कीमती जीवन का सदुपयोग कैसे करें?

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कीमती जीवन का सदुपयोग कैसे करें?

चार बातें: बाकी क्या? बचा क्या? बदला क्या? बदलना क्या?

एक सेठ अपने जीवन की उपलब्धियों को गिन रहा था। सोच रहा था- मैंने अपने जीवन के प्रारंभिक दौर में व्यवसाय की शुरुआत की और अपनी दक्षता और कुशलता के बदौलत विशाल साम्राज्य खड़ा किया। मैंने खूब दौलत कमाई, दौलत के साथ-साथ मैंने खूब शोहरत भी पाई। मेरे पास पैसा है, मेरा प्रभाव है और मेरी प्रतिष्ठा है। मेरा अपना परिवार है, सब कुछ हैं। ये मेरे जीवन की उपलब्धियाँ हैं। अब बाकी क्या बचा?

आज की बात है। हिसाब लगाओ- क्या बाकी है? अपने जीवन में देखो। उस व्यक्ति ने तो अपने जीवन में होने वाले बाकी का हिसाब लगाया, चिंतन किया। तुमने कभी अपने जीवन के विषय में सोचा कि मेरे लिए बाकी क्या बचा? क्या बाकी है?- पहला सवाल। कुछ बाकी है कि सब हो गया? एक बार मैंने ऐसे ही सवाल किया कि जीवन में अब क्या बाकी है? एक ने कहा- मरना। केवल मरना बाकी है। तो गुरुदेव कहते हैं- मरना है तो मर जा, पर जीते जी कुछ कर जा; वरना कर्जा तो मत कर जा। ये बताओ- क्या बाकी है? बाकी शब्द बहुत ही व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है। जब हम कहते हैं- बाकी रह गया, बाकी बच गया; तो कोई काम भी बाकी रहता है और किसी की देनदारी भी बकाया रह जाती है। वो बाकी हैं। तुम देखो- तुम्हारे जीवन में क्या बाकी है? खुद के लिए और औरों के लिए। सब शेष हो गया कि कुछ बाकी है, बैठकर चिंतन करने की जरूरत है। बैठो, विचार करो- क्या बाकी है? बोलो। कुछ बाकी रह गया है? आज घर जाना, कागज़ पेन उठाना और देखना- मैंने क्या-क्या पाया? क्या-क्या पाया? क्या-क्या पाया? उनकी एक पूरी लिस्ट बना लेना, लंबी फेहरिस्त होगी। फिर देखना, सोचना कुछ बाकी है या नहीं। आप लोग जब कभी भी विचार करते होंगे, हिसाब तो लगाते ही होंगे। तो क्या देखते हो- क्या बाकी है अभी? और कौन सा काम बाकी है अभी? और कौन सा काम बाकी है अभी? और कौन सा विस्तार बाकी है? तुम जो भी सोचते हो, वो बाहरी जीवन की बात सोचते हो। क्या-क्या बाकी है? और तुम्हारी दौड़ बाकी रहती है। आख़िरी क्षण तक दौड़ते रहते हो लेकिन अपने जीवन का जो मूलभूत प्रयोजन है, उसकी तरफ तुम्हारा ध्यान बहुत कम जा पाता है। कभी विचार किया उसके विषय में? क्या-क्या बाकी रह गया? संत कहते हैं- अभी तक तुमने जो कुछ किया है, वो नया नहीं। जन्मांतरों से तुम वही करते आए हो। उसकी ही पुनरावृत्ति चलती आई है और तुम सोचो कि वह कभी पूरा हो जाए, तो पूरा होने वाला भी नहीं है। वो अनादि से अधूरा है, अधूरा ही रहेगा, कभी पूर्ण नहीं होगा। तुम उसे सोचते हो कि बाकी रह गया। वो तो बाकी ही रहेगा, पर जो पूर्ण हो सकता है, उसकी तरफ तुम्हारा ध्यान नहीं है। आचार्य कुंदकुंद कहते हैं-

