कैसे बचें गलतियों की पुनरावृति से?

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कैसे बचें गलतियों की पुनरावृति से?

यदि हम गिरने वाले बच्चों को हतोत्साहित करें तो क्या बच्चा खड़ा हो पायेगा? नहीं होगा। और ऐसा आप करते हैंं? नहीं करते। मैं आज आपसे धर्म क्षेत्र में इतनी ही बात करूंगा। आज बात ग की हैं:-

 

  • गिरना
  • गिराना,
  • चढ़ना-चढ़ाना और
  • संभलना-संभालना।

 

बस हमें इन्हीं चार बातों पर ध्यान देना हैं।

गिरना सहज हैं, कोई भी कभी भी गिर सकता हैं। सच्चाई यही हैं कि जो कोई भी इस दुनिया में उठा हैं वो गिर कर ही उठा हैं, गिर कर ही उठा हैं। अगर कोई गिर जाए, उसकी हंसी मत उड़ाओ, गिरना सहज प्रक्रिया हैं, गिरेगा यह मानवीय दुर्बलता हैं। ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो गलती ना करें। मनुष्य के अंदर गलतियाँ होती हैं, वह गलतियों का पुंज हैं, गलतियाँ होगी और अपनी गलतियों के कारण वह अपने मार्ग से स्खलित हो सकता हैं, वह गिर सकता हैं पर कोई गिरे उससे कोई बहुत फर्क नहीं पड़ता, फर्क तो तब पड़ता हैं जब वह गिर कर के उठे नहीं। कोई कितना भी गिरे, अगर गिर करके संभल जाए तो जीवन बहुत आगे बढ़ सकता हैं। अपने मन से पूछो कि तुम्हारे मन की स्थिति क्या हैं? तुम कभी गिरे हो कि नहीं? गिरोगे, गिर जाओ, कोई दिक्कत नहीं। संत कहते हैंं- ‘धरती पर गिर जाने में कोई नुकसान नहीं हैं लेकिन लोगों की नजरों से गिर जाने वाले को सिवाय नुकसान के और कुछ नहीं मिलता।’ गिरो, किसी की नजर से मत गिरो और औरों की नजरों की बात जाने दो, खुद की नजर से कभी मत गिरो।

कहाँ हैंं हम? हम गिरे हैंं और कोई गिरता दिख रहा हैं तो हमें क्या करना हैंं? हमारी पहली कोशिश हो कि हम गिरे नहीं, संभल-संभल कर चलें और यदि संभल-संभल कर चलने के उपरांत भी स्खलन हो जाए, गिर जाएं तो वापस उठ कर खड़े होने का संकल्प लें। जिन गलतियों के कारण हम स्खलित हुए, उन गलतियों की बार-बार पुनरावृत्ति ना हो। गलती करना स्वभाव हैं, गलती को दोहराना बहुत बड़ा दोष। पुनरावृत्ति ना करें, अगर कोई गलती हो जाए तो उसे पुनः-पुनः ना करें। गिरें तो उठकर संभले और अपने आप खड़ा होने का प्रयास करें। यह हमारा धर्म कहता हैं, यह हमारा कर्तव्य कहता हैं और कोई दूसरा गिरे तो उसे उठने के लिए उत्प्रेरित करें, सहारा दे, संबल दे, खड़ा करें। यदि ऐसा हम करना शुरू कर दें तो हमारा जीवन धन्य हो जाए। अपने मन से पूछो- जब कभी गिरते हो तो तुम्हारी स्थिति क्या बनती हैं, गिरते हो तो तुम्हारी स्थिति क्या बनती हैं? कई स्थितियों में व्यक्ति गिरता हैं। पतन सर्वत्र हो सकता हैं, कोई व्यक्ति अपने चारित्रिक क्षेत्र में पतित होता हैं, कोई व्यक्ति आर्थिक रुप से नीचे गिरता हैं, कोई व्यक्ति सामाजिक प्रतिष्ठा में नीचे गिरता हैं और कोई व्यक्ति अपने दुनिया के अन्य किसी क्षेत्र में नीचे गिरता हैं। गिर गए, कोई दिक्कत नहीं। डाउनफॉल होने के बाद केवल ऑब्सट्रेक्शन ही हो सकता हैं और कुछ नहीं। नीचे आने के बाद यदि कोई संभावना बचती हैं तो केवल ऊपर चढ़ने की बचती हैं और कुछ नहीं क्योंकि नीचे तो हम आ ही चुके हैं। लेकिन यह केवल वह घटित कर सकते हैंं, जिन्हे इस बात की समझ होती हैं कि गिर करके ही चढ़ा जाता हैं। बार-बार फिसलने के बाद भी ऊपर चढ़ा जाता हैं। जिनने भी ऊंचाइयों को छुआ हैं वह एक साथ नहीं छूते, सौ-सौ बार उनको गिरना पड़ता हैं। लेकिन गिरने के उपरांत भी बार-बार वह कोशिश करते हैंं, कोशिशें जारी रहती हैं तो चींटी की तरह वो दीवारों पर चढ़ने में समर्थ हो जाते हैंं। जो हिमालय की चढ़ाई चढ़ते हैंं उन्हें न जाने कितनी बार गिरने की नौबत आती हैं लेकिन गिरने के बाद भी वह संभल-संभल कर चलते हैंं तो एक दिन शिखर पर चढ़ जाते हैंं।

संत कहते हैंं- ‘तुम गिरो वो बुरी बात नहीं हैं, तुम गिरो इसमें कोई चिंता की बात नहीं हैं, चिंता तो केवल इस बात की हैं कि गिरने के बाद उठो नहीं, गिरने के बाद संभलो नहीं।

