सूर्यास्त पूर्व भोजन क्यों?

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शंका

सूर्यास्त पूर्व भोजन क्यों?

समाधान

रात्रि का भोजन नहीं करने से लाभ ही लाभ हैं। हमसे पूछिए, रात्रि भोजन करने से क्या यानि है?, तो ज्यादा अच्छा होगा। जो दिन में भोजन करते हैं, उनका जीवन बड़ा खुशहाल होता है। हम जानते हैं कि दिन में भोजन करने में हमारी प्रकृति की अनुकूलता होती है। देखो, कमल होता है ना, कमल सूर्योदय के रहने पर खिलता है और जैसे ही सूर्य का प्रकाश मंद हो जाता है, सूर्यास्त होता है, कमल कुम्हला जाता है। ऐसे ही हमारे शरीर की जठराग्नि है, जब तक सनराइज(सूर्य उदित) रहता है, तब तक पूरी तरह सक्रिय होती है; सूर्यास्त होने के बाद जठराग्नि मंद पड़ जाती है। तो सूर्यास्त के पूर्व यदि आपके पेट में कोई भोजन जाएगा तो उसका पाचन अच्छा होगा और सूर्यास्त के बाद आप भोजन करेंगे, तो भट्टी की आँच कम होगी तो भोजन ठीक बनेगा या नहीं, तो भोजन उसका ठीक ढंग से नहीं बन सकता। तो भट्टी कि आँच कम होने से भोजन ठीक पचेगा नहीं, तो फिर गैस्ट्रिक प्रॉब्लम होगी, आफरा होगा, अन्य तरह की समस्याएं होगी। इसलिए दिन में भोजन करें। जीव हिंसा से बचने के लिए, स्वास्थ्य लाभ के लिए, व्यक्ति को चाहिए कि दिन में ही भोजन करे। यह हमारी सांस्कृतिक पहचान है।

मेरे संपर्क में ऐसे अनेक लोग हैं जो जन्म से जैन नहीं हैं, पर रात्रि भोजन नहीं करते। मैं आपको दो प्रसंग सुना रहा हूँ। एक दिन सन १९९७ की बात है; मैं जबलपुर में था। एक बड़ा आयोजन चल रहा था। उस आयोजन के क्रम में हमने मध्यप्रदेश में “दिन में शादी दिन में भोज, यही अहिंसा का जयघोष” एक नारा दिया था। वहाँ मैंने रात्रि भोजन के विषय में एक दिन प्रवचन दिया और कहा कि रात्रि भोजन में जीव हिंसा का दोष लगता है, रात्रि भोजन करने वाला व्यक्ति एक प्रकार से अप्रत्यक्ष रूप से त्रस जीव का घात करता है। वो एक दोष है, यह हमारे जैन धर्म के अनुकूल नहीं।

मैंने महाभारत का एक संदर्भ बताया था, –

नरक द्वाराणि चत्वारि प्रथमं रात्रि भोजनं, परस्त्रिगमनं च एव संधानानन्तकायिके।

नौधकंअपि पातव्यं रात्रौ यत्र युधिष्ठर, तपस्विनांच विशेषण ग्रहिणां च विवेकिना।

ये रात्रौ सर्वदाहारम परित्यजन्त समेधस, तेषाम् पक्षोपवासस्य फलम् मासेन जायते।।

-नरक के चार द्वार हैं, उसमें पहला द्वार रात्रि भोजन है, दूसरा पर स्त्री सेवन है, तीसरा आचार-मुरब्बा खाना है और चौथा अनन्तकायिक जमीकंद को खाना हैं। और कहा गया कि “हे युधिष्ठिर, विवेकी गृहस्थों को और तपस्विओं को तो रात्रि में जल भी नहीं पीना चाहिए । जो रात्रि में चारों प्रकार के आहार को त्याग देते हैं उनके एक माह में एक पखवाड़े के उपवास का फल मिलता है।” चारों प्रकार का आहार छोड़ दिया, १२ घंटे का उपवास हो गया आपका।

उस कार्यक्रम के बाद, जब मैं वापस लॉर्डगंज के मंदिर में पहुँचा एक डॉक्टर दंपत्ति मेरे पास आये, शायद वो द्विवेदी थे दोनों, डॉक्टर एम.डी. (मेडिसिन) थे, और उनकी धर्मपत्नी वह भी डॉक्टर थी, गाइनेकोलॉजिस्ट(प्रसूति विशेषज्ञ) थी। दोनों ने श्रीफल चढ़ाया और मुझसे कहा “महाराज श्री, हम दोनों ने छत पर बैठकर आप के प्रवचन सुने, तब से आपको परोक्ष रूप से प्रणाम करके रात्रि भोजन का त्याग कर दिया। आशीर्वाद दीजिए, आज से सायं ६:३० बजे के बाद हम जल भी ग्रहण नहीं करेंगे।” वे राइट टाउन के डॉक्टर थे; फिर उसके बाद २००४ में जब दोबारा मैं वहाँ पहुँचा, तब उन्होंने ही याद दिलाया “महाराज, मैं वह डॉक्टर हूँ”, मैंने पूछा “तुम्हारा नियम चल रहा है?”, बोलें “बहुत बढ़िया चल रहा है।” मैंने कहा, “कोई तकलीफ तो नहीं होती।” बोलें, “कोई तकलीफ नहीं होती। पार्टी-शादी में जाते हैं, आधा घंटा पहले पहुँच जाते हैं, उनकी तैयारियाँ चलते रहती हैँ, वहाँ देरी है तो हम लोग लिफाफा पकड़ा के आते हैं। हमारा काम हो जाता है और कोई दिक्कत नहीं होती।” निष्ठा हो तो सारे कार्य हो सकते हैं, कही कोई कठिनाई नहीं। जब उन्होंने मुझसे कहा कि-“६:३० के बाद हम जल भी ग्रहण नहीं करेंगे”, तो फिर मैंने उनसे पूछा, “आपका निभ जाएगा?” तो उन्होंने कहा “महाराज, दया पालन करने के लिए आप जो कहोगे सब निभ जाएगा। हमारी दया निभनी चाहिए और कुछ नहीं।”