शुद्ध परिचीदान भूदासव्वस्सभी कामभोगबंधकः।

एवत्त सुविलम्भो नवरीनोसुहरो विहत्तस्स।।

 तुम्हारे द्वारा जन्म जन्मांतरों से काम, भोग और बंध की कथाएं सुनने में आई हैं, परिचय में आई हैं, अनुभव मे आई। अब तक तुमने जब से इस संसार में तुम्हारा आविर्भाव हुआ है, तुमने सुना है तो केवल काम, भोग और बंध को सुना है, परिचय पाया है तो केवल काम, भोग और बंध का परिचय पाया है, अनुभव किया है तो काम, भोग और बंध का अनुभव किया है। ये कहीं बाकी नहीं हैं। तुम गोरखधंधे, भोग-विलास, मौज-मस्ती में अपना सारा जीवन बिताए हो। लेकिन संत कहते हैं- सुनना चाहते हो तो उसे सुनो, जो आज तक सुना ना गया हो; परिचय पाना चाहते हो तो उसका परिचय पाओ, जो अब तक अपरिचित रहा है; अनुभव करना चाहते हो तो उसका अनुभव करो, जो आज तक अनानुभूत रहा है; सुनो तो उसे सुनो, जिसको सुनने के बाद कुछ सुनना बाकी ना रहे; परिचय पाना चाहते हो तो उसका परिचय लो, जिसका परिचय पाने के बाद फिर किसी का परिचय बाकी ना रहे और अनुभव करना चाहते हो तो उसका अनुभव करो कि फिर कोई अनुभव बाकी ना रहे। वो बाकी, क्या बाकी है? बोलो, बाकी है या नहीं? हाँ? कितने समझदार हैं! और हमने तय कर लिया- चुकाना नहीं है। जीवन में तुमने बहुत कुछ किया पर क्या करनीय हैं, इस पर विचार करो। क्या शेष रह गया, जिस पर मेरा ध्यान नहीं गया, जिस पर मैंने आज तक विचार नहीं किया। सच्ची बात तो ये है कि जो यथार्थत: विचारणीय है, उस पर तुम्हारा आज तक ध्यान नहीं गया और जिस पर तुम 24 घंटे लगे हो, वो ध्यान देने योग्य भी नहीं हैं; वो तो अनादि से करते आ रहे हो। चार गति और 84 लाख योनियों में मनुष्य ने यदि कुछ किया है, तो क्या किया हैं? आहार, भय, मैथुन, परिग्रह की इन संज्ञाओं में ही तो उलझ करके रखा हैं। भोग और विलासता के इस चक्कर में ही तो अपने आप को उलझाकर के रखा हैं। गोरखधंधे में ही तो मनुष्य आज तक घूमता रहा हैं। काश! अपने जीवन के यथार्थ को पहचानता और सोचता कि मैंने सब कुछ कर लिया। अगर करना कुछ शेष है, तो जीवन का कल्याण अभी बाकी है। क्या बाकी है? क्या बाकी है? कल्याण। कब करोगे? महाराज! मरने के बाद करूँगा। कब करोगे? आप लोग गीत तो गाते हो- रात अभी बाकी है, बात अभी बाकी है, मुलाकात अभी बाकी है। लेकिन जो बाकी है, उसे समझो। कल्याण की बात अभी बाकी है। एक बात बताऊँ- तुम्हारा कल्याण कोई दूसरा नहीं करने वाला, उसके लिए तुम्हें खुद को तैयार करने पड़ेगा। खुद आगे होकर के ही तुम अपना कल्याण कर सकते हो, कोई गैर तुम्हारा कल्याण नहीं कर सकेगा। जब तक तुम स्वयं के प्रति जागरुक नहीं होगे, कल्याण की बात केवल बात होगी। पहचानो अपने आपको, मैं कौन हूँ? मेरा क्या है? मुझे क्या करना है? अभी तक मैंने जो कुछ भी किया, वो मेरे जीवन की जड़ उपलब्धियाँ हैं; यहीं छूट जाने वाली है। अब मुझे वो करना है, जो मेरे जीवन की असली उपलब्धि है, जो मेरे साथ जाने वाली है; बस इतना विचार अभी बाकी है। ये विचार तुम्हारे मन में जिस दिन जाग जाएगा, वही क्षण तुम्हारे जीवन का टर्निंग पॉइंट बन जाएगा। तो क्या बाकी है? इसको सोचोगे तो बदलाव घटित होगा।

चार बातें आपसे करनी है।

 

  • बाकी क्या?
  • बचा क्या?
  • बदला क्या?

 

  1. बदलना क्या?

चार ब हैं- बाकी क्या? बचा क्या? बदला क्या? बदलना क्या? तुम्हारे जीवन में क्या-क्या बाकी है? महाराज! अभी तो बेटे की शादी बाकी है; घर में बहू आ गई, बच्चा होना बाकी है; अब बच्चा बड़ा हो गया, उन को पढ़ाना बाकी है; पढ़ाना बाकी होने के बाद जॉब लगाना बाकी है। तुम्हारे लिए तो केवल दुनियादारी ही बाकी हैं। मैं बताऊँ- वो ऐसा बकाया है, जो कभी चुकता नहीं होगा। चुकता नहीं होगा क्योंकि वो हैं ही ऐसा। जैसे साहूकार से कोई ब्याज में रकम ले, जिंदगी भर वो चुकाए, तो भी नहीं चुकता। पुराने जमाने में ऐसा ज्यादा होता था। तो वो बाकी है, सो बाकी है। बाकी यानी उधार। समझ गए? और दुनिया में जो उधार लेता है, उसका उद्धार होता नहीं, वो बाकी ही बना रहता है। इसलिए क्या बाकी है? अभी तो जो हुआ, केवल उधार लिया। अब उधार चुकाना नहीं, नगद कमाना बाकी है। कमाओगे तो उधार अपने आप चूक जाएगा। कुछ नया करो, अभी तो सब पुराना चला है, गोरखधंधे में ही लगा है। अपने अंदर मोड़ लाना चाहिए। मेरे संपर्क में एक व्यक्ति है, जो आज एक उच्च अधिकारी है। उस व्यक्ति के जीवन में जबरदस्त बदलाव आया। कैसे बदलाव आया?

उन्होंने कहा- महाराज! आपके एक प्रवचन ने मुझे मोड़ दिया। बोले- क्या मोड़ा? बोला- आपने एक दिन अपने प्रवचन में एक उदाहरण दिया था, 0 प्लस 0 बराबर क्या? यहाँ भी कुछ दिन पहले मैंने उदाहरण दिया था और आपने अपने प्रवचन में कहा था कि एक दिन तो सब राख हो जाना हैं। तो मुझे लगा कि वाकई में महाराज सही कह रहे हैं- राख सब होना हैं। तो जब सब राख ही होना हैं, तो राख को इकठ्ठा करने के लिए हम क्यों लगें? इससे पहले कि राख हो, हम अपनी जिंदगी को खरा बनाने का मार्ग चुन लें और उनके जीवन में बदलाव आ गया। बोला- महाराज! तभी मैंने मन ही मन संकल्प किया- रात्रि भोजन का त्याग किया, उन्होंने रिश्वत का त्याग किया, परिग्रह की सीमा बना ली और आज अपने जीवन को संयम, सदाचार और अनासक्ति के साथ बिता रहे हैं। परिवर्तन मनुष्य के भीतर, एक वाक्य से परिवर्तन हो जाता है, जिसके अंदर घटित होना होता है तो और जिसकेे भीतर की आत्मा जागृत नहीं होती, उसे कितना ही सुना लो, वो रस ले के सुनेगा, तालियाँ बजाएगा लेकिन रहेगा जहाँ के तहाँ।

