दिवस 8: उत्तम त्याग • दशलक्षण साधना
दिवस 8

उत्तम त्याग

संग्रह नहीं, सार्थकता ही असली समृद्धि है

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

प्रेरणा स्रोत

यह आत्म-चिंतन सामग्री परम पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज द्वारा लिखित है।

त्याग का मर्म

आज का युग भोग की अंधी दौड़ का है। ज़्यादातर लोग इस भ्रम में जी रहे हैं कि जितना अधिक हम इकट्ठा करेंगे — धन, वस्तुएं, संबंध, जानकारी — उतना ही अधिक सुरक्षित और सुखी जीवन होगा। लेकिन यह युग जितना उन्नत हुआ है, उतना ही अशांत भी हुआ है। भंडारण की संस्कृति ने हमारे भीतर की रिक्तता को और गहरा कर दिया है।

“त्याग से तृप्ति मिलती है, और तृप्ति से आत्मशक्ति।”

वर्तमान जीवन की चुनौतियाँ

आज के युवा एक के बाद एक डिग्री, प्रमोशन और पद के पीछे भागते हैं। सोशल मीडिया पर व्यस्त रहना, तुलना करना, लाइक्स की तलाश में जीना — यह भी एक आंतरिक परिग्रह है। त्याग का अर्थ है इस होड़ से बाहर आना, अपने भीतर के लक्ष्य को खोजना।

त्याग में आत्मबल का बीज

त्याग करने वाला व्यक्ति डरता नहीं। क्योंकि उसने मोह छोड़ा है। जहाँ मोह नहीं, वहाँ भय नहीं। जहाँ भय नहीं, वहाँ स्वतंत्रता है। और जहाँ स्वतंत्रता है, वहीं आत्मा की शक्ति प्रकट होती है। त्याग हमें हल्का करता है, हल्कापन हमें ऊपर उठाता है, और ऊपर उठना ही आत्मिक उन्नति है।

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दैनिक त्याग का अभ्यास

हर दिन कुछ न कुछ त्यागने का अभ्यास करें और देखें, आपकी आत्मा कैसे प्रसन्न होती है।

कुछ समय मोबाइल का त्याग।

कोई नकारात्मक विचार का त्याग।

कोई तुच्छ लालसा का त्याग।

आज का संकल्प

त्याग धर्म आधुनिक मानव के भीतर चल रही ‘संग्रह प्रवृत्ति’ के रोग का इलाज है। जितना त्याग करेंगे, उतने हल्के होंगे। और हल्कापन ही आनंद की नींव है।

“मुझे जो मिला है, वह केवल मेरे लिए नहीं है।”

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