शुरू कर देते हैं। मेरे सामने तीन-चार प्रकरण ऐसे आए हैं कि शादी के बाद लड़की मायके से ससुराल गई है और एक सप्ताह ससुराल रही और वापस मायके चले गई और दोनों के divorce के पेपर तैयार हो गए। दोनों तरफ से तनातनी, एडजस्टमेंट नहीं हो रहा है। हम बहुत जल्दी निर्णय ले लेते हैं किसी के भी संबंध में ख्याल रखिए, सम्बन्ध बनाने में जीवन लगते हैं और बिगाड़ने में एक पल। अगर अपने संबंधों को मधुर बनाए रखना चाहते हो तो धैर्य रखो, जीवन में मधुरता का संचार होगा।

गुरु-शिष्य दोनों यात्रा पर थे, नदी के किनारे उनका बसेरा था। गुरु ने शिष्य से कहा, जाओ, पास में नदी है, पानी ले आओ। शिष्य पानी लेने के लिए गया, उसके थोड़ी देर पहले एक बैलगाड़ी गई, नदी से बैलगाड़ी गुजरी तो पूरा पानी मलिन हो गया था। पूरा पानी मैला-कुचैला तो वो लौट आया और बोला गुरुदेव पानी की व्यवस्था नहीं है, पानी बहुत मलिन है। गुरु ने पुछा- क्यों  मलिन है? अभी-अभी एक बैलगाड़ी निकली और पूरा पानी गंदा हो गया। उन्होंने कहा कोई बात नहीं, रुको, बैठ जाओ, थोड़ी देर तक गुरु-शिष्य अपने दूसरे काम करते रहे, बातचीत होती रही। कोई आधा घंटे बाद गुरु ने कहा, जाओ, अब पानी लेकर आओ तो शिष्य बोला, गुरुदेव मैंने कहा था ना पानी मैला है। तुम जाओ, देखकर आओ, पानी ठीक होगा लेकर आओ। वो गया तो पानी साफ था। वो लेकर के लौटा, एक सवाल उसके दिमाग में आया। आधा घंटा पहले जो पानी मैं देखकर के गया था, एकदम गंदा पीने लायक और अब लेकर आ रहा हूं तो एकदम साफ-स्वच्छ है। आखिर इसकी वजह क्या है? गुरु से पूछा तो गुरु ने कहा, वत्स! जिस समय तू पानी लेने के लिए गया था, बैलगाड़ी गुजरी। उसने पानी को मलिन कर दिया था, आधा घंटा में समय पास हो गया, वह गंदा पानी बह गया और साफ पानी आ गया, सब कुछ मिल गया। मैं आपसे केवल इतना कहना चाहता हूं, जब भी तुम्हारे संबंधों की नदी में समस्या की बैलगाड़ी गुजरे, तुम्हारे संबंधों की नदी से समस्या की कोई बैलगाड़ी गुजरे तो थोड़ा धैर्य रखो, समय पास कर दो, पानी साफ हो जाएगा और जीवन धन्य हो जाएगा। धैर्य रखना शुरू करो, टाइम को पास करने की कला विकसित करो, जीवन धन्य हो जायेगा। अपने जीवन में ऐसी धन्यता हम उद्घाटित करे और जीवन को आगे बढ़ाने का सबको प्रयास करने की आवश्यकता है तभी हम अपने जीवन में सार्थक उपलब्धि घटित कर सकेंगे। आज रविवार का दिन है, आज सब लोगों को ‘ध’ की बात की है, धीरज रखो तो धन्य बनोगे, मन का धैर्य कभी मत खोना, मन का धीरज कभी मत खोना, बस हमेशा ध्यान रखना

यह पतझड़ की शाम, अकेला फूल उदास बहुत है।

यह पतझड़ की शाम अकेला फूल उदास बहुत है,

शूलों की महफ़िल में अली का कटु उपहास बहुत है।

रो मत मृदुल समीर, दोबारा कोई और खिलेगा।

यह जीवन तो नीर, किनारा कोई और मिलेगा।

बिछड़ा मन का मीत, प्रीत के उर में व्यथा बहुत है।

नैनों के नीरव चितवन में प्रिय की कथा बहुत है।

मत हो सांस अधीर, दुबारा कोई और मिलेगा।

यह जीवन तो नीर, किनारा कोई और मिलेगा।

यह पतझड़ की शाम अकेला फूल उदास बहुत है।

शूलों की महफ़िल में अली का कटु उपहास बहुत है।

गा प्रभात का गीत, भीत हो अंधियारा पिघलेगा।

यह जीवन तो नीर, किनारा कोई और मिलेगा।।

अपने मन की आस को जगाए रखिए, जब तक सांस तब तक आस। यह आपके मन को धैर्य देगा और यह धीरज ही आपकी एक बड़ी ताकत बनेगी। बंधुओ! ताकत बनाकर रखो। आज गुणायतन की बात आप सबके बीच की जा रही थी, आज गुणायतन एक अलग स्वरूप लेने जा रहा है, यह भी धीरज का प्रताप है। धीरज का प्रताप, मैंने धैर्य नहीं खोया। लोग बहुत जल्दी कर रहे थे, कमेटी पर प्रेशर हैं जनता का, जल्दी कीजिए, जल्दी कीजिए, जल्दी कीजिए। मुझे कोई समझ में नहीं आए तो मैं स्वीकार कैसे करूं। जब तक मुझे मेरी कल्पना साकार होते ना दिखे, मेरा मन ही तैयार नहीं हुआ। नतीजा, 2007 से लेकर 2017 तक के सारे चिंतन को मैंने डस्टबिन में डाला। 11 अगस्त 2017 को उससे पहले की सारी R&D कचरे में चली गई और यह 1 साल में जो कुछ भी डेवलपमेंट हुआ, वह एक मिसाल बन गई। बंधुओ! दुनिया में जितना भी इनोवेशन हुआ है और जितने बड़े-बड़े साइंटिस्ट ने इंवेंशन किए हैं, उनको उसके लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा हैं, बड़ा धैर्य रखना पड़ा हैं। वर्षों के शोध को कचरे में भी डालना पड़ा है, तब जीवन में कामयाबी होती है, अगर पकड़ कर के बैठ जाओगे तो कुछ नहीं कर पाओगे। मैंने इन लोगो से एक ही बात कही जब तक वाह नहीं निकलेगी, तब तक हम आगे नहीं बढ़ने देंगे। इसी वजह से इतने सालों तक हमने वहां के सारे कार्यों को विस्तारित नहीं होने दिया था कि अभी विस्तार कर दोगे तो सारा मामला गड़बड़ हो जाएगा। कपड़ा कट जाएगा तो डिजाइन वही बनानी पड़ेगी, अभी नहीं होना चाहिए, कपड़ा अखंड रखो। जब सही स्वरूप लेगा तो हम उसको आकार देंगे। और बस अब उसका समय आ गया है, मैं तो यही मानता हूं कि जब जिसका समय आता है, तभी वह काम होता है और आप लोगों को उसकी बड़ी प्रतीक्षा है पर अभी आतुर होने कि आवश्यकता नहीं है।

उम्मीद बनाकर रखिए, बहुत तय समय पर वह सारा का सारा कार्य होगा। आप उसको आगे बढ़ा कर के कोशिश कीजिए।

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