उठो, जागो, संभलो और अपने जीवन को ऊँचा उठाने की कोशिश करो तब तुम अपने जीवन में कोई उपलब्धि अर्जित कर सकते हो। एक सच्चे धर्मात्मा की यही पहचान होती हैं कि वो अपने कोशिश कही भी गिरने का प्रयास नहीं करता लेकिन उसके उपरांत भी यदि गिर जाये तो संभलने में कोई देर नहीं लगाता। तो पहली बात गिरने की हैं- गिरो और संभलो। दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैंं, जो गिरे हैं लेकिन संभले हैंं तो मुड़कर नहीं देखे। अंजन चोर को देखो, कितना गिर गया था समाज की नजरों से गिर गया, मां-बाप की नजरों से गिर गया, दुनिया की नजरों से गिर गया। वो पतित था, था ना? अंजन चोर से गिरा हुआ और कौन सा इंसान मिलेगा लेकिन उस अंजन चोर का हृदय परिवर्तित हुआ, मन में शुभ संकल्प जगा, उठा तो शिखर पर पहुंच गया। चारुदत्त जो कभी दारु दत्त बन गया था। कितना गिरा था लेकिन गिरा और उसके बाद संभला तो आज शिखर पर पहुंच गया। कभी भी गिरो पर हारो मत, घबराओ मत, ठीक हैं गिर गए, अब संभलना हैं, संभल-संभल कर चलना हैं। एक-एक पांव मुझे सावधानी से रखना हैं और वैसे ही सावधानी से यदि हम बढ़ते जाएंगे तो वापस अपनी ऊंचाई को छू लेंगे। बन्धुओ! गलती के कारण मनुष्य गिरता हैं, लेकिन गलती के साथ ग- गिरना हैं और ग- गलती हैं। गलती के संदर्भ में देखो-

गलती करना

गलती दोहराना

गलती से सीख लेना

गलती को सुधारना

‘गलती करना सहजवृत्ति हैं, गलती को दोहराना अपराध हैं।’

‘गलती से सीख लेना समझदारी हैं और गलती को सुधारना जीवन की उपलब्धि हैं।’

क्या करते हो, तुम कहां हो? तुम कहां हो? गलती करने वालों में, गलती दोहराने वालों में, गलती से सीख लेने वालों में, गलती को सुधारने वालों में?

स्वयं के प्रति तो मैं ये चार बातें कहता हूँ, तुम्हारा स्थान कहां हैं, महाराज अभी तो पहले और दूसरे नंबर वाले में- गलती करते हैंं, गलती दोहराते हैंं तो जिंदगी गंदगी कर देते हैंं। जो बार-बार गलती करेंगे, गलती को दोहराएंगे, उनका जीवन निश्चित हैं गंदा होगा। जीवन को पवित्र बनाना चाहते हो गलती करो मत, और गलती हो भी जाए तो गलती को दोहराओ मत। गलती को सुधारने की कोशिश करो और पुरानी गलतियों से सीख लेने की कला सीखो। कई लोग होते हैं-

जो गलती करते हैंं और ग्लानि करते हैंं, सीख नहीं लेते और बार-बार, बार-बार कहते रहते हैंं यह गलती हो गई, अब क्या करुँ, अब क्या करुँ और अपनी गलती से हताश भी हो जाते हैं। समझदार व्यक्ति वह होता हैं जो अगर कोई गलती हो जाए तो उससे बड़ी सीख लेते हैंं। नहीं, अब मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा। मन ही मन संकल्प लो कि एक बार ऐसी गलती हुई, मैं नहीं करूंगा।

एक छोटा बच्चा, जब तक उसे बोध नहीं होता मोमबत्ती की तरफ लपकता हैं, तुम्हारी गैस की तरफ लपकता हैं और मना करने के बाद भी बार-बार लपकता हैं, लेकिन जैसे ही एक बार लौ में उसकी उंगली झुलसती हैं उसे समझ में आ जाता हैं, दोबारा उसे कहो उसको टच करो, टच करो, टच करो, टच करता हैं क्या, करता हैं? नहीं करता। क्यों? उसने अपनी गलती से सीख ले ली, अब दुबारा उसकी पुनरावृत्ति वह नहीं करेगा। बच्चा तो संभल जाता हैं, बड़े कब संभलेंगे, यह आश्चर्य की बात हैं। बड़ी सार्थक पंक्तियां हैं दुष्यंत कुमार की-

हाथों में अंगार लिए यह मैं पूछता रहा,

कोई मुझे अंगारों की तासीर बता दे!

क्या कहेंगे उनको हम, हाथ में अंगार हैं और अंगार की तासीर पूछ रहे। सीख लो, बार-बार एक ही गलती को दोहराओगे जीवन कभी नहीं सुधरेगा। गलती को दोहराना बंद करो, पुरानी गलतियों की समीक्षा करो, सीख लो और अपने जीवन के लिए एक नसीहत लो, आगे बढ़ो, ऊंचे उठो। यह तुम्हारे भीतर समझ होनी चाहिए, यदि चूक वश मुझसे कोई गलती हो गई तो अब कान पकड़ता हूँ, दोबारा कभी ऐसा नहीं करूंगा।

महाराज! गलती से सीख कैसे ले, गलती को सुधारे कैसे? बात मैं आपको उसकी करना चाहता हूँ। गलती से सीख लेना चाहते हो और गलती को सुधारना चाहते हो तो एक प्रक्रिया आपको बताऊंगा।

बन्धुओ! एक बात ध्यान रखना, मेरे प्रवचन को केवल प्रवचन मान कर के मत सुनना, अगर प्रवचन मान करके सुनोगे तो आपमें कोई बदलाव घटित नहीं होगा, बदलाव तब घटित होगा जब प्रवचन में बताई गई बातों को आप अपने लिए एक मार्गदर्शन मानोगे और उसे अपने जीवन में आत्मसात करोगे। मैं आपको आपके जीवन के प्रबंध का विज्ञान बताना चाहता हूँ जिससे आप अपने जीवन को व्यवस्थित कर सके, अपना लाइफ मैनेजमेंट ठीक ढंग से कर सकें, जीवन में रूपांतरण घटित कर सके। गलतियाँ होना बड़ी बात नहीं हैं, गलतियों को दोहराना बुरी बात हैं। हम कैसे बचें? गलतियों को दोहराने के लिए तो गलतियों से सीख लेना शुरू करे और गलतियों को सुधारना शुरू करें। सीख कैसे लें और सुधारे कैसे? चाहते हैं आप अपनी गलतियों से सीख लेना? चाहते हैंं, कौन-कौन चाहते हैंं, थोड़ा बताओ, सब चाहते हैंं। सुधारना चाहते हैंं, चाहते हैंं तो जो मैं कहूं वह करना शुरू कर दो। महाराज! आप कुछ मत बताओ आप तो आशीर्वाद दे दो हमारी गलतियाँ सुधर जाए। नहीं! गलती से सीख ले, उसका तरीका हैं। सुबह से आपको प्रक्रिया बताता हूँ। यह प्रक्रियाएं मेरे रोज के प्रवचनों में आएगी और आप अलग-अलग तरीके से इनको सुने और फॉलो करना शुरू करें। आप देखियेगा, आपके जीवन में कितना बदलाव आता हैं।