ऐसे ही सतना के एक अतुल दुबे हैं, वह हमसे बहुत अच्छे से जुड़े, टैक्सेशन के एक लीडिंग प्रैक्टिशनर है, और एक बड़े भद्र व्यक्ति। २००४ में वो हमारे संपर्क में आए और तब से वह रात्रि भोजन का त्याग कियें। रात्रि भोजन का त्याग करने के बाद उनके साथ एक विचित्र संयोग जुड़ा क्योंकि वह बैडमिंटन के खिलाड़ी थे। खेल करके आते हैं, तो खा नहीं सकते और खा कर के जाते, तो खेल नहीं सकते। तो उन्होनें तय कर लिया, अब हम एक ही टाइम भोजन करेंगे और अब अपने आप को बहुत फिट महसूस करते हैं। रात में कुछ नहीं खाते, कुछ नहीं पीते। तो यह व्यक्ति की धारणा है, यदि व्यक्ति के मन में आ जाए तो सारे कार्य हो सकते हैं।

आप दिन में निश्चिंतता से कहीं भी बैठ सकते हैं, मच्छर आपको नहीं सताते। रात्रि में मच्छर आपको सताते हैं, आखिर क्यों? सूर्य की किरणों में रहने वाले अल्ट्रावायलेट रेज़ के कारण सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति नहीं होती, जो होते ही इधर-उधर छिप जाते हैं। रात्रि होते ही उनका संचार हो जाता है और उनका आपके भोजन में समाविष्ट होने की संभावना पूरी बनी रहती हैं। इसलिए उन जीवों की हिंसा ना हो, इस भय से हमें दिन में भोजन करना चाहिए। दिन में भोजन करना जैनी की पहचान है। इसलिए रात्रि भोजन से बचें। जितने लोग भी यहाँ आए हैं मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि इसका परहेज करें। कई लोग तो क्षेत्रों में आकर के भी रात में खा लेते हैं, यह अच्छी बात नहीं है। इससे अपने आप को बचाना चाहिए। यह आपकी अपनी पहचान है।

मेरे संपर्क में एक डॉक्टर है, जयपुर के, उनका नाम है अशोक लोहाडीया, उन्होंने कहा “महाराजजी, मैं कहीं भी जाता हूँ, तो दिन मैं खाता हूँ। लायंस क्लब से जुड़ा हुआ हूँ, मेरी कारण सारी मीटिंग हैं दिन में होती हैं और कहीं रात में होती है और मुझे खाने की बात की जाती तो मैं कहता हूँ, “साब में जैन हूँ मैं रात में नहीं खाता।” और यदि कोई इर्द गिर्द में जैनी खाता हुआ दिखता है तो मैं और जोर से बोलता हूँ कि “मैं जैन हूँ रात में नहीं खाता।” एक दिन ऐसा हुआ कि एक कार्यक्रम में गए वहाँ रात का भोजन था; जब इन्हें ऑफर किया गया, इनको खाना नहीं था। उन्होंने अपनी आदत के मुताबिक निषेध किया। तो उसमें एक सरदार जी थे, उनको मजाक सूझी “क्या जैन साहब, १२वीं  शताब्दी में कोई की लाइट की व्यवस्था नहीं रही होगी इसलिए लोग रात में नहीं खाते थे। अब तो बड़ा-बड़ा मरक्युरी और हैलोजन लैंप लग गया तो रात में खाने में क्या दिक्कत है?” डॉक्टर साहब ने जो जवाब दिया वह सुनने लायक है। उन्होंने बिना किसी झेप और संकोच के पलटते ही कहा “ठीक कहते हो सरदार जी, नहीं रहे होंगे १२ वी शताब्दी में कोई सैलून और नाई, अब तो बड़े-बड़े सैलून खुल गए, आप अपनी दाढ़ी क्यों नहीं कटवा लेते?” सरदार जी इतनासा मुँह लेकर रह गए। उन्हें समझ में आ गया कि किसी की परंपरा पर आक्षेप करने का अर्थ क्या होता है!

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