सम्यक दृष्टि जीव के जीवन में इतने कष्ट क्यों होते हैं?

150 150 admin
शंका

सम्यक् दृष्टि जीव अपने कर्म को बांधता है और उसका अवधि काल अन्त: कोड़ा कोड़ी सागर यानि एक अन्तर मुहूर्त होता है, उसके साथ जो पुण्य के आयतन लगे रहते हैं और पुण्य बन्ध ही विशेषत: ज़्यादा होते हैं। पुण्य का उदय अन्तरमुहूर्त में हो रहा है, पाप का अनुभाग कम होता जा रहा है ऐसे सम्यक् दृष्टि जीव के जीवन में कठिनाई ज़्यादा क्यों दिखाई देती है, यह विसंगति कैसे है?

समाधान

सम्यक् दृष्टि के सत्तागत्त कर्मों की स्थिति भी अन्त: कोड़ा कोड़ी से अधिक नहीं होती, बन्ध भी अन्त: कोड़ा कोड़ी से अधिक का नहीं करता। सम्यक् दृष्टि जीव पुण्य तो विशिष्ट बाँध रहा है पर अन्त: कोड़ा कोड़ी की स्थिति भी कम नहीं होती। पुरातन पाप कर्म की जब प्रबलता होती है, तो सम्यक् दृष्टि के जीवन में इस प्रकार की परेशानियाँ होती है और ज्यादातर सम्यक् दृष्टि के जीवन में ऐसा नहीं होता। आचार्य समन्तभद्र जी महाराज के कथन के अनुसार 

“ओजस्तेजोविद्या-वीर्ययशोवृद्धि-विजय-विभव-सनाथा:।

माहाकुला महार्था मानवतिलका भवन्ति दर्शनपूता:।।”

सम्यक दृष्टि को सारी चीजें बहुत अच्छी होती हैं, वो इसलिए कि उसके जीवन में नया पुण्य भी होता है और पुराना पाप बहुत मंद अनुभाग के साथ आता है। कभी किसी-किसी का पाप जब प्रगाढ़ हो जाता है, तो उसे इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

Share

Leave a Reply