संयमी नियमत: देव गति को क्यों प्राप्त करता है?

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शंका

संयम धर्म करके भी संयमी पर्याय नहीं मिलती, देव पर्याय का आस्रव क्यों होता है? कृपया समाधान करें।

विनीता जैन, इंदिरापुरम

समाधान

संयमी नियमत: देव गति को प्राप्त करता है। 

प्रश्नकार का आशय है कि अगर हमने संयम का पालन किया है, तो हमें संयमी पर्याय मिलनी चाहिए, देवपर्याय क्यों मिलती है? संयम के परिणामस्वरूप असंयम में क्यों जाते हैं? वह इसलिए जाते हैं कि जैसे हमको कहीं आगे जाना है, हम बहुत तेजी से चले और थक गए, पूरी पहाड़ी चढ़ना है और शरीर में ताकत नहीं है, तो हम एक जगह बैठ करके विश्राम करते हैं, खाते पीते हैं, शक्ति को फिर से संग्रहित करते हैं, जुटाते हैं फिर हम चाहे तो पहाड़ चढ़ सकते हैं। इसी तरह हमने संयम की साधना शुरू की यानी सिद्धालय के शिखर पर चढ़ने का अभ्यास शुरू किया, पर चढ़ते-चढ़ते जब थकान हो गई तब विश्राम के लिए स्वर्ग में जाना होता है और फिर से शक्ति को संचित करके भवान्तर में सीधे सिद्धालय तक पहुँचा जाता है। यह बीच का एक विराम है। 

आप संयम से असंयम में गए जरूर हैं पर यह अटकाव है, भटकाव नहीं। अटकाव अलग चीज होती है, भटकाव अलग चीज होती है। अटकना यानी रेस्ट लेना, भटकना यानी भ्रमित हो जाना तो जो संयम की आराधना करता है वह देव पर्याय में जाता भी है, तो उसे वहाँ के भोग अन्दर से अच्छे नहीं लगते। यही कारण है कि उन भोगों के मध्य इतनी रुचि न रखकर करके सीधे भगवान के समवसरण में जाने का उत्साह अधिक रखता है।

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