पुण्य संचय के लिए क्या करें?

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पुण्य संचय के लिए क्या करें?
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“पुण्य का अर्थ है आत्म तत्व की पवित्रता का बोध. मन की निर्दोष निर्मलता जहाँ होगी वहां की प्रकृति पुण्य होगी. पाप का अर्थ है मन की मलिनता और आत्मा पर पड़े धूल और बोझ जिसे जीव अपने पूर्व जन्मो और आज के जीवन में ढोता है. जब पाप की भावना पुण्य की कमाई से बढ़ने लगें तो समझ लो वह जीव पाप के उस राह पर चल पड़ा है जहाँ उसकी अधोगति और अति दुःख निश्चित हैं. पुण्य पाप की भावना सभी धर्मों के साथ जुड़ी हुई है। मुनि श्री प्रमाण सागर जी बता रहे हैं पुण्य संचय के लिए क्या करें”

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