भगवान बाहुबली के मन में भरत की भूमि पर खड़े होने की शल्य क्यों थी?

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शंका

भगवान बाहुबली ने १ वर्ष तक तपस्या की थी और उनके मन में यह शल्य थी कि मैं भरत की भूमि पर खड़ा हुआ हूँ। जबकि यह भेद विज्ञान तो पहले ही हो जाता है कि ‘मैं शरीर से भिन्न हूँ और यह भूमि सब मेरी नहीं है’ तो उनके मन में ऐसी स्थूल शल्य कैसे हो सकती है?

उमा जैन

समाधान

भेद विज्ञान होना अलग है और भेद विज्ञान में लीन होना अलग है। पहले श्रद्धान था, आचरण नहीं था। भरत चक्रवर्ती को भी इतना भेद विज्ञान था कि ये धरती किसी की नहीं हैं फिर चक्र क्यों चलाया? कषाय के उदय में ऐसा होता है।

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