क्या बाकी है, तुम्हें तय करना है। मुझे क्या करना बाकी है? आत्मा के कल्याण का उद्योग करना बाकी है और कब करोगे? उसको शुरू कब करोगे? बोलो। इतना तो पता हैं तुम लोग को, क्या बाकी है? पता है कि नहीं? है? बोलो। हैं बाकी? हैं बाकी? है लेकिन कई लोग होते हैं, एक सज्जन ने किसी से कहा कि भैया! कुछ रकम हमको उधार दे दो। बोले- भैया! हम तुमको कैसे उधार दे दें? चुकाओगे कैसे? हम तुमको कैसे उधार दे दें, चुकाओगे कैसे? बोले- आज तक जिसका लिया, उसका लौटाया नहीं, चुकाओगे कैसे? बोला- आज तक जिसका लिया, उसका लौटाया नहीं; तुम्हारा क्या खा के भाग जाएंगे? ऐसे लोगों के लिए क्या करें? बोले- हम तो ठीक हैं; जो बाकी है, बाकी रहने दो। देखिए- बाकी लेना, बाकी देना, बाकी वसूलना ये तीन अलग-अलग क्रिया हैं। बाकी लेना, बाकी देना, बाकी वसूलना। तो बाकी लेना बड़ा सरल है। किसी को आप जरूरत होती है, तो तुरंत किसी से कुछ उधार माँग लेता है। ये बाकी लेना है। बाकी देना यानी बाकी चुकाना। बाकी लेना और बाकी देना। चार ही हो जाए। चलो चार हो गया- बाकी लेना, बाकी देना, बाकी चुकाना, बाकी वसूलना। हिसाब बराबर होता है, चार अपने आप आता है। तो हम जरूरत पड़ने पर व्यक्ति बाकी लेता है। बाकी देता कौन है? जिसके पास सर प्लस होता है, वो बाकी देता है। बाकी माँगने वाले लोग बहुत मिलते हैं, बाकी देने वाले लोग कम होते हैं और बाकी किसको दिया जाता है? जिसको लोग पहचानते हैं।

एक आदमी एक के यहाँ गया कि हमको बहुत सख्त आवश्यकता है, 50 हज़ार रुपए दे दें। एक सेठ के पास गया कि मुझे बहुत सख्त आवश्यकता है, 50 हज़ार रुपए मुझे दे दीजिए। मेरा काम हो जाएगा, मैं आपको वापस लौटा दूँगा। उसने कहा- मैं तुम्हें पहचानता नहीं, 50 हज़ार कैसे दूँ? मैं तुम्हें पहचानता नहीं, 50 हज़ार रुपए कैसे दूँ? उसने कहा- क्या बताऊँ? अभी तक मैं जिनके पास गया, सब ने ये कहा- हम तुमको पैसा कैसे दें क्योंकि हम तुम्हें अच्छे से पहचानते हैं। बात समझ में आई? जो पहचानता नहीं है, वो भी बाकी नहीं देता और जो पहचानता है, वो भी बाकी नहीं देता। तुमने अपनी पहचान क्या बनाई? तो बाकी लेना और बाकी देना- सर प्लस होगा, तो बाकी दोगे। पर कब सर प्लस होगा? जब तुम जनरेट करोगे, तब ना! जिसके ऊपर खुद बाकी चढ़ा है, वो औरों को क्या बाकी देगा? बोलो। कर्ज चढ़ा है तुम पर, कर्ज को चुकाना अभी बाकी है। पाप का कर्ज तुम्हारे सिर पर बहुत है, उस कर्ज का भार उतारना अभी बाकी है। बाकी लेना, बाकी देना और एक बात बताऊँ- हम बाकी लेते हैं, किससे? साहूकार से बाकी लेते हैं, साहूकार ही बाकी देता है। यही होता है ना? साहूकार से बाकी लेते हैं। साहूकार बाकी देता है और जो समझदार होता है, वो बाकी चुकाता है और जो बेईमान होता है, उससे बाकी वसूला जाता है। हैं ना? थोड़ा इस बाकी को देखिए।

हमारे ऊपर एक बहुत बड़ा ऋण है, किसका? कर्मों का, पापों का जो ऋण हमने लिया है, किससे लिया है? कर्म से ही कर्म का ऋण लिया है। हमने ऋण लिया हैं, बहुत सारा ऋण, जिसे हमेंं चुकाना हैं। कर्म ने हमें ऋण दिया और बाकी हमने लिया हैं, तो हमें बाकी चुकाने का दायित्व भी ध्यान में रखना चाहिए। जो महान पुण्यशाली होते हैं, वो बाकी देते हैं। कर्म उदार हैं, बाकि देता है। तुमको जितना लेना है, ले लो क्योंकि वसूलना वो जानता है। कई लोग ऐसे होते हैं, कहते हैं- आओ! तुमको तो जितना लेना है लो, वसूलना हम जानते हैं। तो कर्म आप जितना कर्ज करना चाहोगे, कर्म देगा, बड़ी उदारता से देता है। उसको मालूम है कि इसको जितना मैं बाकी दूँगा, उतना बंधक बनाकर रख सकूँगा। समझ गए? तो तुमको कर्म खूब उधार दे रहा है, ले लो। आज तो बड़ा मजा लग रहा हैं, कर्जा लेकर के घी पियो। कर्म सब दे रहा है। तुमको जितना भोगविलास करना है, कर लो; जितनी मौज-मस्ती करनी है, कर लो। वो कह रहा है- लो, जितना लेना है लो। बड़ी उदारता से कर्म तुमको बाकी दे रहा है लेकिन मुगालते में मत रहना। अगर तुमने कर्म के द्वारा लिए गए बाकी को समय पर चुकाया नहीं, तो कर्म बड़ी बेरहमी से अपना बाकी वसूलना जानता है और वसूल कर छोड़ता है। तुम्हें बंधुआ मजदूर बना देगा, बंधक बना देगा और जन्मांतरों से तो ये ही हुआ है। कुछ पुण्य तुमने कर्जेे मेंं लिया और उसका भोग कर लिया, चुकाया नहीं। पुण्य पाए हो, तो पुण्य से पुण्य की अभिवृद्धि करो और पाप के कर्ज को उतारो। ये तुम्हारी समझदारी हैं और पुण्य करके उसका भोग कर लोगे, तो तुम्हारा पतन अवश्यंभावी है। आजकल बैंकों से लोग रुपया लेते हैं, क्यों लेते हैं? इसलिए कि उसको इनवेस्ट करेंगे और इन्वेस्ट करके हम बिजनेस करेंगे, कमाएंगे और उसको चुका देंगे ब्याज समेत। यही होता है ना? लेकिन कोई बैंक से रुपया तो ले ले और रुपया लेनेे के बाद उसको पूरा भोग ले, कमाना बंद कर दे। जो रुपया लिया है, उसको कमाना बंद कर दे और खाना शुरू कर दे, तो क्या होगा? कुछ दिन में NPA होगा और उसके बाद बैंक वाले आएंगे, सारी संपत्ति कुर्क करके नीलाम कर देंगे। और क्या होगा? यही तो हो रहा है। हो रहा है ना? बंधुओं! आज तुम्हारे पास जो पुण्य है, ये कर्ज है। इस पुण्य का उपयोग करो और उससे कुछ कमाओ। कब कमाओगे? जब हर पल तुम्हारे मन में भी ये बात बैठेगी- कर्जा अभी बाकी है। कर्जा अभी बाकी है। बाकी चुकाना अभी बाकी है।  

