बच्चें बड़े होने पर माँ बाप की उपेक्षा क्यों करने लगते हैं?

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शंका

ऐसा देखा जाता है कि हम बच्चों को बचपन में बहुत अच्छे संस्कार देते हैं। उन्हें जब कुछ उपलब्धि हो जाती है, तो उसके बाद वो अपने बुजुर्गों से, अपने माता-पिता से बोलते समय ये नहीं सोचते कि हम किसे बोल रहे हैं? क्या बोल रहे हैं? और क्यों बोल रहे हैं? इसका निराकरण करें?

समाधान

ये बिल्कुल सही है कि माँ बाप सारी जिंदगी ये सोचते है कि मेरा बेटा पढ़ लिख कर लायक बन जाये। निश्चित रूप से बेटा लायक बनता है और इतना लायक बन जाता है कि उसे अपने माँ-बाप नालायक लगने लगते हैं। ये युग की विडम्बना है, ये पश्चिमी सोच का कुप्रभाव है। हमारे देश में परिवार और कुटुम्ब संस्था का जो महत्त्व था वो दिनों दिन खत्म होता जा रहा है। ‘मातृ देवो भवः’ ‘पितृ देवो भवः’ की उक्ति जिस धरती पर चरितार्थ हुई, उसी धरती पर माता-पिता को बुढ़ापे में अपनी ही सन्तान की उपेक्षा के दंश का दर्द झेलना पड़ रहा है। ये हमारा दुर्भाग्य है, ये सोच की विकृति का परिणाम है। पदार्थ विज्ञान विद्या जब से बढ़ गयी है तब से ऐसे परिणाम और अधिक हो रहे हैं। 

माँ बाप बच्चों को संस्कार देते हैं। मुझे लगता है कि हमें संस्कारों के साथ शिक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए। आज की जो शिक्षा पद्धति है, ये शिक्षा पद्धति हर व्यक्ति के दिल दिमाग को खोखला कर रही है। हमारे चिंतन की धारा ही बदल गयी है। मैकाले (Lord Macaulay) ने १८३५ में जो बात ब्रिटिश संसद में कही थी, और भारत की सांस्कृतिक रीढ़ को तोड़ने की जो कसम खाई थी, अपनी नीति और इरादों को पूरा करके उसने उसमें सफलता पाई है। आज भारत में भारतीयता ही नहीं बची। हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का, दिनों दिन क्षरण होता जा रहा है, और लोग इंग्लिश को ही सब कुछ मानने लगे हैं। अंग्रेज चले गये, लेकिन अंग्रेजी आज भी लोगों के भीतर है। मूलभूत भारतीयों की खुल्लम-खुल्ला उपेक्षा होनी शुरू हो गयी है, उसका ये दुष्परिणाम है। इसलिये जरूरत है कि हम अपने बच्चों के मन में सांस्कृतिक निष्ठा जगायें, और उनको ये बतायें, कि माँ-बाप का क्या मूल्य है? क्या महत्त्व है? उनका हमारे जीवन में क्या स्थान है?, और कैसा स्थान है? किस तरीके से व्यक्ति माँ-बाप की सेवा करता है? कैसे आगे बढ़ें? ये देखना चाहिए। उन्हें श्री राम का, श्रवण कुमार का आदर्श सिखाना चाहिए। राम जिसने अपने पिता के कहने पर हँसते-हँसते वनवास स्वीकार कर लिया, श्रवण कुमार जिस ने अपने अन्धे माता-पिता के लिये, सारी जिंदगी कंधे पर बिठाकर तीर्थयात्रा में लगा दी। मरते-मरते उसने अपने माता-पिता को पानी पिलाया और आज की ये सन्तान है कि मरते हुए माँ-बाप को पानी पिलाने के लिए उनके पास समय नहीं है। ये कैसी विडम्बना है? संवेदना को जाग्रत करने की जरूरत है, और युवाओं को ये बताने की जरूरत है, कि तुम्हारे माँ-बाप का तुम्हारे ऊपर क्या उपकार है? किस प्रकार की परिस्थितियों में उन्होंने तुम्हारी परवरिश की। आज तुम जिस लायक बने हो वो कैसे बने हो? 

