सम्मेद शिखर के टोंको को किसने बनवाया था?
सम्मेद शिखर जी की इन टोंको का जो उल्लेख मिलता है, वह बहुत प्राचीन नहीं मिलता है। सम्मेद शिखर की वन्दना का उल्लेख तो देखने में आता है लेकिन टोंको का उल्लेख नहीं मिलता है। जितना मैंने पढ़ा है, पुराणों में ऐसा देखने को नहीं मिलता, पहले लोग आये और वन्दना की। सम्मेद शिखर की वन्दना का उल्लेख अति प्राचीन काल से मिलता है। उस वन्दना में कौन-कौन थे, क्या था ये देखने में नहीं मिलता है।
वर्तमान में जो है वह लगभग २०० वर्ष पुराने टोंक है। एक वो कोई सेठ था… शायद लालू सहाय सेठ थे जिन्होंने इनकी रचना करायी थी। इससे पहले इनकी क्या स्थिति थी वह मुझे पता नहीं है। पुरातात्विक दृष्टि से भी ऐसे कोई अवशेष प्राप्त नहीं होते है। इसके पीछे का मुझे एक रहस्य समझ में आता है। हो न हो प्राचीन काल में लोग पूरे तीर्थराज के कण-कण को पवित्र मानते थे। और उस पर पाँव रखना भी पाप समझते थे। ऊपर पर्वत पर चढ़ कर के वन्दना करने की जगह नीचे ही उसकी रज लेकर के या परिक्रमा करके ही उसकी वन्दना मानते होंगे। जब ऊपर कोई चढ़ा ही नहीं है, तो टोंक आदि बनाये ही नहीं गये होंगे। शायद ऐसा भी कारण हो सकता है। २००-२५० वर्ष से प्राचीन यहाँ का कोई पुरावशेष प्राप्त नहीं होता है। आज भी अष्टापद जहाँ से आदिनाथ भगवान के निर्माण को हम लोग मानते हैं, वहाँ भी लोग उस अष्टापद पर्वत की परिक्रमा करते है। तीन दिन में उस पर्वत की परिक्रमा करते हैं, ऊपर जाने की परिपाटी नहीं है। हो सकता है कि ये तीर्थराज इतना पूज्य और पवित्र माना जाता रहा है कि लोग ऊपर न जाकर नीचे से ही वन्दना करते होंगे। और बाद में फिर ऐसे भाव और निमित्त बने फिर ऊपर जिनालयों का निर्माण हुआ। टोंको की रचना हुई। जो भी हो; अभी इसमें और अन्वेषण अपेक्षित है।
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