आज की युवा पीढ़ी धर्म से विमुख क्यों होती जा रही है?

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शंका

आज की युवा पीढ़ी धर्म से बिल्कुल विमुख होती जा रही है। शिक्षा के क्षेत्र में तो बहुत आगे बढ़ी है, पर संस्कारों के नाम पर बिल्कुल भी नहीं। केवल भौतिकतावाद और पैसे के पीछे दौड़ रही है, ऐसा क्यों?

समाधान

जब भी मेरे सामने ये सवाल आता है ना, मुझे अच्छा नहीं लगता। अच्छा इसलिए नहीं लगता कि आप लोग युवा पीढ़ी पर जो दोषारोपण कर रहे हैं वह ठीक नहीं है। युवा पीढ़ी धर्म से नहीं जुड़ी तो उनको पैदा करने वाले कितना जुड़े हैं पहले वो तो देखो। उनमें क्या है, हमने नींव ही कमजोर कर दी। मैं पूरे समाज का ध्यान दूसरी ओर आकृष्ट करना चाह रहा हूँ। नींव ही कमजोर हो गई तो ऊपर का भवन क्या होगा?

युवा पीढ़ी धर्म से नहीं जुड़ी यह कहना बहुत सरल है, वह धर्म से क्यों दूर है यह तो सोचें? हमारे समाज के बड़े-बुजुर्गों में ही खुद धर्म के प्रति जितना लगाव होना चाहिए वह नहीं है। आप का जब एक बच्चा स्कूल जाने के समय में होता है, आप अपने बच्चों को स्कूल, ट्यूशन और कोचिंग जितनी तत्परता से भेजते हैं, कभी उसे मन्दिर जाने के लिए, गुरुओं के पास जाने के लिए प्रेरित करते हैं? बहुत कम प्रेरित करते हैं, प्रेरणा ही नहीं देते। दूसरी बात, बच्चों को जिस उम्र में हमें धर्म से जोड़ना चाहिए, हम उन्हें धर्म थोप देते हैं, धर्म सिखाते नहीं। धर्म थोपे भी नहीं, सिखाएँ भी नहीं, उनके भीतर धर्म की भावना जगायें।

थाईलैंड में बुद्धिस्ट हैं (Buddhist), उनके बच्चों में मन्दिर आदि की प्रति बड़ी गहरी रुचि रहती है, संभ्रांत परिवारों के बच्चे भी जाते हैं। भारत में आकर देखते हैं तो लोगों में ऐसा नहीं दिखता, ऐसा क्यों? इसके पीछे का जो मुख्य कारण है वह यह है कि बचपन से ही वह इस तरह की भावना बच्चों में भर देते हैं कि जैसे तेरे जीवन को जीने के लिए साँस लेना जरूरी है और शरीर को चलाने के लिए खाना और पीना जरूरी है, वैसे ही अपने जीवन को टिकाए रखने के लिए भगवान के दर्शन करना, मन्दिर जाना जरूरी है। तेरे लिए स्कूल जाना जितना जरूरी है उससे ज़्यादा जरूरी भगवान के मन्दिर जाना है। अगर तू खाना-पीना नहीं खाएगा तो जी नहीं सकेगा और धर्म को भूल जाएगा तो ठीक से नहीं जी नहीं पाएगा, इसलिए धर्म को अपनाओ, ये उनके दिल-दिमाग में गहरे उतार देना चाहिए। प्रारंभ से यदि बच्चों में यह बात उतार दी जाए तो बड़े होने के बाद उस बच्चे को कहना नहीं पड़ेगा कि बेटा तुम मन्दिर जाओ।

