दिवस 7: उत्तम तप • दशलक्षण साधना
दिवस 7

उत्तम तप

आत्मचेतना की अग्नि में आत्मशुद्धि का यज्ञ

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

प्रेरणा स्रोत

यह आत्म-चिंतन सामग्री परम पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज द्वारा लिखित है।

तप का वर्तमान संदर्भ

आज का युग उपभोगवाद का युग है। सुविधाएँ बढ़ गई हैं, पर संतोष कम होता जा रहा है। इंसान आराम चाहता है, पर शांति नहीं मिलती। भोग की इस अंधी दौड़ में आत्मा का सौंदर्य धुँधला पड़ता जा रहा है। ऐसे में “उत्तम तप धर्म” का सिद्धांत हमें याद दिलाता है कि आत्मबल और आत्मशुद्धि की प्राप्ति केवल बाहर की नहीं, भीतर की अग्नि में जलने से होती है।

तप – केवल क्रिया नहीं, चेतना है

तप का अर्थ केवल उपवास, मौन या शरीर को कष्ट देना नहीं है, बल्कि वासनाओं की लपटों में अडिग रहना, और आत्मा की ज्योति को प्रज्वलित करना ही सच्चा तप है। आज की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम तत्काल सुख के पीछे भागते हैं। तप का मर्म यह है कि हम क्षणिक सुखों से ऊपर उठें और आत्मा के स्थायी आनंद की ओर बढ़ें।

तप और मानसिक अनुशासन

आधुनिक जीवन में तनाव, बेचैनी, निराशा और अवसाद — यह सब बढ़ रहा है क्योंकि हमारी मनःस्थिति असंतुलित है। उत्तम तप धर्म हमें सिखाता है कि भीतर की अग्नि में तप कर मानसिक अनुशासन को साधो। जब कोई अपमानित करे, और हम क्रोध की प्रतिक्रिया न दें — वह तप है। जब जीवन में असफलता मिले, और हम हिम्मत न हारें — वह तप है।

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आज का तप – डिजिटल तप

आज के युग में डिजिटल व्रत भी तप का रूप है। ये छोटे-छोटे प्रयास भी तप हैं क्योंकि तप केवल शरीर नहीं, विचार, भाव और दृष्टिकोण की भी साधना है।

एक दिन बिना मोबाइल के बिताना।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया से बचना।

ईर्ष्या भरे पोस्ट पढ़कर भी मौन रहना।

आज का संकल्प

उत्तम तप धर्म हमें सिर्फ धर्मशास्त्रों की बात नहीं सिखाता, यह हमें आधुनिक जीवन में आत्म-प्रबंधन और भावनात्मक स्थिरता का मार्ग देता है। आज जब हर कोई बाहर की आग से डरता है, तब तप सिखाता है — भीतर की अग्नि में निखरना ही जीवन की सच्ची साधना है।

“उत्तम तप वह दीपक है, जो आत्मा के भीतर प्रज्वलित होता है — और बाहर के अंधेरे को भी प्रकाश देता है।”

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