कुछ तीर्थंकरों का ही गुणगान अधिक क्यों मिलता है?

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शंका

हमारे २४ तीर्थंकर होते हैं लेकिन हम लोग ज्यादातर ५ तीर्थंकर का ही गुणगान सुनते हैं या करते हैं। बाकी अन्य तीर्थंकरों के बारे में हमें इतना सुनने में नहीं आता ऐसा क्यों?

समाधान

२४ तीर्थंकरों का जो जीवन चरित्र है उसका उपदेश आज बहुत ज़्यादा उपलब्ध नहीं होता, वह काल के प्रभाव से नष्ट हो गया। बहुत थोड़ा सा बचा है, तो उनके चरित्र की विस्तृत बातें हम लोगों को उपलब्ध नहीं हैं और सुनने सुनाने में भी नहीं आती। 

आचार्य जिनसेन २४ तीर्थंकरों के महान चरित्र को महापुराण के रूप में लिख रहे थे लेकिन उन्होंने आदिनाथ भगवान का चरित्र लिखते-लिखते भरत तक का चरित्र पूरा किया और पूरा करने के पूर्व ही उनका समय आ गया। तो उसके बाद उनके शिष्य गुरु भद्राचार्य ने शेष २३ तीर्थंकरों और शेष शलाका पुरुषों का चरित्र उत्तरपुराण में लिख दिया जो बहुत छोटा है। अगर आचार्य जिनसेन होते तो शायद हमें और विस्तृत चरित्र देखने को मिलता। आचार्य जिनसेन के काल तक भी हमारा जो पुराण पुरुषों का चरित्र था वह बहुत सीमित हो गया था। तो एक काल का प्रभाव है जिनके बारे में विशेष विवरण उपलब्ध नहीं है उनके बारे में हम क्या कहे।

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