आचार्यश्री विद्यासागर जी अधिकतर बुंदेलखंड में क्यों रहते हैं?

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शंका

कुंडलपुर बड़े बाबा, बीना जी वारा, रामटेक आदि ऐसे स्थान हैं, जहाँ पर आचार्य श्री की और उनकी संघ की साधना का अधिकांश समय व्यतीत हुआ है। मन में यह आता है कि इन स्थानों की वर्गणाओं से आचार्य श्री की विशुद्धि बढ़ी है या आचार्य श्री की विशुद्धी से इन मन्दिरों का अतिशय बढ़ा है? दूसरा, विशेषकर बुंदेलखंड पर आचार्य श्री के चरण पड़ते हैं, वहाँ की जनता का ऐसा कौन सा पुण्य कर्म है कि जैसे हम भी अपने कर्म करें, जिससे आचार्य श्री के चरण राजस्थान में भी पड़ें?

समाधान

हमारे यहाँ एक शब्द आता है- “रूषितानी यःसुखलु! तीर्थंकर भगवन्तों, महा मुनियों के चरण रज से जो धरती पवित्र होती है वह धरती तीर्थ बन जाती है। आपने पूछा है इन तीर्थों की रज से आचार्य श्री की पवित्रता बढ़ी, आचार्य श्री उधर खिंचे या आचार्य श्री के चरण कमल की रज से उन तीर्थों की महिमा बढ़ी? मुझे तो लगता है कि गुरुदेव के चरणों के प्रताप से उन क्षेत्रों की महिमा निश्चित ही बढ़ी है; यह देखने में भी आता है। रहा सवाल बुंदेलखंड में ही उनका अधिक समय देने का, तो “भव भागन वश जोगी बसाय!” यह कहावत हम लोग सुनते हैं। निश्चित वहाँ के लोगों का पुण्य कुछ प्रबल है कि ऐसे महान आचार्य का एक लंबे अरसे से उनको सानिध्य प्राप्त हो रहा है। 

आचार्य श्री ने एक बार अपने मुख से कहा था, जब हमारी क्षुल्लक दीक्षा हो रही थी; उस दिन राजस्थान के कुछ लोग थे उन्होंने आचार्य श्री को राजस्थान आने का निमंत्रण दिया था। यह घटना ८ नवंबर १९८५ की है, पंडित शीतलचंद्र जी उस समय थे, उन्होंने राजस्थान आने का निमंत्रण दिया था, तो गुरुदेव ने जो बात कही थी वह मुझे याद है; उन्होंने कहा था -“यह राजस्थान की रेतीली माटी नहीं, बुंदेलखंड की उर्वरा धरती है और यहाँ बहुत सम्भावनाएँ हैं। तब उन्होंने तालबेहट में घटी वह घटना सुनाई कि जब वह राजस्थान से बुंदेलखंड की ओर पहली बार गए तो झांसी और ललितपुर के बीच में एक गाँव है तालबेहट। 

सर्दी का समय था, वह खुले में सामयिक कर रहे थे, धूप में बैठकर। आँगन में एक कुआँ था, एक १० साल का बच्चा बाल्टी लेकर आया, छन्ना लेकर के आया, उसके साथ दो हाँडे भी थे, एक परात थी। उसने कुएँ में बाल्टी को डाला, पानी खींच कर निकाला। परात पर हंडे को रखा ताकि एक बूँद पानी भी इधर उधर न जाए और पानी को ऐसे छाना मानो तेल छान रहा हो। पूरा पानी भर चुकने के उपरान्त उसने उस परात में छनने पर छाने हुए जल से धार छोड़ी। परात के जल को वापस बाल्टी में डाला; बाल्टी को बड़े इत्मीनान से पानी की सतह तक ले गया और पानी की सतह में ले जाने के बाद उस बाल्टी को उड़ेल दिया ताकि पानी अपनी मूल जगह पर पहुँच जाएँ। गुरुदेव ने उस दिन कहा था कि-” मैंने देखा तो मुझे लगा जिस धरती पर १० साल के बच्चे में ऐसे संस्कार हैं इस धरती से अच्छी धरती और कोई हो नहीं सकती।” तो वहाँ का संस्कार वहाँ का पुण्य उन्हें बांधे हुए हैं इसे स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए।

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