मंदिर धर्म ध्यान के लिए उत्तम स्थान क्यों है?

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शंका

क्या मन्दिर जा कर दर्शन करने में, माला फेरने में उतना ही धर्म है जितना घर पर एक कक्ष में मन्दिर बना कर उसमें दर्शन करने में?

समाधान

मन्दिर में माला फेरें या घर में माला फेरें? घर में दर्शन करें या मन्दिर में करें? एक बार एक डॉक्टर की धर्म पत्नी ने मुझसे कहा- ‘महाराज जी! इनको मन्दिर जाने के लिए कहो।’ डॉक्टर बोला ‘महाराज मैं घर पर ही कर लेता हूँ।’ ‘अच्छा, आप तो डॉक्टर हैं?’ ‘हाँ, डॉक्टर हूँ।’  ‘पेशेंट को देखते हो?’ ‘देखता हूँ।’ ‘कहाँ देखते हो?’ ‘ओ.पी.डी. में’ ‘ऑपरेशन भी करते हो?’ ‘हाँ महाराज, मैं ऑपरेशन भी करता हूँ, नर्सिंग होम है छोटा सा।’ ‘ऑपरेशन कहाँ करते हो?’ ‘ऑपरेशन थिएटर में करते हैं।’ ‘क्यों? ओ.पी.डी. में क्यों नहीं करते हो, ओ.टी में क्यों करते हैं?’ ‘महाराज जी नहीं, आपको पता नहीं है, ऑपरेशन ऐसी-वैसी जगह नहीं किया जाता। ऑपरेशन करने के लिए पूरे के पूरे कक्ष को स्टेरलाइज़ड करना पड़ता है। उसको वाष्पीकृत करके शुद्ध करना पड़ता है।’ ‘क्यों?’ ‘इन्फेकशन होने का डर है, हम लोग कपड़े भी दूसरे पहनते हैं। ये कपड़े नहीं रखते हैं, ऊपर से एक अलग कपड़ा पहनते हैं। तब जा करके हम ऑपरेशन करते हैं, नहीं करें तो इन्फेक्शन का डर है।’ तो मैंने कहा ‘जो डॉक्टर ओ.पी.डी. में वही डॉक्टर ओ.टी में है, लेकिन आप ओ.पी.डी. का काम ओ.पी.डी. में करते हैं, ओ.टी का काम ओ.टी में करते हैं। तो मैं कहूँगा जो मन घर में है, वही मन मन्दिर में है। लेकिन घर का काम घर में करो, मन्दिर का काम मन्दिर में करो। घर में करोगे तो ढेर प्रकार के इंफेक्शन होंगे।’ किस प्रकार के इन्फेक्शन होंगे? सब्जियों के छोंक का इन्फेक्शन, टीवी की स्वर लहरियों का इन्फेक्शन, बच्चों के रोने और किलकारियों का इन्फेक्शन और घरवाली के चीखने चिल्लाने का इन्फेक्शन, सबसे बचो।

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