दिगम्बर साधु खड़े होकर ही आहार क्यों लेते हैं?

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शंका

दिगम्बर साधु खड़े होकर ही आहार क्यों लेते हैं?

समाधान

दिगम्बर साधु के खड़े होकर आहार लेने के दो-तीन कारण हैं; सबसे पहली बात तो खड़े होकर के भरपेट नहीं खा सकते। बैठकर खाओगे तो अफर जाओगे, खड़े-खड़े अफर नहीं सकते। शायद आजकल इसीलिए आप लोगों के यहाँ खड़े होकर खाने की व्यवस्था है ताकि आपका काम कम में चल जाए।

दूसरी बात जैन मुनि का यह संकल्प रहता है कि “जब तक मैं अपने पाँव के बल पर खड़े होने में समर्थ रहूँगा, तभी तक आहार ग्रहण करूँगा; जब मुझे खड़े होने में असुविधा होगी तो मैं इसे अपने जीवन के अंत का संकेत मानकर अपनी अंतिम साधना के लिए तत्पर हो जाऊंगा।”

और तीसरी बात– यह सबसे महत्वपूर्ण है, दिगम्बर अवस्था को प्राप्त करने का मतलब अपने प्राकृतिक स्वरूप को प्रकट करना है; जैसे एक बच्चा जन्म लेता है तो जन्म के क्षणों में उसके पास कोई वस्त्र आदिक नहीं होते वह प्राकृतिक रूप से प्रकट होता है और उसके अंदर कोई राग द्वेष आदिक विकार नहीं होते हैं। दिगम्बर अवस्था को प्राप्त करने का मतलब अपनी प्रकृति के रूप में आ जाना। इसलिए जैन मुनि की जो चर्या निर्धारित की गई वह प्रकृति के साथ संतुलित करने के लिए की गई। आप थोड़ा सा ध्यान दें; प्रकृति के ऊपर निर्भर रहने वाले कोई भी प्राणी वस्त्र नहीं पहनते, दिगम्बर मुनि वस्त्र नहीं पहनते। प्रकृति के ऊपर निर्भर रहने वाला कोई भी प्राणी बिस्तर पर नहीं सोता, दिगम्बर मुनि बिस्तर पर नहीं सोते। प्रकृति पर निर्भर रहने वाले कोई भी प्राणी दन्त-धावन नहीं करते, दिगम्बर मुनि अदंत धावन करते हैं और प्रकृति के ऊपर निर्भर रहने वाले जितने भी प्राणी हैं; सब खड़े-खड़े खाते हैं, दिगम्बर मुनि भी खड़े-खड़े खाते हैं।

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