तीर्थंकर के यक्ष-यक्षिणी कितने भव के बाद मोक्ष जाते हैं?

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शंका

तीर्थंकर के यक्ष-यक्षिणी कितने भव के बाद मोक्ष जाते हैं?

समाधान

तीर्थंकरों के यक्ष-यक्षिणी का उल्लेख कुछ ग्रंथो में मिलता है और इसके विषय में विद्वानों के कई प्रकार के अभिमत है। रहा सवाल उनके किस भव में मोक्ष जाने का, तो यह तय  है कि जो भी यक्ष और यक्षिणी हैं वह जन्मतः मिथ्यादृष्टी है। बाद में सम्यक्त्व को प्राप्त हो जाएं। सम्यक्त्व होने के बाद वे भावांतर में मोक्ष कब जाएंगे इसका स्पष्ट विधायक कोई सूत्र मैंने नहीं पढ़ा। 

मैं एक इतिहास की बात बताऊँ। तीर्थंकर प्रतिमाओं के साथ यक्ष यक्षिणी को क्यों जोड़ा गया। ऐसे हमारे कुछ विद्वान कहते हैं कि त्रिलोयपण्णत्ति में जो यक्ष यक्षिणी का प्रसंग है, वह पूरे के पूरे प्रसंग में कुछ गाथाएं छिपक के रूप में अंकित है। क्योंकि त्रिलोयपण्णत्ति कार ने अपने द्वारा जितनी गाथाओं का लिखने का उल्लेख किया त्रिलोयपण्णत्ति में उससे कुछ अधिक गाथाएं है। और जिस प्रकरण में यक्ष यक्षिणी की चर्चा की वह प्रकरण समोशरण का है। थोड़ी समीक्षात्मक दृष्टि से देखें तो ऐसा लगता है कि इसको बाद में जोड़ा गया। और इससे प्राचीन ग्रंथों में कहीं तीर्थंकरों के यक्ष यक्षिणी होने का उल्लेख देखने को नहीं मिलता है। खैर यक्ष यक्षिणी हो ना हो मैं इस विवाद में नहीं जाता।  

लेकिन एक बात मैं कहता हूँ मैंने एक समीक्षक की किताब पढ़ी। जिसमें उन्होंने लिखा छठवीं-सातवीं-आठवीं शताब्दी के बाद मूर्तियों के नीचे यक्ष यक्षिणीओं का अंकन शुरू हो गया। डॉ बलदेव प्रसाद शास्त्री की किताब है ‘धर्मशास्त्र का इतिहास’। उसके सात वॉल्यूम थे। मैंने उसे पढ़ा था आज से लगभग 20 वर्ष पहले। बहुत शोधात्मक ग्रंथ था वह। उसमें एक बहुत अच्छी बात मुझे देखेने को मिली कि जब से भारत में बहु-देवतावाद चला, तब उस बहु-देवतावाद के प्रभाव से पूरी की पूरी जो वैदिक परंपरा है वह छिन्न भिन्न हो गई, देवी देवताओं के नाम पर बंट गई। उन्होंने लिखा कि जैन परंपरा ने अपने मूल आराध्य के रूप में केवल 24 तीर्थंकरों को ही बांध रखा। उनमें बहु-देवतावाद नहीं फैला। इसलिए जैन परंपरा बंधी रही। और इसी बहु देवतावाद के बढ़ते प्रभाव से बचने के लिए तीर्थंकर प्रतिमाओं के नीचे यक्ष यक्षिणी के रूप में देवी देवताओं का अंकन कर दिया गया ताकि लोग यह जान सके कि मनुष्य का स्थान देवी देवताओं से ऊंचा है। देवी देवता भी मनुष्य स्वरूप भगवान की पूजा करते हैं इसलिए उनको पूजने की जगह तीर्थंकरों को पूजो। इसलिए हम सब को बांधे रखा और यह तब से तीर्थंकर प्रतिमाओं के नीचे यक्ष यक्षिणीओंका अंकन किया जाने लगा। यक्ष यक्षिणी भगवान के सेवक के रूप में क्यों रखे गए हैं?  वे व्यंतर देवों के भेद में आते हैं, अन्योंको क्यों नहीं लिया गया यह बहुत शोध का विषय है और इस पर विद्वानों की कई प्रकार की दृष्टियाँ है।

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