दिवस 4: उत्तम सत्य • दशलक्षण साधना
दिवस 4

उत्तम सत्य

जब झूठ सहज हो जाए, तब सत्य साहस बनता है

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

प्रेरणा स्रोत

यह आत्म-चिंतन सामग्री परम पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज द्वारा लिखित है।

सत्य का स्वरूप

आज का युग “पोस्ट-ट्रुथ” (Post-Truth) का युग कहा जा रहा है, जहाँ भावनाएँ तथ्यों पर भारी पड़ती हैं और सुविधा अनुसार सत्य को तोड़ा-मरोड़ा जाता है। सोशल मीडिया, राजनीतिक भाषण, विज्ञापन और यहाँ तक कि आपसी संवाद भी अक्सर आधे-अधूरे या झूठे तथ्यों पर आधारित होते हैं। ऐसे समय में “उत्तम सत्य धर्म” न केवल आत्मशुद्धि का मार्ग है, बल्कि समाज को सत्यनिष्ठा की ओर मोड़ने वाला एक क्रांतिकारी आचरण भी है।

आधुनिक युग की चुनौती: “सुविधा का सत्य”

आज अधिकांश लोग “जो मुझे ठीक लगे, वही सत्य है” की धारणा में जी रहे हैं। बच्चों को सिखाया जा रहा है कि “तुम जो चाहो, वही सही है”, विज्ञापन भ्रमित कर रहे हैं कि “झूठ बोलो, लेकिन स्मार्ट बनो”, राजनीति कहती है “दिखाओ वही जो लोग देखना चाहते हैं”, और संबंधों में चल रहा है “छुपाओ ताकि रिश्ता न बिगड़े”। यह सब असत्य का चतुरतापूर्ण जाल है, जो धीरे-धीरे हमारी आत्मा को खोखला कर रहा है।

असत्य से उपजने वाली समस्याएँ

झूठे व्यवहार से परिवार, समाज और राष्ट्र में अविश्वास की दीवार खड़ी हो रही है। असत्य कहने वाला हर व्यक्ति भीतर से तनाव में जीता है, क्योंकि उसे हर बार नया झूठ याद रखना पड़ता है। झूठ के बाद आत्मग्लानि जन्म लेती है, जो आत्मा को अशुद्ध करती है। जब असत्य सामान्य बन जाए, तो न्याय, नैतिकता और मर्यादा सब कुछ खो बैठते हैं।

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उत्तम सत्य धर्म की साधना

सत्य को जीवन में उतारने के लिए कुछ सरल अभ्यास किए जा सकते हैं:

स्व-अन्वेषण करें: क्या मैंने आज असत्य कहा या दिखावा किया?

तथ्य आधारित बोलें: अनुमान या अपुष्ट जानकारी पर न बोलें।

विरोध की आशंका में भी नम्रता से सत्य कहें।

आज का संकल्प

सत्य आज सबसे अधिक संकटग्रस्त मूल्य है, लेकिन यही हमें आत्मिक ऊँचाई प्रदान करता है। जब झूठ बोलना सामान्य और सुविधाजनक हो जाए, तब भी सत्य के मार्ग पर टिके रहना ही उत्तम सत्य धर्म की साधना है।

“मैं सत्यभाषी बनूँ, मैं दिखावे से मुक्त रहूँ, मेरे विचार, वचन और कर्म में एकरूपता हो।”

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