सुबह उठे, सबसे पहले तो प्रभु से प्रार्थना करें कि प्रभु आपकी कृपा से मुझे जीवन का एक नया दिन मिला हैं, मुझे ऐसी शक्ति दो सामर्थ्य दो कि मैं आज के दिन को अच्छा दिन बना सकूं। मुझसे कोई गलती ना हो, मुझसे कोई अपराध ना हो, मुझसे कोई पाप ना हो, ऐसी शक्ति और सामर्थ्य मुझे दे। यह प्रार्थना सुबह उठते ही करो। हृदय की प्रार्थना होगी, उसके संस्कार तुम्हारे सबकॉन्शियस में जमेंगे तो फिर जब कभी भी तुम्हारे पांव गलत दिशा की ओर बढ़ेंगे, मन ब्रेक लगायेगा- संभल जा कहां जा रहा हैं? यह तो गलत डायरेक्शन, उधर कहां जा रहा हैं? हमको गलती नहीं करना। और शाम को एक प्रयोग करें सोने से पहले या तो भगवान के चरणों में या किसी एकांत स्थल पर बैठें और सुबह से शाम तक जितने भी विचार और व्यवहार हुए, अपनी क्रियाएं हुई हैं, उनको रिकॉल करें, रिकॉल करने के बाद देखें कि मैंने कहां-कहां गलती की और जो-जो गलतियाँ की उन गलतियों के बारे में कहें। अरे! यह मेरी गलती हुई, अब मैं इसकी पुनरावृत्ति नहीं करूंगा। अब जब कभी भी ऐसी सिचुएशन होगी मैं ध्यान दूंगा, उस समय सिचुएशन उल्टी हुई मैं अपने इमोशन को कंट्रोल नहीं कर पाया, सामने वाले की पूरी गलती ना होने पर भी मैंने उसे डांट दिया। उसकी बात को समझे बिना मैंने सीधे एकदम से बात कर दी, मुझे नहीं करना चाहिए था, उनका मन बड़ा आहत हो गया, अब मैं कभी ऐसा नहीं करूंगा। मेरा बेटा ठीक तरीके से काम करता हैं पर मैंने उसे प्रोत्साहित नहीं किया बल्कि हतोत्साहित कर दिया। वह आया था मेरे पास बहुत अच्छा सोच कर के कि मुझे मेरे इस कृत्य का अच्छा प्रोत्साहन मिलेगा पर मैंने तो उल्टा उन्हें उलाहना दे दिया, उसका मन बहुत आहत हुआ होगा। आज के बाद मैं ऐसा नहीं करूंगा। बहु ने ठीक काम किया था, मैंने उसकी बात को समझे बिना उससे बहुत अंट-शंट बोल दिया, अब मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा। आप सुबह से शाम तक की जो भी बातें हैंं जहां-जहां आप ट्रैक से उतरे हैंं और आपको लगा हैं कि मैंने यहां गलती की, बस उन सबकी निंदा करो, गर्हा करो यह आप का भाव प्रतिक्रमण हैं। मैं इस गलती को छोड़ता हूं। हे प्रभु! आज से मैं उस गलती का त्याग करता हूं और उसकी पुनरावृत्ति नहीं करूं, ऐसा संकल्प लेता हूं। अब कभी ऐसी परिस्थिति आएगी, मैं उसको पुनः नहीं दोहराऊँगा, मैं अपनी गलती को अब सुधारना चाहता हूं और अब कभी ऐसी स्थिति आएगी तो इसका ध्यान रखूंगा। इससे आप गलती से सीख भी लेंगे और गलती को सुधारने की कला भी लेंगे।

आप ऐसा कर सकते हैं, बोलिये?

आज से ही करना शुरू कीजिए, आप कुछ दिन में पाएंगे कि आपसे गलतियाँ कम होगी, कदाचित गलतियां कम ना भी हो तो नई गलतियाँ होगी, पुरानी गलतियाँ नहीं होगी। मनुष्य में दोष और दुर्बलताएं भरी हैं, गलतियाँ होगी, अच्छे-अच्छे लोगो से गलतियां होती हैं, हम साधु भी कभी-कभी गलतियाँ कर बैठते हैंं। गलतियां होना स्वभाव हैं और गलतियां दोहराना अपराध, इस बात को ध्यान रखें हमे दोहराना नहीं हैं, उसकी पुनरावृत्ति नहीं करना। एक ही एक गलती को बार-बार रिपीट करना ठीक बात नहीं हैं और यदि परिस्थितिवश कोई गलती हो जाए, उससे सीख लो और उसका सुधार करो। छोटी-मोटी गलतियों की निंदा-गर्हा करके आप उसका संशोधन करो और बड़ी गलती हो जाए तो गुरुजनों से प्रायश्चित लेकर उसका सुधार करो, गलतियाँ सुधर जाएगी। फिर जीवन में दोबारा कभी गिर नहीं पाओगे।

