तीर्थंकरों के विधान में पंचकल्याणक के अर्घ्य क्यों नहीं होते?
यह विधान रचयिताओं के ऊपर निर्भर है। तीर्थंकर की पूजा और विधान में अंतर है। शांति विधान का मतलब शांतिनाथ भगवान की पूजा नहीं! शांतिनाथ भगवान को स्मरण करते हुए एक विशिष्ट अनुष्ठान करना; यद्यपि उसमें शांतिनाथ भगवान की आराधना है, पर, चूँकि विधानों में पुराने समय में जो विधान रचे गए उनमें कुछ ऐसी कामनाएं जोड़ी गईं, तो उसमें भगवान की पूजा का रूप दूसरा हो गया। इसलिए केवल पूजा ही रह गईं, कल्याणक गौण हो गए। पर यथार्थतः आप किसी भी तीर्थंकर की आराधना करना चाहते हैं तो –
“पंच महाकल्याण संपनानम्,अट्टमहापाढ़ी हेर सहियाणम।”
पाँच महा कल्याणक और अष्ट प्रातिहार्य से संयुक्त तीर्थंकरों की पूजा अर्चा होनी चाहिए, यह पूजा होती है। अब विधानकर्ताओं ने विधान किस तरीके से रचा? पुराने जमाने में आदिनाथ, पार्श्वनाथ आदि के विधान नहीं मिलते थे; शांति विधान भी बहुत प्राचीन नहीं है। शांति यंत्र प्राचीन देखने को मिलता है। शांति विधान का जो वर्तमान रूप है यह बहुत अर्वाचीन है। तो यह विधानकर्ता, रचयिता, कवियों के द्वारा रचित है। उन्होंने अपनी किस भावना और कल्पना से इस तरह की रचना की, उसकी अर्ध्यावली निश्चित की; इसके लिए मैं कुछ कह नहीं सकता। फिर भी- “क्या महाराज शांति विधान नहीं करें?” नहीं ! शांति विधान करो, कोई बुराई नहीं। भगवान का नाम चाहे जिस रूप में ले सको, आप लो, कोई बुराई नहीं। देखो जब शॉर्ट (SHORT) में आपको काम करना होता है, तो बहुत सारे मामले सल्टा लेते हैं। आप जब चौबीसी पूजा करते हैं तो एक भी कल्याणक के अर्घ्य नहीं चढ़ाते और २४ के नाम हो जाते हैं। तो हम लोग बहुत होशियार आदमी हैं, है ना! सब चीज को अवसर के हिसाब से जोड़ लेते हैं तो जहाँ जैसा मौका आ जाए वैसा करो।
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