एक युवक ने एक बार मुझसे कहा कि ‘महाराज मैं क्या करूं?, मैं तो जैसे-तैसे adjust (अनुकूल) कर लेता हूँ। मेरी पत्नी का मेरे माता-पिता से एडजस्टमेंट नहीं हो पाता है। हमारे पिताजी पुरानी विचारधारा के हैं और मम्मी जरा भी पढ़ी लिखी नहीं है। उनमें तो कुछ अक्ल ही नहीं दिखती है। मैं कैसे एडजस्टमेंट करूँ?’ मैंने उस युवक से कहा कि ‘तू कहता है कि तेरे पिताजी पुराने विचारधारा के हैं। तेरी मम्मी को अक्ल नहीं है, मैं मानता हूँ। पर जिस दिन तू पैदा हुआ था उस दिन तुझे कितनी अक्ल थी? आज तेरे माँ-बाप तेरी शिक्षा के आगे कमजोर दिखायी पड़ते हैं। जब तू पैदा हुआ था तब तेरी आँख चील- कौआ फोड़ दे तो तू उन्हें हटा दे, इतनी भी बुद्धि नहीं थी।’ विचार करो कि उन्होंने तुम्हें क्या दिया? जन्म दिया, जीवन दिया, संस्कार दिए तब तुम यहाँ आये। मैंने उससे कहा कि ‘अच्छा है कि तेरी माँ पढ़ी लिखी नहीं है। यदि आज के जमाने के माता की तरह तेरी माँ ने तुझे पैदा होने से पहले ही परलोक पहुँचा दिया होता तो तेरा क्या होता? नौ माह तक उसने तुझे पेट में रखा, पाला-पोसा, अपने कष्टों की उपेक्षा करके तेरी सेहत का ख्याल रखा। तेरे पीछे अपनी सारी रूचि और विचारों का परित्याग किया।अगर माँ ने तुझे न संभाला होता तो तेरा क्या होता? ये कैसी विडम्बना है कि जिस माँ ने तुझे नौ माह तक पेट में रखा आज तू उसे अपने फ्लैट में रखना नहीं चाहता। दुर्भाग्य है तेरा, धिक्कार है तुझ पर। उसके बाद तुझे माँ ने जन्म दिया, जीवन दिया। यदि तेरी माँ ने तुझे जन्म देने के बाद किसी झाड़ी में छोड़ दिया होता, तो क्या होता? कुत्ते बिल्ली अपना पेट भर लेते। तेरे माता-पिता तुझे ऐसे ही लावारिस छोड़ देते, तो आज तू किसी अनाथ आश्रम में पलता होता। पल-पल उन्होंने तेरा ध्यान रखा। खुद गीले में सोकर तुझे सूखे में सुलाया। विचार कर तेरी आदत कितनी गंदी हो गयी? तेरी आदत गीला करने की है, जब तू बच्चा था तो माँ-बाप के बिस्तर गीले करता था; अब बड़ा हो गया तो उनकी आँखे गीली करता है, तुझे सोचने की जरूरत है। आज समय पर तुझे खाना नहीं दिया होता, तुझे दूध नहीं पिलाया होता तो क्या होता? तुम्हें बीमार पड़ने पर डॉक्टर को नहीं दिखाया होता तो क्या होता? विचार करो। तम्हारी एक-एक बात का ख्याल रखा। किसी दिन गैस की तरफ जाते हए तुझे लपका नहीं होता, तो तेरा क्या होता? छत से ज़्यादा झुक जाने पर तेरे पिता ने तुझे अपनी ओर नहीं खींचा होता, तो क्या होता? सड़क पार करते समय तेजी से आते हुए ट्रक की ओर बढ़ते हुए तेरे पिता ने तुझे अपनी ओर नहीं खींचा होता, तो क्या होता? विचार करो तुझे पढ़ाया-लिखाया नहीं होता, तो आज तुम जो बने हो वो बन पाते? सच्चाई ये है कि तेरे शरीर की एक-एक खून की बूंद तुम्हारे माता-पिता की कृपा का प्रसाद है। उसे याद रखो। कितनी कठिनाइयों में तुझे पाला है? और आज तुम उनकी उपेक्षा करते हो? उस समय तुम्हारे पास बुद्धि नहीं थी, आज उनके पास बुद्धि नहीं है। उस समय तुमने उनके साथ कैसा व्यवहार किया, कितनी बार लात मारी, कितनी बार उनकी गोद गीली की, विचार करो? कितनी बार अपने मल मूत्र से उनके शरीर को गंदा किया, पर उन्होंने क्या किया? पहले तुम्हारी सफाई की। बाद में खुद की। बाद में भी तुम्हारी कभी उपेक्षा नहीं की।”

 माता-पिता के उपकारों का स्मरण होना चाहिए और ये संस्कार बच्चों को आना चाहिए। एक सन्तान का पालन करना, और सन्तान को जन्म देना एक बहुत बड़ी साधना है। यदि कोई दम्पत्ति मेरे पास आते हैं, तो मैं तो यही कहता हूँ कि अपने बच्चों को पालते समय एक ही बात का विचार करो कि मैं एक बच्चे को पालने में कितना परेशान हूँ? मेरे माँ-बाप ने मुझे पाला तो कैसी परेशानी का सामना किया होगा? जीवन भर उनके प्रति समर्पित रहने का भाव होगा, कभी भी उनकी उपेक्षा का तुम्हारे मन में भाव नहीं आ सकेगा। इसलिए एहसान फरामोश होने से बचें। कृतघ्नता के गुण को अपनाएँ। माता-पिता ने जन्म दिया, जीवन दिया, संस्कार दिए या, उनके उपकार को कभी भुलाया नहीं जा सकता। शास्त्रकार कहते हैं कि, तीन का उपकार दुष्प्रतिकार होता है- पहला माता-पिता, दूसरा जीवन का दाता और तीसरा गुरु। माता पिता जन्म देते हैं, जीवन देते है;, जीवन के दाता जीवन की व्यवस्था देते हैं और गुरु जीवन को दिशा देते हैं। इनके उपकारों को तीन काल में पूरा नहीं कर सकते। समस्त धरती के रजः कण और इस भूतल के सम्पूर्ण जल-बिन्दु यदि एकत्र कर लिये जाएँ, तो भी माँ बाप के उपकारों को कभी पूरा नहीं किया जा सकता है। ये बात बच्चों के दिल और दिमाग में बिठा देनी चाहिए। इसके लिए चाहिए कि माँ-बाप खुद अपने बच्चों में ये संस्कार दें। 

 मैंने देखा है कि माँ-बाप अपने बच्चों को उल्टे संस्कार देते हैं। मैंने एक दिन कहा था कि यदि आप श्रवण कुमार की माँ बनना चाहती हो तो अपने पति को श्रवण कुमार बनने की सीख दीजिए। क्योंकि श्रवण कुमार के घर ही श्रवण कुमार पैदा हो सकता है। यदि आप अपने पति को बरगलाओगे तो ये तय मानना कि कल तुम्हारे घर कंस पैदा होने वाला है, और तुम्हारी जो दुर्दशा होगी उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

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