सीख लेना चाहिए, देखिए क्या अंतर होता हैं।

एक युवक ने व्यापार शुरू किया, कुछ गलत डिसीजन ले लिया, गलत डिसीजन में नुकसान हो गया। नुकसान होने के बाद घर के कुछ लोगों ने बोला, तुमने कैसा काम किया, गलती कर दी, इस गलती से देखो कितना बड़ा नुकसान हुआ। उस बच्चे ने जो बात कही उसके पिताजी ने मुझे आकर के बोला कि महाराज आज बेटे ने हमें एक बड़ी सीख दे दी। नुकसान हुआ और नुकसान के बाद उसने जो सीख दी, हमें उससे बड़ा आनंद हैं। हमने पूछा ऐसी क्या बात हैं, जो बेटे ने तुम्हें सीख दे दी। जब पिता ने और घर के लोगों ने उससे कहा कि तुमने नुकसान दे दिया तो बेटे ने केवल इतना ही कहा- अगर छोटे से नुकसान से बड़ी सीख मिल जाती हैं तो उस नुकसान को मैं नुकसान नहीं समझता। पिताजी मुझे सीख मिली हैं, सीखना हैं, अगर में सीखने के लिए कही ट्रेनिंग भी लेता तो खर्च तो करना ही पड़ता। यह नुकसान नहीं, नसीहत हैं।

सीख लीजिए, अगर गलतियों से सीख लोगे तो गलतियां सुधार सकोगे और जीवन को आगे बढ़ा सकोगे और गलतियों से सीख नहीं लोगे, जीवन में हार जाओगे और जीवन गंदा हो जाएगा। इसलिए गलती करना नहीं, गलती दोहराना नहीं, दोहरा दो और गलतियाँ अगर हो जाए उससे सीख लेना और गलतियों को सुधारने की कोशिश करना तब तुम अपने आप को गिरने से बचा सकते हो। तो गिरना, पहली बात।

कोई दूसरा गिरे उसे संभालो, उसकी हंसी मत उड़ाओ। कोई गिरता दिख रहा हैं, अपनी परिस्थितियों वश गिर रहा हैं, अपने दोषों और दुर्बलताओं के कारण गिर रहा हैं तो उसकी हंसी मत उड़ाना। हमारा दायित्व हैं कि तुम उसे संभालो, उसे ऊपर उठाओ। गिरते को संभालना हमारा धर्म हैं लेकिन आजकल लोग गिरते को संभालने वाले कहां मिलते हैंं बल्कि चढ़ते को गिराने वाले लोग कदम-कदम पर मिल जाते हैंं।

एक ने अपने मित्र से पूछा कि अगर मैं हिमालय पर चढ़ जाऊं तो तुम मुझे क्या दोगे? हिमालय पर चढ़ जाऊं तो तुम मुझे क्या दोगे? उसने कहा धक्का। अब ऐसे लोगों को क्या कहूं जो आगे बढ़ाना नहीं जानते, नीचे गिराना जानते हैंं ध्यान रखना वो दुनिया में भले ही कही हो पर परमात्मा की नजर में वो नीचे गिरे हुए लोग हैंं।

जिस व्यक्ति का जीवन ऊंचा होता हैं, जिसकी सोच उन्नत होती हैं, वो व्यक्ति खुद उठा होता हैं और औरों को ऊंचा उठाने का हमेशा उपक्रम करता हैं। उठो और उठाने की कोशिश करो, अपने आप को गिराओ मत, जीवन को आगे बढ़ाने का प्रयास करो तब तुम्हारे जीवन में कुछ उपलब्धि होगी। कभी जीवन में किसी को गिराना मत, गिराने की कोशिश मत करना। बन सके तो उठाना और ना उठा सको तो गिराने की कोशिश मत करना, उसे संभालने की कोशिश करना और किसी को तभी संभाला जा सकता हैं जब तुम्हारे हृदय में उसके प्रति प्यार हो। अगर तुम किसी को ऊपर उठाना चाहते हो तो तुम्हें अपना स्तर पहले ऊंचा उठाना होगा, तुम नीचे रह करके किसी को ऊंचा नहीं उठा सकते, तुम ऊंचे होओगे तभी किसी को ऊपर उठा पाओगे। तो स्वयं के जीवन को ऊंचा उठाओ तब तुम किसी को ऊंचा उठाने लायक होओगे। आजकल उल्टा हो गया हैं, जो खुद गिरे हुए हैं वो औरों को ऊंचा उठाने का उद्देश्य देते हैं।

एक बार ऐसा हुआ, चींटी बहुत तेजी से जा रही थी उसकी सहेली ने पूछा कि बहन इतनी तेजी से कहां जा रही हो? चींटी ने कहा- खून देने। चींटी बहुत तेजी से जा रही थी, उसकी सहेली ने पूछा कि बहन कहां जा रही हो, इतनी तेजी से कहां जा रही हैं उसने कहा खून देने। बोली क्यों, किसे? पता नहीं हैं, एक्सीडेंट हुआ हैं, हाथी घायल हैं, अब हाथी को खून देने के लिए चींटी जाएगी तो क्या होगा? जिसके पास एक कतरा खून नहीं वो हाथी को क्या खून देगा। जो खुद आकंठ पाप में मग्न हैं वह किसी और को क्या उठाएगा। अपने जीवन में धर्म की ज्योत जगाओ, खुद ऊंचा उठो और औरों को ऊंचा उठाने का संकल्प लो। कभी किसी को मुझे गिराना नहीं हैं, जितना बने ऊंचा उठाना हैं। आजकल लोगों में एक प्रवृति सी बन गई हैं एक-दूसरे को नीचे गिराने की। राजनीति में यह सब तो होता हैं लेकिन अब यह समाजनीति में भी घुस गई और समाज की बात तो जाने दीजिए, अब तो घर-परिवार में भी यह आ गई। यह बातें कतई उचित नहीं हैं, इसे सुधारना चाहिए। पहले लोग संबल देते थे और अब धक्का देते हैंं। यह बड़ी विचित्रता हैं, अपने को इस बात पर ध्यान रखना चाहिए-

बहुत सरल हैं कभी किसी भी बेकसूर पर दोष लगाना

नहीं कठिन हैं दुर्बल को भी धोखा देना और सताना

निर्बल को नहीं और सता कर उसे उठाओ इस जीवन में

तन की सुंदरता को टच कर मन श्रृंगारो इस जीवन में।

पंक्ति को ध्यान रखें, किसी को नीचे गिराने में तुम्हारी कोई उपलब्धि नहीं, उपलब्धि तो तब हैं जब तुम किसी को ऊंचा उठाओ, ऊंचा उठाओ।

