तत्त्वार्थ सूत्र में विषमवाद और मायाचारी से नाम और आयु कर्म बंध का क्या अर्थ है?

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शंका

तत्त्वार्थ सूत्र में विषमवाद और मायाचारी से नाम और आयु कर्म बंध का क्या अर्थ है?

समाधान

मन-वचन-काय की कुटिलता और विषमवाद करना-आपस में तू-तड़ाक करके उलझना, बकवाद करना, यह विषमवाद कहलाता है। यह सब अशुभ नाम कर्म के बन्ध का कारण है क्योंकि यह अशुभ कर्म की प्रवृत्ति है और माया भी योग की वक्रता का नाम है, कुटिलता का नाम है। तो जिस समय तिर्यंच आयु बन्धेगी उस समय अशुभ कर्म बन्धेगें ही बन्धेगें। तिर्यंच आयु बन्ध के काल में शुभ कर्म की प्रकृतियाँ नहीं बन्धतीं। तत्प्रायोग्य सारी अशुभ कर्म प्रकृतियाँ बन्धती हैं। 

आयु कर्म को यहाँ पृथक रूप से इसलिये रखा क्योंकि आयु कर्म हर समय नहीं बनता, नाम कर्म २४ घंटे बन्धता है। आयु कर्म का अपना काल है इसलिये आयु कर्म का प्रसंग करते हुऐ आयु कर्म की बात कर दी, पर यह मान कर के चलना कि यदि कोई मायाचारी करता है, तो केवल तिर्यंच आयु ही नहीं बांधता। जिस समय में मायाचारी की यानि खोटी प्रवृत्ति यानि खोटे कर्म का बन्ध, सारे अशुभ नामकर्म का बंद होगा, सारे पाप कर्म का बन्ध होगा। 

शुभ कार्य के साथ सारे पुण्य बन्धते है और अशुभ आयु के साथ सारे अशुभ बन्धते और यद्यपि तिर्यंच आयु को शुभ आयु के अन्तर्गत लिया है लेकिन तिर्यंच गति आदि सारी प्रकृतियाँ अशुभ हैं, उस काल में पाप रूप प्रकृतियाँ ही बन्धती हैं।

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