जो निष्ठावान लोग होते हैं, ईमानदार लोग होते हैं, वो कभी किसी से कर्ज लेना नहीं चाहते और अगर थोड़ा भी कर्ज लें, तो उसे चुकाना अपना फर्ज मानते हैं। भूखे रहने को तैयार होते हैं लेकिन कर्ज चुकाने में कोई देर नहीं करते। जिस दिन तुम्हारे भीतर ये समझदारी हो जाएगी, तुम्हारा चित्त बाकी चुकाने में अपने आप लग जाएगा। और बाकी चुकाओगे कब? जब कामाओगे तब। बोलो- बाकी कब चुकेगा? जब कमाओगे तब। किसी के ऊपर लाख रुपए का कर्जा है, 10 हज़ार की कमाई है और दो लाख का खर्चा है। उसका क्या हाल होगा? लाख का कर्जा, 10 हज़ार की कमाई और दो लाख का खर्चा। क्या होगा? ऐसे ही तुम पर भारी कर्जा है और जितना कर्जा, उससे ज्यादा खर्चा है, तो तुम्हारा दिवाला पीटना है कि नहीं? तो फिर क्या होगा? तो उठा ले जाएगा, तुम्हें मजूरी कराएगा। कर्म उठा करके तुम्हें कभी नरकों में ढकेलेगा, कभी निगोध में ढकेलेगा, कभी पशु बनाएगा, कभी पक्षी बनाएगा, कभी कीड़ा बनाएगा, कभी मकोड़ा बनाएगा, कभी बैल बनोगे, कभी गधा बनोगे, कभी घोड़ा बनोगे, कभी कुत्ता बोलोगे, कभी बिल्ली बनोगे। न जाने क्या-क्या बनोगे अपना बाकी चुकाने के लिए? भाग्यशाली हो, नर तन पाए हो। अभी अपेक्षाकृत बैलेंस शीट अच्छी है। उद्यम करो बाकी चुकाने का और एक ही उद्यम है- कमाई बढ़ाओ। महाराज! वो ही तो हम चाहते हैं। आप तो कोई मंत्र दे दें, हमारा धंधा बढ़ जाए। बाहर की कमाई असली कमाई नहीं है, भीतर की कमाई करो, कल्याण के मार्ग में लगो, तो देखो तुम्हारे जीवन में कितना बड़ा परिवर्तन घटित होता है। एक चिंतन होना चाहिए कि अब हमें बाकी लेना नहीं है- पहली बात। बाकी देने की ताकत तो हमारे पास है नहीं क्योंकि खुद कर्जदार हैं, पर बाकी चुकाने में कोई देर नहीं करनी है। ऐसी नौबत आने ही नहीं देनी है कि कर्म आए और अपना बाकी वसूलने के लिए हमें प्रताड़ित करे। अब तक तो यही हुआ है। उससे बचना चाहते हो, उसके प्रहार और प्रभाव से अपने आप को बचाना चाहते हो, तो तुम्हें अपने जीवन की दिशा और दशा में परिवर्तन करना होगा। तो क्या बाकी है? बोलो। हाँ? समझ में आ रहा है क्या? किसी नतीजे पर पहुँचे? क्या बाकी है? हाँ? कर्जा चुकाना बाकी है- नंबर वन। हाँ? बहुत कुछ बाकी है। जो करना है, सब अभी बाकी है। कब करेंगे? कब करेंगे? महाराज! कर लेंगे। कब करेंगे? जब समय आएगा, तो कर लेंगे, अभी तो समय बहुत बाकी है। भाई! समय किसी का मोहताज नहीं होता। जो करना है, अभी करो। अभी नहीं तो कभी नहीं। क्या बाकी है? इस पर विचार करो। बाकी क्या? आत्मा का कल्याण, जीवन का हित, जीवन का उद्धार- यही हमारे लिए बाकी है, जिसके लिए हमें सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए, पुरुषार्थशील रहना चाहिए।

