सम्यग्दर्शन उपरान्त एक अन्तरमुर्हूत बाद कर्मों की निर्जरा क्यों रुक जाती है?

150 150 admin
शंका

सम्यग्दर्शन के बाद चतुर्थ गुणस्थान में एक अन्तरमुर्हूत तक कर्मों की निर्जरा होने के बाद रुक क्यों जाती है?

समाधान

एक बार आचार्य श्री से पूछा तो उन्होंने एक अच्छी बात कही “बाजे तब बजते हैं जब शादी होती है, बाद में उसी के बैंड बजने लगते हैं। चतुर्थ गुणस्थान में जब सम्यग्दर्शन होता है, तो एक अन्तर मुहूर्त के लिए निर्जरा होती है, बाद में रुक जाती क्योंकि उसकी विशुद्धि खत्म हो जाती है। गुण श्रेणी निर्जरा के कुछ खास कारण बताएँ हैं। या तो अपूर्वकरण परिणाम में गुणश्रेणी निर्जरा होती है या संयम और संयमासंयम के भाव से गुण श्रेणी निर्जरा होती है। अपूर्वकरण परिणाम सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति की प्रक्रिया में होते हैं, तो परिणाम के संस्कारवश एक अन्तरमुहूर्त बाद तक निर्जरा चलती है। बाद में वो परिणाम खत्म तो निर्जरा रुक जाती है। 

एक वृती के पास संयमासंयम परिणाम होते हैं और एक महावृती के पास संयम परिणाम होते हैं। तो संयमासंयम और संयम के परिणाम के निमित्त प्रति समय अंसख्यात गुणश्रेणी निर्जरा कर लेता है। अवृती के पास वैसे परिणाम नहीं होते हैं, इसलिए वह वैसी निर्जरा का अधिकारी नहीं है।

Share

Leave a Reply