सत्य का स्वरूप
आज का युग “पोस्ट-ट्रुथ” (Post-Truth) का युग कहा जा रहा है, जहाँ भावनाएँ तथ्यों पर भारी पड़ती हैं और सुविधा अनुसार सत्य को तोड़ा-मरोड़ा जाता है। सोशल मीडिया, राजनीतिक भाषण, विज्ञापन और यहाँ तक कि आपसी संवाद भी अक्सर आधे-अधूरे या झूठे तथ्यों पर आधारित होते हैं। ऐसे समय में “उत्तम सत्य धर्म” न केवल आत्मशुद्धि का मार्ग है, बल्कि समाज को सत्यनिष्ठा की ओर मोड़ने वाला एक क्रांतिकारी आचरण भी है।
आधुनिक युग की चुनौती: “सुविधा का सत्य”
आज अधिकांश लोग “जो मुझे ठीक लगे, वही सत्य है” की धारणा में जी रहे हैं। बच्चों को सिखाया जा रहा है कि “तुम जो चाहो, वही सही है”, विज्ञापन भ्रमित कर रहे हैं कि “झूठ बोलो, लेकिन स्मार्ट बनो”, राजनीति कहती है “दिखाओ वही जो लोग देखना चाहते हैं”, और संबंधों में चल रहा है “छुपाओ ताकि रिश्ता न बिगड़े”। यह सब असत्य का चतुरतापूर्ण जाल है, जो धीरे-धीरे हमारी आत्मा को खोखला कर रहा है।
असत्य से उपजने वाली समस्याएँ
झूठे व्यवहार से परिवार, समाज और राष्ट्र में अविश्वास की दीवार खड़ी हो रही है। असत्य कहने वाला हर व्यक्ति भीतर से तनाव में जीता है, क्योंकि उसे हर बार नया झूठ याद रखना पड़ता है। झूठ के बाद आत्मग्लानि जन्म लेती है, जो आत्मा को अशुद्ध करती है। जब असत्य सामान्य बन जाए, तो न्याय, नैतिकता और मर्यादा सब कुछ खो बैठते हैं।