पंच परमेष्ठी के रंग अलग-अलग क्यों होते हैं?

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शंका

पंच परमेष्ठी के रंग अलग-अलग क्यों होते हैं?

समाधान

पंच परमेष्ठी के अलग-अलग रंग अलग-अलग कारणों से होते हैं। अरिहंत भगवान ने अपने चार घातिया कर्मों का क्षय कर लिया और घातिया कर्मों के क्षय के कारण उनके अन्दर विशुद्धि प्रकट हो गई, इसलिए उनके साथ यह सफ़ेद रंग दिया जाता है। 

सिद्ध परमेष्ठी ने आठों कर्मों का क्षय कर दिया तो उनका रंग उगते हुए सूरज के समान है। उगते हुए सूरज का मतलब सूरज आसमान में उगता है और आसमान सबसे ऊँचाई पर है। सिद्ध परमेष्ठी संसार के सबसे ऊँचाई पर रहते हैं इसलिए उन्हें लाल रंग दे दिया गया। 

आचार्य परमेष्ठी के लिए पीला रंग बताया है। सोलर स्पेक्ट्रम (solar spectrum) में seven color (सात रंग) है। जैन धर्म में original color (वास्तविक रंग) 5 हैं क्योंकि जो सात रंग होते हैं इसी से बनते हैं। उसमें तीसरा नंबर पीले रंग का होता है। पीला रंग हमारे अन्दर पवित्रता लाता है। पीला रंग पवित्रता का प्रतीक है और पवित्रता जीवन में तब आती है जब दीक्षा मिलती है। दीक्षा आचार्य देते हैं इसीलिए आचार्य के साथ पीला रंग दे दिया। 

नीला रंग ज्ञान का प्रतीक है और ज्ञान हमको उपाध्याय से मिलता है। इसीलिए उपाध्याय परमेष्ठी के लिए नीला रंग बता दिया। 

साधु परमेष्ठी के लिए काला रंग है क्योंकि काला रंग सबको absorb (समाहित) कर लेता है, सहन कर लेता है। साधु परमेष्ठी सब चीजों को सहन करते हैं तो जो सबको सहन करने में समर्थ होते हैं उनके लिए काला रंग रख दिया गया।

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