मन्दिर में नारियल क्यों नहीं फोड़ते और अगरबत्ती क्यों नहीं जलाते?

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शंका

जैन मन्दिरों में नारियल क्यों नहीं फोड़ते और अगरबत्ती क्यों नहीं लगाते हैं?

समाधान

जैन धर्म में पूजा-अर्चा का जो तरीका है वो अलग तरीके का है। हम लोग भगवान की पूजा किस लिए करते हैं-“वन्दे तद् गुण लब्धये“-भगवान के गुणों की प्राप्ति के लिए हम लोग भगवान की पूजा-अर्चा करते हैं। हमारे हिसाब से जो भगवान होते हैं वो वीतरागी और कृत्य कृत्य होते हैं। वो हमारा भोजन स्वीकार नहीं करते, भोजन नहीं लेते, भूख-प्यास से ऊपर होते हैं। भगवान भूख-प्यास से ऊपर होते हैं इसलिए हम लोग उनको भोग नहीं चढ़ाते हैं। उनके चरणों में जाकर हम लोग कुछ त्यागते हैं। नारियल फोड़ने की जो परिपाटी है वो एक अलग तरह की परिपाटी है। नारियल फोड़ते हैं और फोड़ कर के सामने वाले को खिला देते हैं। नारियल क्यों फोड़ते हैं-जब किसी को खिलाना हो। हम लोग फोड़ते नहीं हैं, हम लोग भगवान के चरणों में उसे अर्पित करते हैं। वो इस बात का प्रतीक होता है कि ‘भगवान! ये नारियल जैसे अपने आप में एक परिपक्व फल है हमारे जीवन में भी ऐसी ही परिपक्वता प्राप्त हो।’ नारियल में आपने देखा कि उसका छिलका अलग होता है और अन्दर का गरी गोला अलग होता है। इसी प्रकार आत्मा अलग है और शरीर अलग है। इस बात का वह द्योतक होता है इसलिए भगवान के चरणों में नारियल चढ़ाते हैं। क्योंकि भगवान नारियल खाते नहीं हैं भगवान कुछ भी ग्रहण नहीं करते, इसलिए भगवान के चरणों में हम साबुत चढ़ाते हैं, फोड़ना एक प्रकार से तोड़ने का प्रतीक है। इसलिए हमारे यहाँ नहीं होता है।

अगरबत्ती जलाने की जगह हमारे यहाँ धूप खेने की परीपाटी है, अगरबत्ती दिखाने की हमारे यहाँ परिपाटी नहीं है। ऐसे अगरबत्ती को जलाए नहीं, पर यदि शुद्ध अगरबत्ती है, तो दोष नहीं है। लेकिन हमारे यहाँ अष्टकर्म के विनाश के प्रतीक स्वरूप धूप खेने की परम्परा है, अगरबत्ती जलाने की नहीं है।

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