हमें पेड़ से फूल क्यों नहीं तोड़ना चाहिए?

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शंका

हमें पेड़ से फूल क्यों नहीं तोड़ना चाहिए?

समाधान

आप का कान कोई काट ले, तो आपको कैसा लगेगा? बुरा लगेगा न। पेड़ में जान है कि नहीं है? है, तो पेड़ को भी बुरा लगेगा। तो वैसा काम क्यों करना? फूल जो है, वो डाल पर अच्छे लगते हैं या आपके हाथ में अच्छे लगते है? डाल पर अच्छे लगते हैं। फूल से पेड़ों की शोभा होती है। इसलिए हमको नहीं तोड़ना चाहिए। हमको उनके प्रति दया का भाव रखना चाहिए। 

भगवान महावीर जब चार साल के थे उनकी माँ त्रिशला, उनके महल के पास एक बड़ा उद्यान था, उसमें टहल रही थीं। टहलते-टहलते वो मुख्य रास्ता छोड़कर घास पर चलने लगी। बालक वर्धमान एक जगह ठिठक कर के खड़े हो गए, आगे बढ़े ही नहीं। माँ आगे बढ़ गयी, माँ ने आवाज़ लगायी, बेटा वर्धमान आ तो, वर्धमान कुछ नहीं बोला। त्रिशला माँ बोली, बेटा आ, देख तो सही कितनी कोमल-कोमल घास है और कितना सुन्दर फुव्वारा है, आ तो सही। वर्धमान ने अपनी तरफ से कुछ नहीं बोला। जब कुछ नहीं बोला, तो माँ लपक कर के वर्धमान के पास आयी और देखा कि उनके गाल गीले हैं, आँसूओं की धार है। माँ त्रिशला का मन एकदम व्याकुल हो गया। ये क्या तेरी आँखों में आँसू कैसे? क्यों रो रहे हो? उन्होंने कुछ नहीं बोला। त्रिशला माँ ने फिर बेटे के आँसू पोछते हुए पूछा कि ‘बेटे तुम रो क्यों रहे हो?’ तब बोले कि ‘माँ आप इस कोमल-कोमल घास पर चलती हो तो हमें बहुत तकलीफ़ होती है। ऐसा लगता है, जैसे मेरी पीठ पर चल रही हो और देखो आपके चलने से मेरी पीठ पर कैसे छाले आ गये।’ त्रिशला माँ ने जब ये सब सुना तो उनकी हालत बहुत गम्भीर हो गयी। बदहवास हालत में उनके वस्त्र को उतार कर देखा तो वर्धमान की पीठ पर उनकी माँ के पैरों के निशान बने हुए थे। उनके अन्दर इतनी करूणा थी, कि घास पर कोई पैर रखता है, तो उन्हें लगता है कि उनके ऊपर कोई पैर रख रहा है। इसलिए जीव दया का पालन करना चाहिए और फूल, पत्तियाँ कभी नहीं तोड़नी चाहिए।

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