सुकुमाल स्वामी को सरसों के दाने क्यों चुभते थें?

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शंका

सुकुमाल स्वामी का वज्र वृषभ नाराच संहनन था, फिर भी उनको सरसों के दाने चुभते थे?

समाधान

सरसों के दाने चुभते थे, तो आपको पता है, लेकिन सियारनी के दाँत नहीं चुभे, ये पता है? इसका मतलब जानते हो सुकुमाल को जब तक अपने शरीर से मोह था, सरसों का दाना भी चुभता था और जब भेद विज्ञान हो गया, तो सियारनी के दाँत भी नहीं चुभे। सियारनी तीन दिन तक उन्हें खाती रही और वह अडिग बने रहे। इसलिए जो लोग यह सोचते हैं मुझसे होता नहीं, मेरा शरीर साथ नहीं देता, वे अपनी आत्मा को जगायें, शरीर की ताकत अपने आप प्रकट हो जाएगी। आधा किलोमीटर पैदल ना चलने की ताकत रखने वाले पूरे पर्वत राज की पैदल वंदना कर आते हैं, कहाँ से आती है ताकत? आधा घंटा भूख बर्दाश्त न करने वाले आठ, दस दिन, महीना-महीना उपवास कर लेते कहाँ से आती है ताकत? ध्यान रखना साधना तन से नहीं, मन से होती है।

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