विवाह कार्यक्रम में फेरों में सम्मिलित होना क्यों आवश्यक है?

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शंका

शादी जीवन का एक मांगलिक कार्यक्रम बताया गया है। आजकल जो शादियाँ गार्डन में या होटलों में होती हैं, उनमें लोग लाखों-करोड़ों रूपये एक दिन में फ़िजूलखर्चे के लिए निकाल देते हैं, फिर भी फेरों के समय कोई मौज़ूद नहीं होता।  पर जब दान निकालना होता है, तब खर्चे में से न्यूनतम राशि निकाली जाती है, ऐसा क्यों हो रहा है?

समाधान

यह बुद्धि की बलिहारी है, क्या करें? पूरे विवाह के कार्यक्रम में लोग एकत्र होते हैं, फेरे के समय में सब इधर-उधर हो जाते हैं। १०-२० बचते हैं घर-परिवार के, वे भी ऊँघते रहते हैं। इसका ये कुपरिणाम है कि आजकल विवाह संस्कार के बाद लोगों की आपसी सामंजस्य में कमी आ रही है। देव शास्त्र गुरु की असाधना और हमारी मूलभूत सांस्कृतिक परम्परा की उपेक्षा के यह कुपरिणाम है, इसमें जागरूकता होनी चाहिए। मैं तो आप सबसे कहत हूँ  कि विवाह के किसी भी प्रसंग में जाएँ तो आप अन्य किसी कार्यक्रम में सम्मिलित हों या न हों, फेरे के कार्यक्रम में अवश्य सम्मिलित हों। फेरे का कार्यक्रम दिन में होना चाहिए और फेरे के कार्यक्रम में इतनी पवित्रता और विशुद्धि रखनी चाहिए, जैसे आप पूजा-विधान में करते हैं। सब लोग समूह के साथ बैठे और उस फेरे की अनुमोदना करें। अग्नि की साक्षी में फेरे होते हैं तो समाज को भी उसमें साक्षी होना चाहिए, सहभागिता होनी चाहिए। उस घड़ी लोगों का दिया गया मंगल आशीर्वाद उस वर-वधु के भावी जीवन के मंगल का मुख्य रूप से कारण होगा। लेकिन अब फैशन है, अन्धानुकरण है, सब वेस्टर्न कल्चर को अपनाते जा रहे हैं। हमारी मूलभूत जो परम्परायें थी वह शिथिल होने लगी हैं बल्कि भंग होने लगी हैं, इसके कारण ऐसी स्थिति निर्मित हो रही है।

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