अतिथी कौन और उनका सत्कार कैसे करें?

150 150 admin
शंका

अतिथि: देवो भव:” हमारे भारत की परम्परा है। लोग इसको निर्वाह करने के लिए बहुत कुछ करते भी हैं। कभी-कभी कुछ प्रॉब्लम होती है, हो सकता है कहीं कुछ कमी भी रह सकती है, कुछ समस्या भी आती है, तो आतिथ्य नहीं कर पाते हैं। लेकिन ऐसा भी होता है कि अतिथि को अगर सुविधाएँ मिलती भी हैं, तो वो कुछ गलत फायदा भी उठा लेते हैं। महाराज जी! अतिथि को कैसा होना चाहिए और उनका आतिथ्य कैसा होना चाहिए? और हम भी अगर कभी दोनों रूप में आए तो हमारा कैसा होना चाहिए?

समाधान

बहुत अच्छा सवाल आपने किया है। अतिथि की सेवा एक बहुत बड़ा कर्तव्य है। और अतिथि सत्कार का महत्त्व तो आप इससे ही समझ लें, कुरल काव्य में एक वाक्य आता है, ‘जिसके घर से आया हुआ अतिथि अनादरित नहीं लौटता, उसका वंश कभी निर्बीज नहीं होता’- यानी युग युगान्तरों तक उसका वंश चलता रहता है। अतिथि सत्कार को हमारे यहाँ बहुत बड़ा धर्म और कर्तव्य बताया और हमारे श्रावक के बारह व्रतों में अतिथि श्रम विभाग का एक व्रत भी है। इसलिए अतिथियों का सत्कार करना चाहिए। 

रहा सवाल की अतिथि का हम सत्कार कैसे करें? कुछ अपनी व्यस्तताएँ, कुछ निजी बाध्यताएँ भी होती हैं- परिवारों का सिमट जाना और अपने कामकाजी व्यस्तता के कारण कई बार लोग चाह करके भी अतिथि का सत्कार नहीं कर पाते हैं। अपनी दिनचर्या में अतिथि का सत्कार करने की कोशिश करनी चाहिए और अगर ऐसा नहीं कर पाते तो कम से कम अतिथि सत्कार की भावना तो मन में भानी ही चाहिए। आजकल के लोगों की लाइफ स्टाइल इतनी भागम भाग की हो गई है और परिवार अब एकल रह गया है और एकल परिवार में भी पति भी और पत्नी भी दोनों कामकाजी हो गए हैं। तो ऐसे समय में तो लोगों के द्वारा अतिथि सत्कार बहुत ही मुश्किल जैसा होता जा रहा है। इस परिपाटी को बदलने के लिए हमें अपने मूल रूप में आना पड़ेगा। जो कई जगह अव्यवहारिक जैसा भी दिखता है। लेकिन फिर भी आप जिन दिनों छुट्टी हो, उस दिन अतिथि सत्कार तो जरूर करें। जब हमको ऐसा मिल जाए तो अतिथि सत्कार करें। 

अब रहा सवाल अतिथि का, अतिथियों को कभी मिस यूज़ नहीं करना चाहिए। कुछ लोग होते हैं जो चाहे, जहाँ चाहे, जैसे अतिथि बन जाते हैं। वस्तुतः हमारे यहाँ वास्तविक अतिथि किसे कहा है?- जो संयम का अनुपालन करे, वो अतिथि। जो सयंमी है, वो अतिथि है। असयंमी को अतिथि नहीं कहा। फिर भी साधर्मी के नाते असयंमी व्यक्ति भी हमारा अतिथि है। उस अतिथि को चाहिए कि वो भ्रमर की तरह रहे, जोंक की तरह नहीं। भ्रमर और जोंक में अन्तर होता है। भ्रमर फूल पर बैठता है, उसके पराग को चूसता है, पर फूल को आघात नहीं पहुँचाता। भ्रमर के बैठने से फूल और खिल जाता है। लेकिन जोंक है, जोंक गाय के थन में चिपकता है, तो उसका खून चूसने लगता है। अगर अतिथि जोंक की तरह है, तो त्याज्य है और भौंरे की तरह है, तो स्वीकार्य है। भवरे की तरह बनना चाहिए।

Share

Leave a Reply