दूसरी बात- बचा क्या? हिसाब लगाओ- तुम्हारे पास क्या बचा? अपना जो बचा, उसको समझने के पहले उनका देखो, जो तुम्हारे पीछे छोड़ कर के गए। वो जिंदगी भर खूब कमाए, बचा क्या? महाराज! जो उन्होंने कमाया, सब बच गया पर कमाने वाला नहीं बच पाया। क्या? उन्होंने कमाया, वो बच गया पर कमाने वाला नहीं बचा। बात समझ में आ रही है? कोई नहीं बच सकता। तुम जो कमाओगे, वो भले यहाँ बच जाएगा; मुश्किल ये है- जिसे बचाने का प्रयास करना चाहिए, उसकी तरफ तुमने कभी ध्यान नहीं दिया और जो बचाया नहीं जा सकता, उसके पीछे तुम 24 घंटे लगे रहे। जिसके बचाने का कोई औचित्य नहीं, उसके पीछे तुम 24 घंटे लगे रहे। जीवन भर तुमने धन बचाया, वो तुम्हारे किस काम में आया? जीवन के गुजारे के लिए थोड़ा काम में आता है, पर गुजर जाने के बाद वो किस काम में रहता है? मौत सामने आती है, तो तुम्हारे द्वारा जोड़ी गई सारी संपत्ति मुँह ताकते खड़ी रह जाती है, कुछ काम में नहीं आता। किसे बचा रहे हो? बचा क्या? जो लेकर आए थे, जितना लाए थे, उसमें कुछ वृद्धि की या वो भी खत्म कर दिया? किसी पर कर्ज चढ़ा हो, तो वो हमेशा ये सोचता है कि मेरे लिए कितना कर्ज था? उसमें मैंने कितना चुका दिया? कितना बचा? यही ना सोचते हो? अब इतना बचा। भैया! मुझे इसे भी चुकाना है। तुम्हारा कितना कर्ज बचा, उसे चुकाना है और तुमने जिसे बचाया है, उसको बचाने ना बचाने का कोई मतलब नहीं। हाथ ही मलते रह जाओगे, हाथ में कुछ भी शेष नहीं रहेगा। जो बचा है, वो सब शून्य है। जो बचा है, वह सब शून्य है। जो बचाना है, उसे देखो। किसे बचाना है? अपने जीवन को बचाना है, अपनी आत्मा को बचाना है। किससे बचाना है? पतन से बचाना है, अहित से बचाना है, पाप से बचाना है, अकल्याण से बचाना है। उनसे अपने आप को बचाने का उद्यम कीजिए। अगर उनसे बचा लिए, तो तर गए। बाकी और कोई से नहीं बच सकते, मौत से भी नहीं बच सकोगे पर पाप से बच गए, तो निर्भार होकर जाओगे और पाप से नहीं बच पाए, तो उसके भार में दब जाओगे। क्या बचाना है, इस पर विचार करना चाहिए। बचा क्या? बचाना क्या? ये हमें सोचना है।

 आखिर बदला क्या? बदलना क्या? जीवन में बदलाव तो बहुत आया। मैं एक नगर में गया, 20 साल बाद उस नगर में जाना हुआ। जब मैं हजारीबाग गया था 22 साल बाद, बहुत कुछ बदला-बदला सा था। लोगों ने बोला- महाराज! देखो ये बदल गया- ये बदल गया- ये बदल गया- ये बदल गया। एक कूड़े का ढेर रहता था। बोले- महाराज! ये भी बदल गया। तो एक युवक बोल रहा था- महाराज! ये बदल गया- ये बदल गया- ये बदल गया। बहुत देर से उसकी बातें मैं सुन रहा था। जब खुद बोला- बदल गया- बदल गया- बदल गया। मैंने कहा- तू जहाँ का तहाँ रह गया, सब तो बदल गया। तू कहाँ बदला? बात समझ रहे हैं? बाहर के बदलाव पर मनुष्य 24 घंटे ध्यान रखता है, भीतरी बदलाव पर उसका ध्यान नहीं जाता। परिवर्तन बाहरी नहीं, भीतरी अपेक्षित है। अपने आप को भीतर से बदलने का उद्यम करिए। क्या बदला? बस इतना ही बदला कि पहले मैं एक साधारण से मकान में रहता था, अब बढ़िया बंगला हो गया। और क्या? पहले मैं साधारण इलाके में रहता था, पॉश इलाके में रह गया। पहले मैं साइकिल से घूमता था, अब कार में घूमने लगा। पहले मेरे पास साधारण सी कार थी, अब एकदम Mercedes में घूमता हूँ। पहले मेरे पास पहनने के ढंग के कपड़े भी नहीं थे, अब तो मैं ब्रांडेड पहनता हूँ। पहले मेरे पास खाने-पीने की भी व्यवस्था नहीं होती थी और अब मैं तो सारी अच्छी से अच्छी चीजों का उपभोग करता हूँ। जीवन बहुत बदल गया, मेरी लाइफ स्टाइल बदल गई। यही है ना बदलाव? तुम सब ऊपर से बदलते हो और इसी बदलाव को अपनेे जीवन की प्रगति मानने का भ्रम पालते हो। नहीं, ये बदलाव तो जड़ बदलाव है, ये किसी काम का नहीं। ये किसी काम का नहीं है। ये तो यहीं छूट जाने वाला है। बदलना है तो अपने हृदय को बदलो, बदलना है तो अपने मन को बदलो, बदलना है तो अपने भाव को बदलो, बदलना है तो अपने विचारों को बदलो। वो बदलाव ही जीवन का वास्तविक बदलाव है। हृदय परिवर्तन हो, मन परिवर्तित हो, विचार बदले, भाव बदले तो जीवन में स्थाई परिवर्तन घटित होगा। वो तुम्हारे जीवन की एक उपलब्धि बनेगी। मुझसे पूछो कि क्या बाकी है, तो मैं इतना ही कहूँगा- बदलाव अभी बाकी है। क्या बाकी है? बदलाव लाओ, भीतरी बदलाव; बाहर का बदलाव नहीं। तुम बाहर से बदलते हो। पल में तुम्हारा मूड बदल जाता है। मूड मत बदलो, मन बदलो, विचार बदलो, भाव बदलो। जो तुम्हें भोग से योग की ओर मोड़ दे, जो विलास से वैराग्य की ओर मोड़ दे, जो पाप से पुण्य की ओर मोड़ दे, जो पदार्थ से परमार्थ की ओर मोड़ दे, वो बदलाव अपने भीतर घटित करो। जिस दिन वो घटित हो जाएगा, बेड़ा पार हो जाएगा। तो जो कुछ करना है, अभी समय है, कर लो। समय अभी बाकी है और काम अभी बाकी है। समय रहते यदि तुमने कर लिया तो कर लिया, नहीं तो गए काम से। मनुष्य के मन का सबसे बड़ा शत्रु है उसका प्रमाद। ऐसा नहीं होता कि हमारे पास अवसर नहीं आते, अवसर हमें मिलते हैं लेकिन हमारे मन का प्रमाद उसका लाभ नहीं उठाने देता। प्रायः हमारे साथ यही होता आया है कि जब जब हमारे पास अच्छे अवसर आए, हमने अपने आलस्य और प्रमाद के कारण उसकी उपेक्षा कर दी, उसका लाभ नहीं उठाया। अवसर का लाभ उठाना सीखिए। प्रमाद को अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए, अन्यथा हाथ मलते रह जाओगे, कुछ भी नहीं होगा।

