तीर्थंकरों का गर्भ में रहने का समय एक ही क्यों रहता है?

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शंका

समय के साथ तीर्थंकरों की आयु और अवगाहना घटती बढ़ती रही है लेकिन तीर्थंकरों का गर्भ में रहने का समय कम नहीं हुआ, ऐसा क्यों?

अंकित जैन, सागर

समाधान

आयु और अवगाहना केवल तीर्थंकरों की ही नहीं घटी बल्कि हर मनुष्य की घटी, अन्य प्राणियों की भी घटी। यह अवसर्पणी काल है इसमें आयु और अवगाहना घटती है। यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि गर्भावस्था की अवधि क्यों नहीं घटी? इसलिए नहीं घटी क्योंकि व्यक्ति के, खासकर मनुष्य के विकास में इतना समय जरूरी है। इस बात को सोचना चाहिए कि आज अल्प शक्ति, अल्प सत्त्व, अल्प आयु और अल्प अवगाहना के बाद भी आपकी माँ आपके ऊपर कितना बड़ा उपकार कर रही हैं। पाँच सौ धनुष की काया वाले भगवान ऋषभदेव को माँ मरुदेवी ने अपने पेट में नौ माह तक रखा था, आपकी माँ ने भी आपको नौ माह तक अपने पेट में रखा है। अब माँ की भी अवगाहना घटी और जो उत्पन्न होने वाला बालक है उसकी भी अवगाहना घटी है, लेकिन गर्भावस्था की अवधि नहीं घटी। इससे यह तय करो कि जीवन का निर्माण बहुत कठिनाई से होता है; उसके लिए पूरे नौ माह चाहिए। हालाँकि, कुछ सतमासे हो जाते हैं, वह एक्स्ट्राऑर्डिनरी (extraordinary) हो जाते हैं, उनके साथ कुछ न कुछ अतिरिक्त जुड़ता है। नौ माह ही क्यों? नौ माह इसलिए क्योंकि नौ ही ऐसा अंक है जो पूर्णता का प्रतीक है। नौ का कभी नाश नहीं होता। नौ का पहाड़ा पढ़ो, आखिरी तक नौ बना रहता है। शायद पेट में नौ माह तक रखने का विधान इसीलिए होगा कि नौ माह में ही व्यक्ति परिपूर्ण बन सकता है, उसके व्यक्तित्त्व के विकास के लिए नौ माह चाहिए।

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