देखिए, भावना जगाने का बड़ा चमत्कारिक प्रभाव पड़ता है। हम शिक्षा को लें, हम लोग जब पढ़ते थे तो उस जमाने में शुरुआत में स्कूल जाने से पहले बच्चे रोते थे। कई बच्चे रोते थे, मैं भी दो-चार बार रोया हूँ। अगर स्कूल भेजा जा रहा है, तो बच्चे रोते थे कि स्कूल हमको क्यों भेजा जा रहा है और आज बच्चों को एक दिन आप absent करने के लिए कहते हैं तो बच्चा रोता है। बच्चा रोता है, मना करता है, कोई बच्चा absent करना नहीं चाहता क्योंकि एक दिन मैं लेट हो जाऊँगा तो पिछड़ जाऊँगा। यह परिवर्तन क्यों आया? क्योंकि पहले शिक्षा का जितना मूल्य और महत्त्व है वह बच्चों के दिमाग में नहीं रहता था आज बच्चों ने समझ लिया कि मेरे जीवन में, मेरे स्कूल और पढ़ाई का क्या रोल है। एक दिन भी अगर स्कूल अब्सेंट करता हूँ तो बहुत पिछड़ जाऊँगा, ऐसा मुझे नहीं करना तो जैसे शिक्षा के क्षेत्र में जागरूकता लाई गई, धर्म के क्षेत्र में, धर्म के विषय में जिस दिन ऐसी जागरूकता लायी जाएगी, उस दिन ये सवाल ही खत्म हो जाएगा और जीवन में बदलाव आ जाएगा। 

हम यह कहना चाहते हैं कि बच्चों को आप ठीक तरीके से जोड़े, उनके भीतर धार्मिकता जगाए, धर्म थोपे नहीं, उन्हें आगे बढ़ाने की कोशिश करें और उनके लिए वैसा आदर्श उपस्थित करें। हमारे बड़े-बुजुर्ग जो धर्म करते हैं क्या वे अपने युवाओं के लिए प्रेरणा बन पाते हैं यह सवाल करना? आपने धर्म किया, अपने-चाल चलन में बदलाव नहीं लाया, अपने व्यवहार में बदलाव नहीं लाया, आप के अन्दर वही कटुता, वही कुटिलता, वही चालबाजी, वही राजनीति है तो आप अपने बच्चों के लिए एक अच्छे आदर्श कैसे बन पाएँगे? बच्चे देखते हैं। एक युवक बड़े प्रतिष्ठित घराने से सम्बन्ध था, उसके दादा जी, उसके पिताजी समाज का लम्बे समय तक नेतृत्व सम्भालने वाले थे पर वह धर्म से दूर रहता था। मेरे सम्पर्क में आया, मैंने पूछा ‘भैया तू इतनी समय दूर क्यों रहा?’ बोला ‘महाराज, क्या बताऊँ आपके प्रवचन मैंने सुने, उसको सुनकर मैं आपके पास आ गया, नहीं तो मेरे को कोई नहीं ला सकता था। मेरा दोस्त मोबाइल से सुन रहा था और ऐसे कुछ शब्द मेरे कानों में पड़े, मैंने सुना तो मुझे लगा आप बहुत अच्छा बोलते हैं, एक बार आपसे मिलना चाहिए।’ मेरे पास काफी देर तक बैठा और उसके अन्दर, मैंने देखा, काफी प्रभाव भी पड़ा। उसने एक बात कही थी जो देश भर के सारे बड़े बुजुर्गों को सोचने लायक है। उसने कहा ‘महाराज आप धर्म करते हैं, मेरे घर में धर्म के दो मॉडल हैं और दोनों डैमेज है, मैं क्या धर्म करने की प्रेरणा लूँ? वे रोज मन्दिर जाते, पूजा-पाठ करते, धार्मिक क्रियाओं में आगे रहते हैं, आप लोग के लिए भी आगे आते हैं पर महाराज जितनी क्षुद्र राजनीति (उसने बड़ी दृढ़ता से कहा) मेरे दादाजी और मेरे पिताजी करते हैं, मुझे लगता अगर धर्म करने वाला व्यक्ति भी इस तरह की क्षुद्र मनोवृत्ति के साथ ऐसे मनोवृति का शिकार होता है, तो धर्म करने से क्या फायदा? महाराज! यदि मैं धर्म से दूर रहता हूँ तो कहीं बड़े-बुजुर्ग बीच में दोषी हैं।’ अपने आप को सुधारिये, युवाओं पर दोषारोपण करने की आदत मत डालिए।

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