हम सुबह उठने के लिए अलार्म क्यों लगाते हैं?

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शंका

जब हम सोने के लिए जाते हैं तो इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि हम सुबह जागेंगे। फिर भी हम घड़ी में अलार्म लगाकर सोते हैं। क्यों?

समाधान

यही तो मनुष्य के जीवन की विडम्बना है कि जीवन की मूलभूत सच्चाई को प्राय: अनदेखा करता है। उस तरफ उसका ध्यान नहीं जाता। उसे अपने जीवन की मूलभूत सच्चाई को समझना चाहिए और तदनुरूप अपने जीवन को ढालने का प्रयास करना चाहिए। 

सुबह उठें या नहीं, कुछ पता नहीं, इसलिए हम अपने मन को जागृत रखें। जो मन को जागृत रखता है उसे अलार्म लगाने की जरूरत नहीं है; और जिसे उठने के लिए अलार्म लगाना पड़ता है उसे अलर्ट करने से कोई फायदा नहीं। हमारे यहाँ आदिपुराण में ऐसा वर्णन आता है कि जब भरत चक्रवर्ती जागता था तो सुबह-सुबह घंटे का नाद किया जाता था; अलार्म बजाने के फेवर में बात कर रहा हूँ। घंटानाद करते-करते बोला जाता था- ‘वर्धते भयं, वर्धते भयं, वर्धते भयं’- ‘भय बढ़ता है, भय बढ़ता है, भय बढ़ता है’ यानि मौत कभी भी आ सकती है, जीवन का नया दिन मिला है कुछ अच्छा कर लो।’  तो मैं आप सबसे कहता हूँ, आप जागने के लिए अलार्म भरते हो तो केवल नींद से जागने के लिए मत भरो। अपनी चेतना को जगाने के लिए अलार्म लगाओ और यह सोच करके अलार्म लगाओ कि आज मैं सुबह जगा हूँ, मैंने जीवन की नई सुबह देखी है, मैं नई शुरुआत करूँगा। आज के नए दिन को अपने जीवन का एक अच्छा दिन बनाऊँगा और अपने जीवन को बिताऊँगा, इस भाव के साथ यदि आप उस अलार्म को अपने आप को अलर्ट करने की दृष्टि से लगाते हैं तो कोई दोष नहीं है।

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