हरिवंश राय बच्चन की यह पंक्तियां बहुत सार्थक हैं-

मैं इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो

खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो

पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो।

आजकल लोग गलती होने पर पुकारते और पुचकारते कम हैं, दुत्कारते ज्यादा हैं दुलारते नहीं। यह हमारी कमजोरी हैं।

मैं तुमसे एक बात करता हूं- तुम्हारे घर का कोई सदस्य अगर कोई गलती करता हैं तो तुम उसके प्रति क्या व्यवहार करते हो, उस गलती को सर्वत्र प्रकाशित करते हो, गांव-गांव में फैलाते हो, क्या करते हो, whatsapp पर चलाते हो, Facebook में देते हो, क्या करते हो, क्यों? तो उसको वहीं के वहीं छुपाते क्यों हो क्योंकि गलती का यदि दुष्प्रचार होगा, तो परिवार की साख खराब होगी। तो आप उस गलती को वहां छुपाते हो, फिर गलती के सुधार कि  प्रक्रिया को अपनाते हो। ठीक हैं गलती कर दी, बैठाओ, समझाओ, उसे रास्ता दिखाओ, गलती सुधारो, अगर नहीं सुधारते तो उसके प्रति विशेष ध्यान रखो और आप उस मामले को ठीक कर दो। यह एक प्रक्रिया हैं और ऐसा करने में व्यक्ति के सुधरने की संभावना भी रहती हैं। अगर कोई गलती कर ले और उसे सुधारे नही, उसे हम सार्वजनिक रूप से अपमानित कर दे, तो क्या सुधरेगा?

मैं एक ऐसी माँ को जानता हूँ, जिसका बेटा 12वीं क्लास में था, क्रिकेट के सट्टे का आदी हो गया, पिता नहीं थे। क्रिकेट में सट्टा किया और 7-8 लाख रुपया उसने बर्बाद कर दिया। माँ को मालूम पड़ा, माँ को बड़ा दुःख हुआ कि तूने ऐसा कैसे कर दिया। बेटे में एक विशेषता थी- गलती किया पर सच बोलता था। उसने माँ को सच बात बता दी, माँ ने बहुत समझदारी से काम किया और तुरंत बेटे को बुलाया और उन सब लोगों को बुलाया जो लेनदार थे। लेनदारों को बुलाकर के माँ ने अपने माध्यम से उनका पैसा पूरा चुकता किया और बेटे से कहा, बेटा देख तूने अपने कैरियर पर बहुत बड़ा दाग लगाया, यह तो गनीमत हैं कि केवल यह मुझे मालूम पड़ा, यह बात यदि परिवार के अन्य जनों को मालूम पड़ जाए तो कल तू कुछ भी नहीं कर पाएगा। तेरा विश्वास टूट जाएगा। तू मेरा बेटा हैं, मैं जानती हूँ कि तुझसे गलती हुई हैं और यह गलती अब दोबारा मत दोहराना। माँ के इस आत्मीयतापूर्ण व्यवहार से बेटे की आंखों में आंसू आ गए और उसने तुरंत माँ से कहा- माँ गलती एक बार हो गई, मैंने गलती से सीख ले ली। मैं दोस्तों की संगति में आकर ऐसा कर लिया अब आपको जबान देता हूँ आइंदा मैं कभी ऐसा नहीं करूंगा। माँ के उस आत्मीयतापूर्ण व्यवहार की छाप यह पड़ी की आज वो बेटा एक सफल व्यवसायी बन गया हैं और अपने जीवन को आगे बढ़ा रहा हैं। अब उसको इस गलती से दूर-दूर तक संबंध नहीं।

आप लोग क्या करते हैंं अगर कोई गलती करता हैं तो आप उसके साथ इतनी उदारता से पेश आते हो? दो तरह की गड़बड़ियां में देखता हूं, यह भी गलती और गड़बड़ी, दो तरह की गड़बड़ी। कुछ लोग होते हैंं जो अपनी संतान के प्रति इतने उदार हो जाते हैंं कि उसकी सारी गलतियों को अनदेखा करते हैंं, उसका दुष्परिणाम यह होता हैं कि वह बच्चा बर्बाद हो जाता हैं। और कुछ लोग ऐसे होते हैंं कि उनकी थोड़ी सी गलती होती हैं उसको घबराते हैंं और ढिंढोरा पीट देते हैंं। उसका दुष्परिणाम यह होता हैं कि बच्चा ढीठ बन जाता हैं, निर्लज्ज हो जाता हैं। दोनों जीवन की बर्बादी का कारण हैं। हमारा मार्ग क्या हैं, गलतियां हो तो उसका पोषण ना करे, संशोधन करे। पर उसको ढिंढोरा ना पीटें, वही दबाये, यह हमारी समझ होनी चाहिए। तो कोई गलती करें। चार बातें मैंने गलती के संदर्भ में कही- गलती करना, गलती दोहराना, गलती से सीख लेना, गलती सुधारना।

