“अतिथि कौन?” – आचार्य श्री के बारे में संस्मरण!

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शंका

हम आचार्य भगवन का कोई खास संस्मरण सुनना चाहते हैं।

समाधान

भावना तो प्रसंगानुसार होता है। आपने कहा उनका आज अचानक विहार हुआ, योजनाबद्ध विहार उनका कब हुआ? जब भी उनका विहार होता है, अचानक ही होता है और विहार के सन्दर्भ में एक बात मुझे याद आ गई। १९७५ में गुरुदेव का चातुर्मास फिरोजाबाद में हुआ। वहाँ प्रतिदिन निर्धारित विषय पर उनका प्रवचन होता था और जो भी विषय होता था एक दिन पूर्व उद्घोषक उसकी उद्घोषणा कर देते थे। क्रम चलता रहा, संचालक महोदय ने पूछा, “महाराज, कल का प्रवचन किस विषय पर होगा?” थोड़ी देर मौन रहें, फिर बोला, “महाराज जी, टॉपिक तो बता ही दीजिए।”, बोले, “ठीक है, कल का विषय है अतिथि, अतिथि पर प्रवचन होगा।” लोग निश्चिंत हो गए कि सुबह अतिथि पर प्रवचन होगा और आचार्य महाराज ने सात बजे प्रातः विहार कर दिया। लोग आठ बजे प्रवचन के टाइम में पहुंचे, “अरे! महाराज तो है नहीं, विहार कर दिया।” सब लोग दौड़े, तब तक वो राजा का ताल (गाँव) पहुँच गए। “महाराज जी, आपने तो कहा था कि अतिथि पर प्रवचन होगा और आपने एकदम से विहार कर दिया, ये तो बड़ा गड़बड़ है।” बोले, “मैंने क्या कहा था?”, आपने कहा था, “अतिथि पर प्रवचन होगा”। “प्रवचन तो दे रहा हूँ”, बोले, “कहाँ प्रवचन हैं? आप तो चल दिए विहार करने।” “मैंने क्या कहा था?”, आपने कहा था, “अतिथि कौन?”, तो बोले, “वही तो बता रहा हूँ, जिसके आने की तिथि न हो, जिसके जाने की तिथि न हो, वो अतिथि!”।

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