उड़ीसा में जैन धर्म की स्थिति इतनी जर्जर क्यों है?

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शंका

Ancient history (प्राचीन इतिहास) में हमने राजा खारवेल के बारे में पढ़ा, जिसमें उड़ीसा के बारे में बताया कि वहाँ पर जैन धर्म पहले बहुत ज़्यादा था; हाथी की गुफाओं के शिलालेखों पर पता चला कि जैन धर्म कभी वहाँ का राष्ट्रीय धर्म भी था लेकिन अब वहाँ पर नाम मात्र रह गया है, ऐसा क्यों?

समाधान

यह हम लोगों के लिए बड़े गौरव का और दुःख का विषय है। गौरव का विषय इसलिए है कि आठवीं शताब्दी तक जैन धर्म भारत का मुख्य धर्म हुआ करता था। भारत के कई प्रदेशों में जैन धर्म, राष्ट्र धर्म के रूप में जाना जाता था; भारत की बहुसंख्यक आबादी जैन थी। और दुःख इसलिए है कि वह बहुसंख्यक जैन आज अल्पसंख्यक बन गए। 

उड़ीसा में जैन धर्म आठवीं शताब्दी तक राष्ट्र धर्म था। वहाँ के जितने भी राजा-महाराजा थे सब जैन धर्म के अनुपालक थे। इतिहास को जब हम पलटते हैं तो हर्षवर्धन के काल से बौद्धों के साथ जैनियों का, फिर बाद में अन्य सम्प्रदाय का आपस में धर्म के विस्तार को लेकर बड़े खूनी संघर्ष हुए और राज-आश्रय छूट गया इसलिए इस काल में जैन धर्म का सत्यानाश हुआ और रही सही कसर को मुगलों ने खत्म कर दिया। भारी तादाद में जैनियों का अन्त हुआ, आज भी उड़ीसा में जैन अवशेष भरे पड़े हैं। 

पुरी-कोणार्क के मन्दिर में आज भी जैन तीर्थंकर अंकित हैं, ऐसा लोग कहते हैं। यह जैन धर्म की प्राचीन विरासत को बताता है लेकिन देश काल की परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल न होने के कारण आज हमारी स्थिति इतनी छिन्न-भिन्न हो गई।

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