अब दूसरे के द्वारा कोई हो। हमारी गलती की बात तो यह हुई औरों की गलती की बात, गलती देखना, गलती को प्रचारित करना। किसी की गलती देखने की आदत बहुत गलत आदत हैं। कुछ लोग ऐसे ही हैंं जो बाहर केवल गलती देखते हैंं, गलती देखते हैंं, गलती देखते हैंं, गलती देखते हैंं। एक ही काम गलती देखने का, नहीं! अच्छाई देखें। गलती देखकर आप क्या पाएंगे। देखिये कोई किताब छपती हैं, उसकी कंपोजिंग होती हैं, तो उसकी प्रूफरीडिंग होती हैं, होती हैं। किसी भी पुस्तक को छपने से पहले, सबसे पहले अगर पढ़ने वाला होता हैं तो प्रूफ रीडर होता हैं। लेकिन उस प्रूफ रीडर के पल्ले एक शब्द भी नहीं पड़ता, पूरी पुस्तक पढ़ लेता हैं, एक-एक अक्षर-अक्षर पढ़ लेता हैं लेकिन उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ता। क्यों? वो किताब नहीं पढता, गलतियाँ ढूंढता हैं। गलतियाँ ढूंढते रहने के कारण उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ता, मैं सिर्फ आपसे केवल इतना कहना चाहता हूँ जिंदगी कि पुस्तक के या तो आप लेखक बनो या पाठक, प्रूफ रीडर बनने की कोशिश कभी मत करो। गलतियाँ देखो मत, गलतियाँ ढूंढो मत, गलतियाँ निकालो मत, यह गलत काम हैं। इनसे अपने आप को बचाइए, गलती देखने की प्रवृति से अपने आप को दूर रखना चाहिए कुछ लोगों की टेन्डेन्सी ऐसी होती हैं, छिद्रान्वेषी प्रवृत्ति होती हैं, बात-बात में व्यक्तियों की कमियां खोजना शुरू करते हैंं, सामने वाले ने कहा- गलती की और हम उसे किस तरीके से प्रचारित करें। ये कतई उचित बात नहीं हैं।

एक नेक इंसान हमेशा एक ही बात कहता हैं-

दोष वादेः च मोनं

किसी की बुराई का मुझे प्रचार नहीं करना, किसी की गलती का मुझे ढिंढोरा नहीं करना। हमारा काम यह नहीं कि हम सामने वाले की गलती निकाले। हमारा काम यह हैं कि हम उसकी गलती को सुधारने में सहायक बने। अगर आपके अंदर यह दृष्टि होगी तो बुरे से बुरे व्यक्ति को सुधारने में आप समर्थ बन सकेंगे। गलती को सुधारने का संकल्प अपने मन में होना चाहिए, गलतियां देखने की प्रवृत्ति अपने मन में कभी नहीं लाना चाहिए लेकिन मनुष्य की यही एक कमी हैं कि हर चीज में कमी निकालता हैं, कमी निकालता हैं, कमी निकालता हैं। यहां क्या कमी रह गई, क्या कमी रह गई?

एक चित्रकार ने एक चित्र बनाया और उस चित्र को बनाने के बाद चौराहे पर लगाया। बड़ा प्रसिद्ध चित्रकार था, चित्र बहुत सुन्दर और सजीव था। उसने चित्र बनाने के बाद उसके नीचे एक नोट लिखा की इस चित्र में कोई कमी रह गई हो तो बताएं? इस चित्र के निर्माण में कोई गलती रह गई हो तो बताएं। फिर क्या था, जो निकला, कोई ना कोई गलती, कोई ना कोई कमी निकाल दिया। दूसरे दिन जब वह चित्र के सामने देखा, तो वह चित्र धब्बों में बदल गया, धब्बे ही धब्बे, धब्बे ही धब्बे। चित्रकार को बड़ा अटपटा लगा कि ये कैसे लोग, पूरे चित्र में केवल धब्बे-धब्बे-धब्बे-धब्बे-धब्बे से फट गया यह चित्र। अब क्या करे? कोई उपाय शेष नहीं रहा। चित्रकार ने कुछ दिन बाद दूसरा चित्र बनाया और चित्र बनाने के बाद वापस उसी स्थान पर टांगा और टांगने के बाद नीचे लिखा हैं इस चित्र में एक कमी रह गई हैं, यदि कोई सुधार सके तो सुधार दें। इस चित्र में एक कमी रह गई हैं, कोई सुधार सके तो सुधार दे। हजारों लोग आए-गए सब ने चित्र को देखा, लेकिन कोई सुधारने के लिए आगे नहीं आया, एक भी नहीं आया। दूसरे दिन देखा तो चित्र यथावत था। यह तुम्हारी समाज का चित्र हैं, यह तुम्हारी समाज का चित्र हैं, तुम्हारी समाज का चरित्र हैं। गलतियाँ दिखाने वाले लोग हजारों मिल जाएंगे, उंगली दिखाने वाले लोग ढेर मिलेंगे, उंगली पकड़ने वाले लोग बहुत कम मिलते हैं, जो तुम्हें सहारा दे सकें। सुधारने वाले लोग कम मिलते हैंं। हमारा स्थान गलती निकालने वालों में नहीं हो, गलती पकड़ने वालों में ना हो, गलती दिखाने वालों में ना हो, गलती को बताने वालों में ना हो। हमारा स्थान गलती को सुधारने वाले में हो तो हमारा जीवन धन्य हो जाए। तो हम गिरे नहीं, गिराए नहीं, खुद संभले और औरों को संभाले। हृदय में उदारता हो तो गिरे से गिरे व्यक्ति को भी संभाला जा सकता हैं। प्रेम-वात्सल्य तभी बढ़ता हैं। मैं आप सबसे कहता हूँ- ‘कभी किसी को गिरी हुई दृष्टि से मत देखो।’ जिसे हम आज पतित समझते हैंं, कल वह हमसे आगे निकल सकता हैं। कोई व्यक्ति हीन नहीं।

