त्रिलोक और त्रिकाल में धर्म सुखकारी क्यों और कैसे?

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शंका

त्रिलोक और त्रिकाल में धर्म सुखकारी क्यों और कैसे?

समाधान

भाई सुख किसको कहते हैं? जो हमेशा साथ रहे, जो हमें हमेशा अनुकूलता प्रदान करे। हमारे जीवन के निर्वाह के लिए बहुत सारे साधन हैं- शरीर, परिवार, संपत्ति, मित्रगण.. मित्रगण मनुष्य को कहाँ तक साथ देते हैं? जब तक जरूरत होती तब तक। सम्पत्ति कहाँ तक साथ देती है? जब तक काम चलता है तब तक। एक सीमा के बाद सम्पत्ति भी मुँह ताकती रहती है। परिवारजन कहाँ तक साथ देते हैं? दर्द में सहानुभूति प्रदर्शित करते हैं, दर्द को बाँट नहीं सकते। 

शरीर जीवन के अन्तिम क्षण तक हमारे साथ रहता है लेकिन उसके बाद वो छूट जाता तो जैसे इस जीवन के साथ शरीर का सम्बन्ध है वैसे ही हमारे जीवन के साथ धर्म का सम्बन्ध है। दुनिया में बाकी सारी चीजें हैं, वक्त पर आती है, वक्त पर चली जाती है। धर्म ही एक ऐसा तत्त्व है जो जीवन भर मनुष्य का साथ निभाता है। मृत्यु के उपरान्त भी साथ जाता है इसलिए त्रिलोक और त्रिकाल में धर्म को सच्चा साथी और सुखदाता माना जाता है। वह हमारी समस्याओं का समाधान देता है और जीवन का पथ प्रशस्त करता है।

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