योनि का बन्ध कब और कैसे? अंतिम समय के परिणाम कितने महत्वपूर्ण?
आयु बन्ध की बात तो आगम में मिलती है लेकिन योनि बन्ध की स्पष्ट अवधारणा आगम में नहीं मिलती बल्कि आगम में ऐसे अनेक उदाहरण दिखते हैं कि आयु के साथ किसी ने योनि बांधी तो उस योनि में परिवर्तन हो गया। जैसे खदिरसाल भील की कहानी हम पढ़ते हैं, उसे यक्ष होना था, बाद में वह देव हो गया। श्रेणिक के बारे में हम पढ़ते हैं, उसने सप्तम नरक की आयु बांधी और बाद में पहले नरक में आ गया, योनि परिवर्तन हो गया। दीपायन मुनि के बारे में पढ़ते हैं कि उन्होंने देवों की सर्वोत्कृष्ट स्थिति अनुभाग का बन्ध किया। उन्होंने तैंतीस सागर की आयु का बन्ध किया था और वह डेढ़ पल की आयु लेकर अग्नि कुमार, देवों में, उत्पन्न हुए। तो यह इस बात प्रमाण है, किसी भी आयु बन्ध के बाद योनि में बदलाव हो सकता है पर एक बात तय मान करके चलना आयु के बन्धन के बाद आयु परिवर्तित नहीं होती। जिसका आयु बन्ध हो गया जीव को उसी आयु को भोगना ही पड़ता है।
आपने पूछा कि, “अन्त मता सो गता” ऐसा कहा जाता है, अन्तिम समय के परिणाम महत्वपूर्ण होते हैं। निश्चितया अगर किसी जीव के अन्तिम समय में परिणाम अच्छे हैं, तो वह भावी सद्गति का पात्र बनता है। अन्त समय में शुभ परिणाम होना, मनुष्य और देव गति में उत्पत्ति का द्योतक माना जाता है। इसलिए किसी जीव के अन्त समय में शुभ परिणाम होते हैं, उसे सुलक्षण मानना चाहिए। अन्त समय में अगर शुभ परिणाम हों तो जीवन भर के पाप साफ हो भी सकते हैं। यदि उस के परिणाम तदानुकूल हों तो अन्त समय में परिणाम भी उसके पापों के परिमार्जन में समर्थ हो सकता है।
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