आचार्य गुरुदेव कहते हैंं- ‘पाप से घृणा करो पापी से नहीं।

वो मूक-माटी में कहते हैंं-

सीप का नहीं मोती का, दीप का नहीं ज्योति का सम्मान करो।

हर पापी अपने जीवन को बदल करके परमात्मा बन सकता हैं, परमेश्वर बन सकता हैं।

महाराष्ट्र के फलटण शहर की एक घटना हैं, आज से लगभग ९० वर्ष पुरानी घटना हैं, एक व्रती श्रावक का परिवार था, उस परिवार में एक व्यक्ति, एक युवक पथभ्रष्ट हो गया और वह एक वेश्या के यहाँ जाकर रहने लगा। घर से उसका संबंध विच्छेद हो गया। वर्षों बीत गए, एक लंबा अंतराल बीत गया, उससे कोई लेना-देना नहीं रहा। लेकिन एक अरसा बीतने के बाद घर में एक विवाह का मांगलिक प्रसंग आया। विवाह के उस मांगलिक प्रसंग में सारे अतिथियों, मेहमानों, रिश्तेदारों, नातेदारों को आमंत्रित किया गया और घर के जो प्रमुख दादाजी थे, एक दिन उन्होंने सबको बुला करके पूछा- क्यों, सभी मेहमानों को बुला लिया? बुला लिया। उस बेटे के नाम को लेते हुए पूछा जो उनका सबसे छोटा बेटा था, उसे बुलाया? बोले दादाजी- आप क्या बोल रहे हैंं, उसे बुलाकर हम क्या मुँह दिखाएंगे? वो इस लायक हैं कहाँ, जो हम उसे बुलायेंगे। बेटे खून के रिश्ते ऐसे भुलाए नहीं जाते। मैं कहता हूँ – उसे बुलाओ, उसे बुलाना हैं। दादाजी का परिवार पर प्रभाव इतना था कि कोई उनकी बात को इनकार नहीं कर सका और मन मार कर एक सदस्य को उसे बुलाने के लिए भेज दिया गया। जब वह सदस्य वहाँ गया, बुलाने के लिए, दूर से ही कहा कि घर में शादी हैं, दादाजी ने बुलाया हैंं, आना हो तो आ जाना। तिरस्कार का उत्तर भी तिरस्कार से मिला। उसने कहा- कह दो, फुर्सत नहीं हैं। ठीक विवाह के दिन सारे मेहमान आए पर दादाजी की आंखें केवल उस युवक को खोजती रही, अपने बेटे को खोजती रही। जब वो कहीं दिखाई नहीं पड़ा, तो फिर अपने पुत्रों को बुला करके पूछा क्यों उसे बुलाया था। बोले, बुलाए थे। वह आया नहीं, बोले किस मुँह से आएगा। वो कैसे आएगा। बोले, कौन गया था बुलाने?, तो जो गया था वो बोला- मैं गया था। बोले, क्या बोला था? बोला- घर में शादी हैं, दादाजी ने बुलाया हैं, आना हैं तो आ जाना। बोले- बेटे ऐसे किसी को नहीं बुलाया जाता, चलो मैं चलता हूँ। और दादाजी खुद घर से सीधे उसके घर की ओर बढ़े, जब घर की ओर बढ़े, उसने अपने दादाजी को अपने घर की ओर आता देखा तो घबरा गया, क्या हुआ? लेकिन यह क्या, एक प्रतिमा धारी श्रावक, एक धर्मात्मा व्यक्ति, एक वेश्या के यहाँ फंसे अपने बेटे के घर जा रहा हैं, सीधे घर चले गए और जैसे ही दादाजी घर के पास पहुंचे। बेटे को समझ में आ गई, वह घर से सीधे नीचे उतरा, चरणों में गिर गया। आँखों से आंसू की धार, दादा जी माफ करना, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, मैंने बहुत बड़ा अपराध कर दिया और मुझ जैसे पापी के लिए भी आपके हृदय में इतना बड़ा स्थान। मैंने आपकी इज्जत को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया फिर भी आप मेरे प्रति स्नेह रखते हैंं। मुझे माफ करो, मुझे माफ करो, मुझे माफ करो, बेटा चरणों में शीश रखकर रो रहा हैं और पिता उसे उठाकर अपने छाती से लगा रहे हैंं और कह रहे हैंं – बेटा सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो भूला नहीं कहलाता। चल घर चल, सब लोग तेरा इंतजार कर रहे हैंं, घर चल सब लोग तेरा इंतजार कर रहे हैंं और बेटा अपने दादा के प्रेमपूर्ण व्यवहार से इतना प्रभावित हुआ कि फिर घर गया तो उसकी घर वापसी हो गई, लौटकर नहीं गया। यह हैं संभालने की कला। यह तुम्हारे अंदर होना चाहिए। अरे! वह तो खत्म हो गया, वह तो बर्बाद हो गया, उसको तो छोड़ो, उससे क्या लेना देना, यह बड़ी गड़बड़ हैं।

एक बात बोलूं, थोड़ी बुरी लगेगी- हमारी समाज में जितने भी धर्मात्मा किस्म के लोग होते हैंं, वह बाकी सब लोगों को बड़ी तुच्छ दृष्टि से देखने के आदी हो जाते हैंं। वो बड़ी तुच्छ और हेय बुद्धि से देखते हैंं, यह एक सच्चे धर्मात्मा की पहचान नहीं हैंं। यह धर्मात्मा होने का अहंकार हैं, दुराभिमान हैं। सच्चा धर्मात्मा तो पतित से पतित प्राणी के उत्थान की बात सोचता हैंं। आज गिरा हैं कल उठ जायेगा।

जो आज एक नाथ हैं, ना नाथ कल होता वही।

जो आज उत्सव मग्न हैं, कल सूख कर रोता वही।

यह तो सृष्टि का एक शाश्वत नियम हैं। यह तो चढ़ना उतरना लगे रहेगा। सदैव इस बात को ध्यान रखना चाहिए- गिरकर चढ़ा जाता हैं और चढ़कर गिरा जाता हैं। ये जीवन का क्रम हैं। धर्मात्मा व्यक्ति अगर सच्चा धर्मात्मा हैं तो कोई पतित हैं तो उसके उत्थान की भावना रखता हैं, घृणा की भावना नहीं। मैं यह नहीं कहता कि तुम पापी, दुराचारी आदमी को सिर पर बिठाओ। मैं तुमसे केवल यह कहता हूं- उन्हें पांव से रौंदना बंद करो, कुचलो मत, उपेक्षा मत करो, तिरस्कार मत करो, उनका सुधार करो, उन्हें संस्कार दो। बहिष्कार किसी चीज का समाधान नहीं हैं। सोच वैसी होनी चाहिए और वैसी सोच हो गई तो जीवन धन्य हो गया। तो कभी किसी को गिराना नहीं, गलतियां देखना मत, गलतियां निकालना मत, गलतियां पकड़ना मत। गलतियां देखनी हैं तो खुद की देखो, गलतियां निकालनी हैं तो खुद की निकालो, गलतियां पकड़नी हैं तो खुद की पकड़ो औरों की नहीं, औरों की गलती हो तो उसे सुधारने के लिए सम्बल बनो, उसको मार्गदर्शन दो ऐसा कोई काम मत करो जिससे गिरा हुआ व्यक्ति और गिर जाए, यह प्रयास होना चाहिए। अपने मन से पूछिए- आप क्या करते हैंं। दुसरो की गलती को पचाने की ताकत आपके पास हैं? एक बार मैंने ऐसे पूछा क्यों आप दूसरों की गलती को पचा सकते हो, तो सामने वाले ने एक ने कहा- हाँ, हम पचा सकते हैंं। हम बोले- बहुत अच्छी बात हैं, कब? बोले- जब वह हमसे ज्यादा ताकतवर हो तब। हमसे ज्यादा ताकतवर हो तो हम उसकी गलती पचा लेंगे।