एक बड़ी पुरानी कहानी याद आ गई। एक सेठ था, अपार संपत्ति का मालिक था लेकिन समय का कुछ ऐसा प्रहार पड़ा कि वो दाने-दाने को मोहताज हो गया। जिसके दरवाजे से कभी कोई याचक खाली नहीं गया, काल का ऐसा प्रकोप कि वो व्यक्ति खुद दाने-दाने को मोहताज हो गया। वहाँ का राजा उसका बचपन का मित्र था। धर्मपत्नी ने कहा कि ऐसे विकट संकट की घड़ी में आप राजा के पास जाओ, निश्चित: राजा हमारी कोई ना कोई मदद करेगा। उसने कहा- राजा तो मुझे इस फटेहाल स्थिति में पहचानने से भी इन्कार कर देगा। मुझे संशय है कि राजा मुझे पहचानेगा भी कि नहीं। नहीं-नहीं, मैं राजा को जानती हूँ। राजा आपका बड़ा प्रेमी है, उदार है। मुझे पक्का भरोसा है कि संकट की इस घड़ी में वो आपका साथ देगा। पत्नी की प्रेरणा और समय की पुकार दोनों से उत्प्रेरित होकर वो राजा के यहाँ जाने का मन बना लिया। राजा के यहाँ गया, द्वारपालों ने उसे रोका लेकिन जैसे ही उसने कहा कि जाओ, आप राजा से कहो कि आपके बचपन का मित्र आप से मिलने आया है, मेरा नाम बताना। द्वारपालों ने राजा तक उसकी बात पहुँचाई। राजा ने जैसे ही अपने मित्र का नाम सुना, अपने आसन से उठा और खुद उसे दरवाजे तक लेने आ गया। गले लगा लिया, अपने बाजू के सिंहासन पर बिठा कर उसका आत्मीय स्वागत किया। फुला ना समाया और इससे पहले कि वो कुछ बोले, उसने कहा- मित्र! मैं तुम्हारी स्थिति को देख रहा हूँ। तुम्हारी स्थिति को देख रहा हूँ। कोई चिंता मत करो, अभी मैं हूँ। तुम्हारे लिए पूरा खजाना खोल देता हूँ रत्नों का और तीन घंटे का समय देता हूँ, तुम जितना रत्न ले जा सको ले लो, खुली छुट है। क्या था? रत्नों का खजाना खोला गया। रत्न राशि देखकर वो मुग्ध हो उठा, उसकी आँखें चुंधिया गई। चारों तरफ रत्न-रत्न-रत्न, ऐसे रत्न जिसे उसने अपने जीवन में कभी देखा भी नहीं था। उसने सोचा- अब इतने सारे रत्नों का करूँगा क्या? जिंदगी में कमाया, वो ही चला गया। ठीक है! इस रत्न के कक्ष में आया हूँ, थोड़ी देर इस को निहार करके इसका सुख तो भोग लूँ। जाते समय दो-चार ले लूँगा और उसने चारों तरफ उस रत्न के कक्ष को निहारना शुरू किया। अपनी दृष्टि दौड़ाई तो एक किनारे में उसे रत्नों के खिलौने दिखे। गदगद हो उठा, वाह! कितने उत्तम रत्न हैं, कितने अच्छे खिलौने। ऐसे खिलौने तो मैंने कभी देखे ही नहीं। 3 घंटे का समय, अभी तो 5 मिनट भी पूरे नहीं हुए। चलो, थोड़ी देर इन खिलौनों से खेल क्यों ना लूँ! और वो खेल में मग्न हो गया। खेल में मग्न हो गया। अचानक घंटी बजी, उसका ध्यान टूटा, द्वारपालों ने कहा- 3 घंटे पूरे हो गए, वापस आएं। जैसे ही द्वारपालों ने ये शब्द कहा, वो स्तब्ध रह गया। ओए! मेरा काम तो अभी बाकी है, रत्न उठाना तो अभी बाकी है। बोले- अब बाकी वाकी कुछ नहीं होगा। चलो बाहर, समय पूरा हो गया, अब कहने से कुछ नहीं होगा।

 राजा तक बात पहुँची, राजा ने कहा- कोई बात नहीं, कल तुम्हें दूसरा ऑफर। कल तुम्हें सोने के खजाने में जाने को मिलेगा, पर ध्यान रखना- समय केवल 3 घंटा। दूसरे दिन वो सोने के खजाने में प्रवेश किया, देखा- अपार स्वर्ण भंडार था। उस सोने को देखकर वो कुछ पल को भौचक्का रह गया, बोला- अब तो बहुत सारा सोना उठा कर ले जाऊँगा। चारों तरफ देखा कि तभी एक घोड़ा वहाँ बंधा दिखाई पड़ा। ये वही घोड़ा था जिस पर सवार होकर जवानी के दिनों में वो सैर किया करता था राजा के साथ। उसने कहा- बहुत दिन बाद ये घोड़ा दिखा है। 3 घंटा तो बहुत है, चलो थोड़ी देर इस घोड़े पर सवार होकर सैर क्यों न कर लूँ! वो घोड़े पर सवार हुआ, उसकी लगाम खींची और घोड़ा आसमान से बात करना शुरू कर दिया। लौटा तो 3 घंटे बीत चुके थे, द्वारपालों ने कहा- आपका समय हो गया, आप कुछ नहीं ले सकते। उसने कहा- मेरा काम तो अभी बाकी है। बोले- बाकी है या नहीं आप जानिए, लेकिन अब आपको कुछ नहीं मिलेगा। राजा तक बात पहुँची, उसने सोचा- आज ये फिर चूक गया।

