अभिषेक के लिए कैसा जल होना चाहिए?

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शंका

हमारे जैन मन्दिरों में और कई जगह कच्चे पानी से या नल के पानी से या बोरिंग के पानी से अभिषेक किया जाता है, यह कहाँ तक उचित है और क्या विधि से करना चाहिए?

समाधान

भगवान का अभिषेक शुद्ध तरीके से होना चाहिए। जल छानना जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है, पानी छानने से करूणा पलती है। मूर्ति का अभिषेक यदि हम करूणा पूर्वक न करें, तो उस अभिषेक का क्या फायदा? आप ये मानकर के चलिए कि कुएँ का जल ठीक ढंग से जीवानी किए बिना आप प्रयोग करते हैं, उस जल में आप पूर्ण अहिंसा धर्म का पालन नहीं कर सकते, जीव हिंसा से अपने आप को बचा नहीं सकते। इसलिए यदि जीव हिंसा से अपने आप को बचाना चाहते हैं तो आपको उसे विधि पूर्वक छानना ही चाहिए। 

मुनिराज भी कुएँ के जल के बिना दूसरा जल नहीं लेते, यद्यपि आजकल कुछ संघों में चलने लगा है। आचार्य गुरुदेव तो व्रत और प्रतिमा भी, जब तक शुद्ध जल की उपलब्धता नहीं होती तब तक नहीं देते हैं, तो भगवान के ऊपर अभिषेक की धारा छोड़ना उचित नहीं है। इसलिए लोगों को चाहिए कि अपना प्रमाद त्यागें और जिन मन्दिर में शुद्ध जल से भगवान का अभिषेक करें। प्रासुक जल से भगवान का अभिषेक करें। आप कह सकते हैं कि आजकल कुएँ के जल की उपलब्धता नहीं है, कुएँ सूखते जा रहे हैं, क्या करें? तो कहते हैं कि ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’ आप सबको पता है, पहले भी मैंने इसकी चर्चा की थी कि विदिशा में ऋषभ जैन ने एक अहिंसा जीवानी यन्त्र विकसित किया जो पाँच सौ फुट नीचे से भी पानी बल्कि यूँ कहें कि पाताल से भी पानी निकाल सकते हैं। व्यवस्थाएँ आपके पास हैं। मैं तो कहता हूँ कि हर मन्दिर में वो यन्त्र लग जाना चाहिए और भगवान का अभिषेक भगवान के पूजन के अनुरूप जो द्रव्य है, वो शुद्ध जल से करना चाहिए। 

आप व्रत उपवास आदि करते हैं, या प्रतिमा का पालन करना चाहते हैं तो उस रीति से उससे पानी निकालें। मैंने तो उसकी प्रदर्शनी देखी है, एकदम जैनागम के अनुकूल है जिसमें शुद्ध विधि से जल को छाना भी जाता है और जल की जीवानी भी की जाती है। मोटर से यदि आप पानी खींचते हैं तो उसमें बहुत vibration होता है, पानी मथ जाता है। तो पानी छानने का हमारा जो मूलभूत प्रयोजन है वो नष्ट हो जाता है। इसलिए जो आगम की विधि और व्यवस्था है उसका पालन करते हुए, यह सब करना चाहिए। जब आज ऐसे यन्त्र विकसित हो गए, उसके बाद भी लोग ऐसा करते हैं तो उचित नहीं। मैं तो आपसे कहता हूँ, कहीं भी मन्दिर में जाओ और अगर आपको वहाँ शुद्ध जल नहीं मिलता तो मेरी सलाह है कि अभिषेक मत करो, भगवान का स्पर्श कर लो। वो अशुद्ध जल से अभिषेक करने की अपेक्षा अभिषेक न करना, मेरी राय में सही है। वहाँ के प्रबंधकों से कहो कि ‘ये व्यवस्था बना लो और ये काम कर लो।’ बनाने में समर्थ नहीं हों तो कमेटी के दो-चार लोग मिलकर बना लो, ये श्रेष्ठतम दान है। मन्दिर की गुल्लक में रुपया डालने से अच्छा है कि पहले ये काम करो फिर आगे की व्यवस्था करो तो ज्यादा लाभ होगा।

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