दिवस 10: उत्तम ब्रह्मचर्य • दशलक्षण साधना
दिवस 10

उत्तम ब्रह्मचर्य

जीवन की ऊर्जा का जागरण

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

प्रेरणा स्रोत

यह आत्म-चिंतन सामग्री परम पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज द्वारा लिखित है।

आज का संदर्भ

वर्तमान युग में भोगवाद और इंद्रिय-प्रेरित जीवन शैली को सफलता का पर्याय मान लिया गया है। ‘जो चाहो वह लो’ की संस्कृति में आत्मनियंत्रण को पिछड़ापन और ब्रह्मचर्य को पुरातनपंथी सोच कहा जाता है। ऐसे समय में ब्रह्मचर्य धर्म केवल यौन संयम तक सीमित न रहकर, जीवन की समग्र ऊर्जा का जागरक बनकर सामने आता है।

ब्रह्मचर्य का वास्तविक अर्थ

ब्रह्मचर्य का सामान्य अर्थ केवल यौन-नियंत्रण नहीं है, बल्कि यह ‘ब्रह्म’ यानी आत्मा में ‘चर्या’ करना है। इसका आशय है — ऐसी जीवनशैली अपनाना जिसमें विचार, वाणी, और व्यवहार आत्मा के केंद्र में रहें, इंद्रियों की गुलामी नहीं।

आधुनिक जीवन की विडंबना

आज की पीढ़ी सोशल मीडिया, फिल्में, अश्लीलता, विज्ञापन और भोगवादी मानसिकता से घिरी हुई है। नतीजतन, ऊर्जा का अपव्यय बढ़ रहा है — न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी। फोकस, उत्साह, मानसिक स्पष्टता और आत्मिक शक्ति क्षीण होती जा रही है।

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ब्रह्मचर्य: शक्ति संचय का माध्यम

ब्रह्मचर्य किसी दमन का नाम नहीं, बल्कि ऊर्जा के संरक्षण और उन्नयन का मार्ग है। जो ब्रह्मचारी है, वही सच्चा नेता, विचारक और साधक बन सकता है। संयमित जीवन ही सच्चे चरित्र का निर्माण करता है।

ध्यान, स्वाध्याय और विवेकयुक्त दिनचर्या अपनाएँ।

उत्तेजक वातावरण और असंयमित खानपान से दूरी रखें।

ऊर्जा को सृजनात्मक कार्यों, सेवा, और आत्मविकास में लगाएँ।

आज का संकल्प

उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म का पालन केवल त्याग नहीं, बल्कि आत्मबल की प्रतिष्ठा है। यह धर्म हमें भोग की दलदल से निकालकर योग की ऊँचाइयों तक ले जाता है। आत्मा की ऊर्जा को संभालना ही आत्मोन्नति का मार्ग है।

“जिसने इंद्रियों को जीता, उसने जगत को जीत लिया।”

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