मैंने एक दिन अपने प्रवचन में कहा कि भैया जिस से प्रेम होता हैं, उसकी गलती नजरअंदाज कर दी जाती हैं। जिसके प्रति प्रेम होता हैं, उसकी गलती नजरअंदाज कर दी जाती हैं। उसकी गलती को माफ भी कर देते हो, साफ़ भी कर देते हो क्योंकि ह्रदय में प्रेम हैं, यह अनुभव हैं कि नहीं। जिससे प्रेम होता हैं उसकी गलती को आप नजरअंदाज कर देते हो, माफ़ कर देते हो, चुपचाप उसको सह लेते हो ,कोई फर्क नहीं पड़ता। ठीक हैं, अपना हैं क्या फर्क पड़ता हैं, तो मैंने कहा तुम्हें अपनी पत्नी से प्रेम हैं, सब ने कहा प्रेम हैं, हमने पूछा पत्नी यदि भोजन बनाती हैं, और सब्जी में नमक कम हो या मिर्ची ज्यादा तो क्या करते हो? चुपचाप खा लेते हो, कि चार बातें सुनाते हो, बोलो भाई। आप लोगों से पूछ रहा हूं, क्या करते हो, पत्नी से प्रेम हैं कि नहीं? पहले तो यह बता दो, क्यों, कैसा पूछ रहे, गलत पूछ रहे।

एक बार मैंने पूछा मेरे पास १० दंपति बैठे थे, मैंने पूछा तुम लोगों का आपस में प्रेम हैं कि नहीं, सब ने बोला प्रेम हैं, हम बोले यह बताओ इनमें से कितने लोग हैंं जो चाहेंगे कि अगले जन्म में यही मेरा पति बने, तुम में से कितने हैंं जो ये चाहेंगे कि अगले जन्म में यही मेरा पति बने। एक ने भी हां नहीं कहा। एक बुड्ढा मर रहा था, हालत दयनीय थी, उसने कहा- हे भगवान! मुझे उठा ले, हे भगवान! मुझे उठा ले, हे भगवान! मुझे उठा ले, मरणासन्न वृद्ध बार बार दोहरा रहा था। हे भगवान! मुझे उठा ले। बाजू की चारपाई में उसकी घरवाली भी थी, वह कह रही थी, हे भगवान! मुझे उठा ले, हे भगवान! मुझे उठा ले। जैसे ही धर्मपत्नी ने कहना शुरू किया- हे भगवान! मुझे भी उठा ले, तो बुड्ढे ने कहा- अगर यही मेरे पीछे आती तो मुझे अभी नहीं जाना। यह तुम्हारा प्रेम हैं। तो मैंने ऐसे ही पूछा कि अगर तुम्हारी पत्नी के प्रति तुम लोगों का प्रेम हैं कि नहीं, सबने कहा-हाँ। तो मैंने कहा- अगर बताओ तुम्हारी धर्मपत्नी तुम्हें भोजन में सब्जी परोसे और सब्जी में मिर्ची ज्यादा हो, नमक कम। तो तुम उसे चार बातें सुनाओगे या चुपचाप खाओगे। बोलो तो भाई, चुपचाप खा लोगे, बहुत बढ़िया आनंद हैं। ऐसे ही एक युवक ने कहा कि चार बातें सुनाओगे या चुपचाप खाओगे आनंद की तरह। एक ने हाथ उठाया कहा, महाराज जी! चुपचाप खा लेंगे। मुझे उसकी सहनशीलता पर आश्चर्य हुआ। तभी उसके बाजू में बैठा हुआ उसका दोस्त बोला, महाराज! इसके अलावा कोई चारा नहीं हैं। नहीं तो वो भी नहीं मिलेगा, पता नहीं उसके साथ क्या हाल हैं।

बंधुओ! कई जगह हम गलतियों को पचाने की ताकत रखते हैंं, गलतियां पचाना सीखिए, गलतियों को प्रचारित करना बंद कीजिए, तब कही जाकर हमारा जीवन धन्य होगा और हम अपने जीवन को आगे बढ़ाने में समर्थ हो सकेंगे। तो से गलती जिससे व्यक्ति गिरता हैं, गिराता हैं। हमें गिरना नहीं हैं, गिराना नहीं हैं, हमें संभलना हैं और संभालना हैं। बस गलती के संदर्भ में गलती करना, गलती दोहराना और गलती से सीख लेना और गलती को सुधारना, यह हमें देखना हैंं। दूसरों की गलती देखना नहीं, दूसरों की गलती निकालना नहीं, दूसरों की गलती पकड़ना नहीं, दूसरों की गलती को सुधारना हैं या दूसरों की गलती को बचाना हैं। यह चार बातें आप सब याद रखें। आज ‘ग’ हुआ हैं कल की बात आएगी, देखते हैंं एक-एक अक्षर हमें एक-एक बहुत गहरा संदेश देता हैं। आज आप एक संकल्प लीजिए कि हम अपनी गलतियों से सीख लेने का और गलतियों को सुधारने का संकल्प लेते हैंं, जीवन पवित्र होगा, जीवन धन्य होगा।

 

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