राजा बड़ा उदार था, उसने कहा- चलो तीसरा, एक ऑफर और। कल तुम्हें मैं चांदी के खजाने में प्रवेश दूँगा पर ध्यान रखना- समय केवल 3 घंटा। तो अब की बार वो पूरी तरह मेंटली प्रिपेयर होकर गया था। और चांदी के खजाने की बात थी तो अपने साथ 5-7 झोले ले ले गया था क्योंकि जेब की चांदी से तो कुछ काम होना नहीं। गया, झोले में चांदी भरा और एकदम तय कर रखा था कि मुझे निकलना है, इस बार कुछ भी काम बाकी नहीं छोड़ना, पहले अपना काम करना है। झोले में चांदी भरा, बाहर निकलने को हुआ, दरवाजे के बाजू में उसे एक छल्ला दिखाई पड़ा। छल्ला, उसके नीचे लिखा था कि कृपया मुझे ना छेडें और छेडें तो सुलझ कर ही जाएं। कृपया! मुझे ना छेडें, छेडें तो सुलझ कर ही जाएं। छल्ला साधारण सा था पर निषेध में ज्यादा जिज्ञासा होती है। इस छल्ले में ऐसी क्या बात है? आखिर राजा ने क्यों लिखा कि कृपया मुझे ना छेडें, छेडें तो सुलझ करके ही जाएं? अब बोला- दरवाजा तक तो आ गए, ट्राई करते हैं। अभी तो बहुत टाइम है, 10 मिनट नहीं बीते। 3 घंटे हैं, 2 घंटे 50 मिनट बाकी हैं। उसने छल्ले में हाथ डाला, हाथ उसका उलझ गया। हाथ उलझ गया, अब क्या करे? हाथ उलझ गया, हाथ बाहर ना निकाले तो बाहर नहीं निकल सकते। अब हाथ को बाहर निकालने के लिए दूसरा हाथ लगाना होगा और दूसरा हाथ तब लगेगा जब झोला छोड़कर एक तरफ रखेंगे। तो उसने झोला एक तरफ किया और दूसरे हाथ से छल्ले को सुलझाने में उलझ गया और छल्ले को सुलझाते-सुलझाते समय पूरा हो गया। कहा- भैया! अब आप बाहर आ जाइए, समय पूर्ण हो गया। उसने कहा- हाय! आज फिर मेरा काम बाकी रह गया है। हाय! आज फिर से मेरा काम बाकी रह गया। अब तो राजा को मुँह दिखाने की भी हिम्मत नहीं कर पाया। हताश मन घर आया, पत्नी को सारा वाक्या सुनाया। पत्नी ने कहा- तीन बार राजा ने आपको अवसर दिया। कोई बात नहीं, आप फिर से जाइए, चौथी बार। इस बार मेरी ओर से राजा आपको अवसर देंगे।

राजा ने बात सुनी, कहा- ठीक! चल एक आख़िरी अवसर तेरे को दे देता हूँ लेकिन अब की बार तांबे के खजाने में प्रवेश मिलेगा। अबकी बार तांबे के खजाने में प्रवेश मिलेगा। बिल्कुल, तीन बार का अनुभव, अब तो मैं कोई कसर नहीं छोडूँगा। चौथी बार जब गया तो अपने साथ सीमेंट की बोरियाँ लेकर गया। तांबा है और तांबे के खजाने में वैसा टूट पड़ा जैसे भूखा भोजन पर टूटता है। फटा-फट बोरियाँ भरा और बोरियाँ भरकर उसे सुझा, सुतली से सिल दिया, एकदम पैक कर दिया। थक भी गया था, काफी मेहनत हुई। भारी-भारी बोरियाँ थी, इधर-उधर खिसकाने में उसकी कमर में थोड़ी सी दर्द सी हुई और अपनी कमर सीधी करने के ख्याल से वो पीछे की तरफ झुका। कमर सीधी करने के ख्याल से पीछे की तरफ थोड़ा-सा झुका कि तभी उसे सामने एक बिस्तर दिखाई पड़ा, पलंग बढ़िया और बिस्तर। क्या राजा! कितना भला आदमी! उसे पता था कि मैं थक जाऊँगा। चलो, दो पल के लिए इस पलंग पर विश्राम क्यों न ले लूँ? वो बिस्तर पर सो गया। सो गया, सो गया। उसका ध्यान तब टूटा, जब घंटी बजी और कहा- भाई साहब! समय हो गया, आप बाहर आइए। वो अपना काम नहीं कर पाया, आख़िरी तक उसका काम बाकी रह गया। कहानी बड़ी रोचक लगी आप सबको। लगी कि नहीं लगी? लगी ना? पर भैया! ये कहानी किसकी है, पता है? किसकी है? लोगों ने कहा- हमारी। बस अभी उसका भाव बताना बाकी है।

