अष्टमी-चतुर्दशी को सिद्धान्त ग्रंथो का स्वाध्याय क्यों न करें?

150 150 admin
शंका

स्वाध्याय में द्रव्य क्षेत्र काल भाव शुद्धि का क्या विज्ञान है? अष्टमी-चतुर्दशी को सिद्धान्त ग्रन्थों का स्वाध्याय क्यों नहीं करना चाहिए?

समाधान

द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की शुद्धि तो रखनी ही चाहिए। जिनवाणी कोई ऐसी वैसी चीज नहीं है, जिनवाणी को भगवान की वाणी मानो, उसे एक साधारण पुस्तक मत मानो और यह एक प्रकार का विनय है। जहाँ अशुद्धि हो, अपवित्रता हो, नकारात्मकता हो या नेगेटिव वाइब्रेशन (negative vibration) हो, उस घड़ी में स्वाध्याय करने से आपको उसका लाभ नहीं मिलेगा। सिद्धान्त ग्रंथों के स्वाध्याय में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की शुद्धि का वर्णन करते हुए आचार्य वीरसेन ने धवला में लिखा है कि अष्टमी को किया हुआ स्वाध्याय गुरु और शिष्य के वियोग का कारण बनता है। तो ये शुद्धि हमें पालना चाहिए। इनकी अपनी कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया होगी जिस पर आज हम सबका ध्यान नहीं लेकिन उस पर ध्यान जाना चाहिए। 

जो भी हो शुद्धता तो होनी ही चाहिए। चूंकि आज का जीवन बिल्कुल शहरी बनता जा रहा है, पूर्ण शुद्धि नहीं हो पाती फिर भी यथासम्भव शुद्धि करें और महाग्रंथों को तो आप घर में रखे ही नहीं। जिन मन्दिर के पवित्र प्रांगण में बैठ करके ही उनका स्वाध्याय करें ताकि उनकी असाधना से बचा जा सके।

Share

Leave a Reply