सभी तीर्थंकर और मुनि पर्वतों से ही क्यों मोक्ष पधारे?

150 150 admin
शंका

सभी २४ तीर्थंकर और मुनि मोक्ष पर्वतों से ही क्यों मोक्ष पधारे?

समाधान

जैन तीर्थ प्राय: पर्वतों पर हैं और वैष्णव तीर्थ जितने भी हैं प्राय: नदियों के किनारे हैं इसका महत्त्वपूर्ण कारण है। जैन संस्कृति जैन साधना श्रमण साधना कहलाती श्रमण संस्कृति कहलाती है। श्रमण संस्कृति यानि जहाँ श्रम किया जाये। अपने बल पर अपना उत्कर्ष करने का मार्ग जैन धर्म/जैन दर्शन बताता है। खुद अपने आपको ऊपर उठाओ, तुम्हारा उद्धार किसी की कृपा से नहीं होगा, तुम्हारे अपने पुरुषार्थ से होगा तो पर्वत पर चढ़ा जाता है। चढ़ना पुरुषार्थ का द्योतक है। 

दूसरी तरफ वैदिक परम्परा में ईश्वर के प्रति श्रद्धा और समर्पण की बात होती है। नदी समर्पण का काम करती है, नदी बहती है, बस बहती ही जाती है, ऐसे ही नदी में बहा दो अपने आप को, अपनी मंजिल तक पहुँच जाओगे। वो परम्परा समर्पण की परम्परा है और यह परम्परा श्रम की परम्परा है। पहले परम्परा पुरुषार्थ की परम्परा है और दूसरी परम्परा भक्ति की परम्परा है। इन दोनों में अन्तर है। 

दूसरी बात जैन साधना अग्नि तत्त्व प्रधान है और वैदिक साधना जल तत्त्व प्रधान है यानि जैन साधना में अपने कर्मों को भस्म किया जाता है, कर्म को तप की अग्नि में भस्म करना है जैन साधना में! तो हम अपने कर्म को भस्म कर रहे हैं और वैदिक साधना में जल तत्त्व की प्रधानता है। वहाँ अपने कर्मों को भस्म नहीं करना है, आत्मा को परमात्मा में मिलाना है। जैन साधना आत्मा को परमात्मा बनाने की बात करती है और वैदिक साधना में आत्मा को परमात्मा से मिलाने की बात होती है, यह बुनियादी अन्तर है इसलिए जैनियों के प्रायः सभी तीर्थ प्राय: पर्वतों पर हैं, निर्वाण स्थल पर्वतों पर हैं क्योंकि जिनको उत्कर्ष करना है उनको स्वाभाविक रूप से इस तरह के रास्तों पर झुकाव होता है।

Share

Leave a Reply