किसकी कहानी है? ये कहानी हमारी तुम्हारी सबकी है। ये मनुष्य जीवन जो तुम्हें मिला है, ये इस संसार में आकर जीव राजा के पास तुम्हें एक अच्छा ऑफर ले करके मिलाया। ये सेठ के साथ जुड़े हुए चार अवसर जीवन के चार अवसर की तरह है। सबसे पहला अवसर है- बचपन, जो रत्नों जैसा कीमती है। जो उसका मूल्य समझ कर के उसको सार्थक कर लेता है, उसका जीवन निहाल हो जाता है। लेकिन अक्सर लोग अपने बचपन को खेलकूद में बिता देते हैं। रत्न जैसे कीमती जीवन को लोग खेलकूद में बिता देते हैं। दूसरी अवस्था- यौवन, जवानी के जोश के घोड़े पर बैठ कर के ही अपना जीवन बिता देते हैं। बचपन खेल में, यौवन जोश में मनुष्य बर्बाद करता है। अपने स्वर्णिम जीवन को इसी जोश और जुनून में बर्बाद करके रख देता है। जो करणीय है, वो नहीं कर पाता। तीसरी अवस्था है- प्रौढ़ावस्था, जो चांदी जैसा होता है, लेकिन उसमें गृहस्थी के छल्ले में ऐसा हाथ डालता है कि पूरी जिंदगी बीत जाती है, सुलझ नहीं पाता। एक बार हाथ डाला तो पूरा जीवन हाथ सुलझाने में ही निकल जाता है। भैया! मैं कहता हूँ- उस छल्ले में हाथ डालो ही नहीं। जिसने डाला है, वो सब भोग रहे हैं। हमारे साथ बाबाजी थे, वो कहते थे- विवाह करने का मतलब 50 वर्ष का सश्रम कारावास। हां? हैं ना? ये अनुभव तो आप लोगों का है, मेरा नहीं। बोलो। वो गृहस्थी है, उसमें ऐसी झंझट है कि उसी में उलझ कर रह जाते हैं। काश! उसे पता होता। मैं तो आप से कहता हूँ- उस छल्ले में हाथ मत डालो और हाथ डाला है ना, तो एक ही हाथ डालो, दूसरा फ्री रखो। काश! वो जानता कि चलो इससे सुलझना मुश्किल है, तब तक एक हाथ से माल बाहर निकाल देता तो कुछ तो पा लेता। अगर एक हाथ तुम्हारा गृहस्थी में फँस गया है तो दूसरा हाथ परमार्थ में जोड़े रहो, जीवन बैलेंस बना रहेगा जीवन, संतुलित होगा। अगर तुम गृहस्थी के जंजाल में ही उलझ के ही रह जाओगे, सारी शक्ति, समय और श्रम को उसमें ही खपा दोगे तो अपने लिए कुछ नहीं कर पाओगे। अंत में तुम्हें खाली आना पड़ेगा और लगेगा- अरे! मेरा मूल काम तो अभी बाकी है और चौथी अवस्था है बुढ़ापे की, जो तांबे सा कम मूल्य वाला। जैसे gradually देखो, बचपन से बुढ़ापे तक हमारी कीमत घटती है और उसमें मनुष्य थक जाता है। बुढ़ापे में थकता है, तो बिस्तर पकड़ता है। फिर मन में कुछ इच्छा भी हो तो कर नहीं पाता। क्या करें जी, शरीर ही नहीं उठता। है ना? तो कहते हैं-

बचपन गया खिलौनों के संग, तरुणी संग तरुणाई।

अर्धमृतक सम बुढापन है, कैसे बचोगे भाई?

             बोलो- कब बचोगे? बूढ़े को अर्धमृतक के समान कहा, क्यों? आपने कभी सोचा? बूढ़ा अर्धमृतक क्यों है? इसलिए मुझसे एक बार शंका समाधान में पूछा किसी ने कि बूढ़े को अर्धमृतक क्यों कहते हैं। मैंने कहा- इसलिए कि मुर्दे को चार उठाते हैं, बुड्ढे को दो उठाते हैं, इसलिए अर्धमृतक। जिसको उठाने के लिए दो आदमी लगें, वो अर्धमृतक; चार उठा लें तो पूरा मृतक हो गया। जीवन ऐसे ही क्षण-क्षण क्षीण हो रहा है, एक दिन मामला साफ हो जाएगा। इससे पहले पहचानो- क्या करना अभी बाकी है? आत्मा के हित की बात अभी बाकी है और इस बाकी को पूरा करके जाना, नहीं तो ये बकाया तुम्हें कहीं का नहीं रहने देगा। मनुष्य जीवन मिला है, इसे सार्थक बनाइए, सफल बनाइए, सही दिशा में आगे बढ़ने का उद्यम कीजिए जिससे इस दुनिया से जाओ, तो सुकून भरी सांस छोड़ते हुए जाओ। लेकिन क्या करूँ? आख़िरी तक कब्र में पाँव अटक जाती है, तो भी लोग गोरखधंधे कोई छोड़ते नहीं। जो करने लायक काम है, उसे ना करके दुनियादारी में उलझ जाते हैं। एक सेठ था, मरणासन्न था और बहुत देर से मुँह से ब ब ब … कुछ बोल रहा था। आज ब की बात है। ब ब ब …., तो बच्चों ने सोचा कोई बक्सा-वक्सा की बात ना हो। कोई रखा होगा! तुम लोगों को तो बक्सा ही दिखता है। तो डॉक्टर से बोला कि डॉक्टर साहब! कुछ उपाय बताइए, कुछ ये बोल सके। बोले- एक इंजेक्शन लगेगा 50 हज़ार रुपए का, तो एक-आध सेंटेंस(sentence) कुछ बोल सकता है। बोले- एक बक्सा मिल जाए 50 हज़ार में तो मामला क्या है, सस्ता ही है। 50 हज़ार रुपए लगवाए, इंजेक्शन लगा। इंजेक्शन से वो चेतन हुए और जैसे ही चेतन हुए, मिले, अब क्या बताऊँ? वो बकरा पूरा झाड़ू खाए जा रहा है। मैं क्या बोलूँ? 50 हज़ार गए झाड़ू पर। ध्यान है? कब्र में पाँव लटक गए, फिर भी आपमें आत्मा की सुध नहीं। भाइयों! कैसे काम चलेगा, विचार कीजिए। क्या बाकी है, बस बाकी की पूर्ति करें।

 

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