युवा धर्म में रुचि क्यों जगाएँ?

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शंका

धर्म को रुचिकर कैसे बनाया जाए?

समाधान

सबसे पहले हमें अपने इंटरेस्ट को जगाना होगा। अगर मन में इंटरेस्ट जग गया, तो धर्म से अधिक दिलचस्प कुछ है ही नहीं। मुश्किल यह है कि सच्चे अर्थों में लोगों का धर्म में इंटरेस्ट है ही नहीं। एक धारणा बना रखी है लोगों ने कि धर्म तो जीवन से हारे हुए बूढ़े पुराने लोगों का काम हैं। किसी युवा से अगर बात करो तो वो कहता है ‘अभी हमारी उम्र थोड़ी हुई है, अभी हमारी उम्र दूसरी है’, यह जो सोच है यही सोच मनुष्य को धर्म से दूर रखती है। व्यक्ति को समझना चाहिए कि धर्म मेरे जीवन का अन्तरंग तत्त्व है, धर्म का मेरे जीवन में उतना ही स्थान हैं जितना की हवा, पानी और अनाज का। हवा, पानी और अनाज के बिना हम जी नहीं सकते तो धर्म के बिना भी हम सही ढंग से जी नहीं सकते। यह समझ अपने अन्दर होनी चाहिए कि धर्म ही वह तत्त्व है जो हमारे जीवन में अनुशासन और सन्तुलन लाता है, इसलिए मुझे धर्म करना ही चाहिए, यह समझअपने अन्तरंग में विकसित हो जाए। 

एक छोटे से बच्चे के हृदय में भी धर्म की रुचि जग सकती है, गलती बड़ों की तरफ से होती है। धर्म के सम्बन्ध में जब कभी बात आती है, तो केवल धार्मिक क्रियाओं की बात करते हैं- ‘बेटा मन्दिर जाना, माला फेर लेना, मुनि महाराज आ जाएँ तो उनकी सेवा कर लेना और आहार दे देना या उनका प्रवचन सुन लेना; कमी है, तो थोड़ा बहुत दान कर देना और ज़्यादा है, तो कोई व्रत और उपवास कर लेना’- हमने इतने में ही धर्म को समेट लिया। यह सब धर्म नहीं, धर्म का बाह्य रूप है, उन क्रियाओं से लोगों का इतना खिंचाव आये यह जरूरी नहीं है। 

हमें यह समझना चाहिए कि धर्म वह माध्यम है जो हमारे अन्दर एक self-discipline उत्पन्न करता है, जिससे हम सेल्फ-कॉन्फिडेंस (Self-Confidence) को डेवलप कर सकते हैं, जिससे हम self-control अपने अन्दर ला सकते हैं। जिसकी आज के समय में सबसे ज़्यादा जरूरत है, इमोशंस पर कंट्रोल करना, बेड हैबिट्स (Bad Habits) को नियंत्रित करना, यह धर्म का आन्तरिक रूप है। आत्मा के उद्धार की दृष्टि अगर जग जाए, तो हर व्यक्ति के हृदय में धर्म के प्रति लगाव होगा और जब धर्म के प्रति लगाव होगा, तो धार्मिक क्रियाओं के प्रति स्वाभाविक रूचि जगेगी। तो सब काम छोड़कर धर्म की किया करना, तो हम बुनियाद ठीक करें। 

समझ सही होनी चाहिए- ‘मैं धर्म कर रहा हूँ अपने अन्दर के जीवन को सुधारने के लिए, संवारने के लिए, मुझे बेहतर जीवन जीना है, मुझे अच्छा जीवन जीना है, मुझे इस जीवन को अच्छा बनाना है, मुझे अपनी आत्मा का कल्याण करना है और इसके लिए किसी उम्र का कोई ठिकाना नहीं।’ कौन जानता है किसकी कितनी उम्र है? हर उम्र में, हर व्यक्ति को धर्म अपनाना चाहिए, यह समझ आ जाए तो बच्चे भी बहुत अच्छे से धर्म करते हैं। मेरे सम्पर्क में हजारों youngsters हैं जो धर्म नहीं धर्म के आन्तरिक स्वरूप को समझकर बड़ा आनन्द से जीते हैं। मैंने कल कहा था कि कोरे rituals की बात ठीक नहीं, स्प्रिचुअल (spiritual) भी होना चाहिए और स्प्रिचुअल के साथ रिचुअल हो तो चार चांद लग जाये। हम लोग ‘मूल में भूल’ करते हैं उधर दृष्टिपात हो, वैसी सोच विकसित हो तो जीवन का कायापलट हो जाये। 

हर युवा से मैं कहता हूँ, एक सवाल अपने मन से पूछो, ‘मैं कौन हूँ? मेरा क्या है? मैं क्या कर रहा हूँ? मुझे क्या करना चाहिए?’ छोटे-छोटे ४ सवाल हैं, उसका उत्तर मिलेगा- यह मौज मस्ती, यह सैर सपाटा, यह भोग विलास, यह तो चार दिन की चाँदनी है। कब किसके जीवन की क्या स्थिति हो जाए कोई पता नहीं इसलिए व्यक्ति को समय रहते अपने जीवन की सही समझ विकसित करनी चाहिए। धर्म करने का मतलब यह नहीं कि तुम साधु बन जाओ, धर्म करने का मतलब केवल इतना ही है कि तुम साधु बनो, न बनो, सज्जन बन जाओ। सज्जनता अपने भीतर विकसित करो, उसका आधार धर्म है। हमें चाहिए कि हम धर्म के उसी स्वरूप को जन जन तक पहुँचायें ताकि हर पीढ़ी के लोग न केवल धर्म के प्रति आकर्षित हो अपितु उसका आनन्द अनुभव भी कर सके।

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