धनोपार्जन को पाप की श्रेणी में क्यों बताया गया है?

150 150 admin
शंका

धनोपार्जन को पाप की श्रेणी में क्यों बताया गया है? बिना धन के तो कोई काम ही नहीं होता है और ऐसा तो है नहीं कि सारा ही धन हम पाप करके ही कमाते हैं, अच्छे तरीके से भी तो कमाते हैं।

समाधान

धनोपार्जन पाप है, पर अर्थ पुरुषार्थ पाप नहीं, गृहस्थ का धर्म है। धनोपार्जन कोई भी कर सकता है लेकिन अर्थ पुरुषार्थ कोई बिरला करता है। जो धर्म से जुड़कर अर्थ का उपार्जन करता है, वो अर्थोपार्जन की जगह अर्थ पुरुषार्थ करता है। और जो केवल पैसे के लिए पैसा कमाता है वो मात्र धनोपार्जन करता है और वो पाप करता है। 

आपने पूछा कि ‘धनोपार्जन को पाप क्यों कहा?’ हमारे यहाँ पाप का स्वरूप बहुत व्यापक सन्दर्भ में उल्लेखित किया गया है। पाप का मतलब है षटकाय जीव की हिंसा। तो षटकाय जीव की हिंसा किसी न किसी रूप में तो सबसे होती ही रहती है, तो बिना पाप के धन का उपार्जन नहीं होता। लेकिन हाँ अनीति, हिंसा और क्रूरता के बिना धन उपार्जन जरूर किया जा सकता है। इसलिए हमारे यहाँ कहा गया कि धनोपार्जन तो तुम्हारे जीवन के लिए आवश्यक है, करो, पर धर्म से जुड़ करके करो। उस पर धर्म का नियंत्रण हो, अर्थात नीति-न्याय का ध्यान रखो, हिंसा और क्रूरता से अपने आपको बचाओ, अनैतिकता से बचाओ और उसके बाद उपार्जित धन को धर्म में लगाओ। धर्म के नियंत्रण से धन का उपार्जन करो और उपार्जित धन को धर्म-ध्यान में लगाओ। यानि धनोपार्जन करते समय धर्म का ध्यान रखो और धनोपार्जन के बाद धर्म का ध्यान करो। ये चीजें अगर करोगे तो जीवन सफल और सार्थक होगा।

गृहस्थों को पूरी तरह धन से रिक्त रहने की बात नहीं कही, ये कहा गया कि “धन को अपने जीवन में द्वितीय स्थान दो। जीवन और धर्म हमारा पहले स्थान पर है।” धन जीवन निर्वाह का साधन है इसलिए उसे साधन की तरह स्वीकार करो। धन का संग्रह करो पर उसे परिग्रह मत बनने दो। अपने द्वारा उपार्जित धन का पाप में प्रयोग करने की जगह परमार्थ में प्रयोग करो ताकि ये धन स्व-पर के कल्याण का साधन बने। इसलिए यदि आप धन का उपार्जन करते हैं तो ये तो तय मानना कि धनोपार्जन में पाप तो होता है लेकिन उपार्जित धन से आप पुण्य जरूर कर सकते हैं। इसलिए अपने पाप को पुण्य में परिवर्तित करना चाहते हो तो धन का सदुपयोग करो।

मैं आपके पाप को पुण्य में बदलने का एक बहुत सुंदर उपाय बताता हूँ। आप लोग अपने पाप को पुण्य में बदलना चाहते हैं, सब बदलना चाहते हैं। आपके जेब में जो रुपया है, वो क्या है, परिग्रह है। और परिग्रह पाँच पापों में एक पाप है। आपके जेब में जब तक वो रुपया है, वो परिग्रह है और उस रुपए को आप जेब से निकालकर मन्दिर के गुल्लक में डालें, वो दान हो गया। परिग्रह पाप है और दान धर्म है, पुण्य है। तो पाप को पुण्य में परिवर्तित करने का तरीका केवल यही है कि धन का सदुपयोग करो, अच्छे कार्य में उसका निवेश करो। पल में पाप पुण्य में परिवर्तित हो जाएगा और तुम्हारे जीवन उत्थान का आधार बन जाएगा।

Share

Leave a Reply