क्षमा: अंतस की अग्नि का शमन
दशलक्षण पर्व आत्मा की शुद्धि और जागृति का दस-दिवसीय महोत्सव है। यह केवल धार्मिक क्रियाओं का क्रम नहीं, बल्कि जीवन के गहन अंतर्द्वंद्वों का समाधान है। दस धर्मों में प्रथम — उत्तम क्षमा — सबसे मौलिक, सबसे मानवीय, और सबसे प्रासंगिक धर्म है। यह धर्म उस आग को शांत करता है जो हमारे भीतर क्रोध, अपमान, बदले की भावना और कटु संबंधों के रूप में जलती रहती है।
आज का यथार्थ: क्षमा क्यों कठिन होती जा रही है?
आज के समाज में व्यक्ति की भावनाएँ शीघ्र आहत हो जाती हैं। “उसने मुझे कुछ कहा था”, “उसने मेरी उपेक्षा की थी”, “मैं उसे कभी नहीं माफ करूँगा”— ऐसी भावनाएँ रिश्तों को विषैला बनाती जा रही हैं। सोशल मीडिया के इस युग में, जहाँ एक टिप्पणी, एक पोस्ट या एक मैसेज से मन आहत हो जाता है, वहाँ क्षमा केवल एक धार्मिक शब्द नहीं, बल्कि मानसिक शांति का औषधि बन जाता है।
क्षमा धर्म: आत्मा की गरिमा की रक्षा
क्षमा का अर्थ केवल सामने वाले को माफ कर देना नहीं है, बल्कि यह स्वयं को क्रोध, द्वेष और पीड़ा से मुक्त करना है। जब हम क्षमा करते हैं, तो हम अपने भीतर की भारी गाँठों को खोलते हैं।
“क्षमया ही महानता प्रकट होती है, क्योंकि दुर्बल व्यक्ति बदला लेता है और महान व्यक्ति क्षमा करता है।”
स्वयं की भूलों को स्वीकारना।
दूसरों की दुर्बलताओं को समझना।
बदले की भावना को छोड़कर समभाव में स्थित होना।
पारिवारिक और सामाजिक कटुता का इलाज
आज घर-घर में रिश्तों की दीवारें खड़ी हैं—पति-पत्नी, माता-पिता और बच्चों, भाई-बहन, मित्रों—सभी में अहं और अपेक्षाओं की आग लगी है। “मैं क्यों झुकूँ?”, “मैं सही हूँ” — यह भावना रिश्तों को तोड़ रही है। उत्तम क्षमा धर्म हमें सिखाता है कि जो सबसे पहले क्षमा माँगता है, वह कमज़ोर नहीं, सबसे बड़ा होता है। क्षमा माँगना अहंकार की हार नहीं, आत्मा की विजय है। जो क्षमा करता है, वही अपने और समाज दोनों का कल्याण करता है।
