जैन धर्म विश्वव्यापी क्यों नहीं बन पाया? आजादी का सही मतलब क्या है?

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शंका

“एक ही अक्षर शिष्य को जो गुरुदेव पढ़ाये, तीन लोक का द्रव्य नहीं, देकर ऋण मिट जाये।” 

पहला प्रश्न- जैन धर्म अहिंसा सिद्धान्त के उच्च शिखरों पर आधारित है फिर भी क्या ऐसी क्या मर्यादाएँ या सीमिततायें रहीं कि पूरे विश्व में इसका प्रसार नहीं हुआ? दूसरा प्रश्न – १९४७ में हमें आजादी मिली और १९९० से हम लोग आधुनिकतावाद की ओर बढ़े। जिस पीढ़ी का जन्म १९४७ से १९९० के मध्य हुआ, उन पर धर्म प्रभावना बहुत रही। आज की जो आधुनिक पीढ़ी है उन्हें हम आजादी का सही मतलब कैसे समझाएँ?

समाधान

“जैन धर्म विश्वव्यापी क्यों नहीं बन पाया?” यह बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। वस्तुतः विश्व में जैन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो जन धर्म बन सकता है। किन्तु ये विडम्बना है, इसके पीछे कई कारण हैं। इसके पीछे का एक सबसे बड़ा कारण यह है कि हमने जैन धर्म को ठीक ढंग से लोगों तक पहुँचाने में कमी कर दी। दूसरा हमने मूलभूत जैन तत्त्व ज्ञान को अपने पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित कर दिया। जैन धर्म के जो उदात्त जीवन मूल्यों की शिक्षाएँ हैं, जिससे व्यक्ति के जीवन का परिष्कार और चित्र का रूपांतरण होता है, उसको हमने ठीक ढंग से व्याख्यायित नहीं किया। यदि सही तरीके से जैन धर्म की प्रस्तुति होती, तो जैन धर्म की दिगंत व्यापी प्रभावना को कोई रोक नहीं सकता था। आज के इस बदले में परिवेश में मैं यह कहना चाहता हूँ कि यह संचार क्रांति का युग है, एडवांस टेक्नोलॉजी का युग है। इसके माध्यम से हम जैन धर्म को जन जन तक पहुँचाने में समर्थ हो सकते हैं। आवश्यकता है जैन धर्म की जीवन व्यवहार मूलक व्याख्या और विवेचना करने की ताकि इस धर्म को जन उपयोगी बनाकर जन धर्म बनाया जा सके।

दूसरा सवाल-“आजादी का सही मतलब क्या है” आजादी का मतलब केवल व्यवस्थाकृत आजादी नहीं। राजनीतिक आजादी तो मात्र व्यवस्थाकृत आजादी है, आजादी की बात तो धर्म मूलतः करता है, धर्म का मूल उद्देश्य ही आजादी है, स्वतंत्रता है। आजादी को हम मूल शब्द में भारतीय शब्दों में कह तो स्वतंत्र कहते हैं। स्वतंत्र यानी जिनका तन्त्र यानी सिस्टम, अपना हो। जो अपने तन्त्र से बन्ध जाये यानी जिसका स्वयं पर स्वयं का अनुशासन हो किसी अन्य का अनुशासन न हो, वह स्वतंत्र है। आजादी का मतलब यह है जो अपने लय में लीन हो जाये, अपने तन्त्र से बन्ध जाए, जिसके ऊपर अन्य किसी के अनुशासन की जरूरत न हो। यथार्थ आजादी, वास्तविक स्वतंत्रता यही है।

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