घर में जन्म या मरण हो तो उन्हें मंदिर जाने से क्यों रोका जाता है?

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शंका

जब भी किसी के परिवार में कोई जन्म या मृत्यु होती है, तो उन्हें मन्दिर जाने से क्यों मना कर दिया जाता है?

समाधान

इसको बोलते हैं सूतक या पातक। इसका एक कारण है। मन्दिर हमारा पूज्य स्थल है और जो पूज्य स्थल है वो सकारात्मक ऊर्जा का एक केंद्र होता है। पुराने जमानों में जो जन्म होता था, घर में होता था। तो जन्म के काल में बहुत सारी अशुद्धियाँ होती थीं, आज भी होती हैं। प्रक्रिया तो वो ही है। तो उस अशुद्धि से नकारात्मक ऊर्जा फैलती है, गंदगी में नकारात्मकता बढ़ती है। तो मुझे ऐसा लगता है, ये मेरा अपना चिन्तन है, किसी आगम की बात नहीं कर रहा हूँ, लेकिन ऐसा लगता है कि वो नकारात्मक ऊर्जा एक-दूसरे के संसर्ग से जुड़ गई। क्योंकि मन्दिर आदिक में इस तरह की नकारात्मक ऊर्जा जाने से वहाँ की रिद्धि-सिद्धि कम हो जाती है, उसका असर मन्दिर पर न पड़े, तो एक व्यवस्था कि जिनके घर में ऐसा हो, मन्दिर में जाएँ तो गर्भ गृह में न जाएँ, बाहर रहें। 

इसी तरह किसी की मृत्यु हुई, आप दाह संस्कार करके आए, आपका मन भी गलत और जिसकी जहाँ कहीं मृत्यु हुई, है उस कक्ष में कई दिनों तक इस तरह की नकारात्मक ऊर्जा का संचार रहता है। जहाँ मृतक व्यक्ति का शव रखा जाता है, वहाँ भी रहता है। तो वो हमारे साथ संसर्ग में न रहे तो १०-१२ दिन के लिए ऐसी व्यवस्था बना दी गई है। ये एक वैज्ञानिक व्यवस्था है, इसे उसी रूप में ले करके चलना चाहिए।

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